भिखू – डाॅ संजय सक्सेना

इंटर की कक्षा मे पढ़ते पढ़ते ही भीखू ने जिम ज्वाइन कर ली थी । आखिर उसको पुलिस का दरोगा जो बनना था। जब भी वह किसी पुलिस अफसर को देखता तो उसकी जगह वह स्वयं को वहां देखने लगता। धीरे-धीरे धीरे समय बीतता गया ।आज भीखू  21 वर्ष का हो गया । उसने बी.ए.की पढ़ाई प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी । वह दौड़ा दौड़ा उस अखबार को घर ले आया जिसमें उसका प्रथम श्रेणी का रिजल्ट छपा था।

          मां …….मां ……तू कहां गई ….देखना …जल्दी से ,मैं फर्स्ट पास हुआ हूं । मां भी अपने आटे से सने हाथों को धोती से पौंछते हुए वहीं से चिल्लाई ……अरे  भीखुए ….मुझे तो मालूम था कि तू ही अव्वल ही आएगा। रुक …रुक …मैं तेरे लिए अभी मिठाई लेकर आती हूं । घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी , सो मां भीखू के लिए गुड़ की डली ले आई।

              ले …खा …..और खुश रह । मां ने अपने लाल को आशीर्वाद दिया। भीखू ने अपनी मां के पैर छूकर उसे गोदी में उठा लिया।

                अरे ……अरे……ऐ भीखुए…तू मुझे गिरायेगा क्या? मुुझ बूढी का बुढ़ापा क्यों खराब करेगा ? आज मां और भीखू दोनों बहुत खुश थे। समय बीतता गया । आज वह दिन भी आ गया जब भीखू अपने सपने को साकार करने के लिए दरोगा की भर्ती का फार्म ले आया। मां अब पहले से ज्यादा मेहनत करती । वह भी अपने बेटे को एक अच्छे अफसर के रूप में देखने के सपने संजोए बैठी थी। भीखू अपने और अपनी मां के इन अरमानों को पूरा करने के लिए जी जान से मेहनत करता । सुबह …दौड़ भाग, दोपहर में …पढ़ाई तथा शाम को जिम । सुंदर इकहरा, गठीला बदन उसकी मां को काला टीका लगाने पर विवश कर देता। वह मन ही मन अपने बेटे को देख कर इठलाती और जल्द उसकी कामयाबी की कामना ईश्वर से करती।

               जल्द ही वह समय भी आ गया जब भीखू दरोगा की भर्ती की परीक्षा में शामिल होने जा रहा था । उसका पेपर आज बहुत अच्छा हुआ था। उसे पूरा विश्वास था कि वह दिन अब दूर ना होगा जब वह थाने की कुर्सी पर बैठेगा ।



              धीरे-धीरे समय बीतने लगा। भीखू और उसकी मां के मन की अकुलाहट बढ़ने लगी। भीखू अपने दोस्तों से रिजल्ट के बारे में पूँछता रहता था किंतु कोई संतोषजनक जवाब उसे ना मिल पाता । एक दिन वह अपने परीक्षा के रिजल्ट के बारे में जानने के लिए एसएसपी कार्यालय चला गया । वहांँ जाकर जब उसने अपने रिजल्ट के बारे में मालूम किया तो पता चला कि सरकार ने भर्ती में धांधली के कारण रिजल्ट पर रोक लगा दी है । भीखू गलत काम के सख्त खिलाफ था उसे पूरा विश्वास हो गया था कि आने वाले परिणाम में पूरी पारदर्शिता होगी । यही सोचते – सोचते कुछ समय और बीता । आज वह दिन भी आ गया जब भीखू का परिणाम कार्यालय पर चस्पा कर दिया गया ।भीखू खुशी खुशी , मां को सरप्राइज़ देने के लिए , अपना नंबर लेकर कार्यालय पहुंच गया। वह आज फूला न समा रहा था। वाकई आज उसके जीवन का बहुत बड़ा दिन था। लेकिन उसकी यह खुशी तब धराशाई हो गई जब उसे लिस्ट में अपना नंबर ना दिखा। वह बहुत उदास होकर चक्कर खाते हुए सीढ़ी पर एक ओर बैठ गया। उसकी आंखों से आंसू बाहर निकलने के लिए बेताब थे । वह उनको अंदर ही दबाए सोचने लगा ..क्या होगा मेरी बूढ़ी मांँ के अरमानों का ? कैसे समझाऊंगा मैं उनको? मुझमें तो अब उनका सामना करने की भी ताकत नहीं है।

                 बड़े उदास मन से भीखू घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे पहले वाली बात याद आई …जिसे एसएसपी साहब ने कहा था कि सरकार ने घोटाले के कारण रोक लगा रखी है । वह समझ नहीं पा रहा था कि धांधली अब हुई या तब ? धांधली रोकने के लिए परिणाम रोका गया या धांधली करने के लिए ? यही सोचते-सोचते उसका घर कब आ गया उसे पता ही ना चला । उसने घर का दरवाजा खोला और अंदर कमरे में जाकर पलंग पर लेट गया। मां ने पूँछा – भीखू तेरी परीक्षा का क्या रहा?

                    मांँ……मांँ…..तू भी ऐसी बात पूछे है। मुझे कोई दरोगा – वरोगा ना बनना । क्योंकि कौन इन चोर उचक्कों के पीछे भागता फिरेगा और यदि मैं इन चोरों के पीछे भागूंगा तो तेरा ख्याल कौन रखेगा? भीखू ने स्वयं को संभालते हुए मांँ की बात बदलनी चाही। किंतु कहते हैं मांँ तो मांँ होती है वह भीखू के दर्द को जान चुकी थी । भीखू के पास आकर उसने भीखू से कहा- भीखू तू समझता है कि मैं तुझे  यह नौकरी करने देती । अरे ….मेरा बेटा बहादुर और ईमानदार है । तेरा काम इन चोर उचक्कों में थोड़े ही है । अगर तू पास हो जाता तो भी मैं तुझे इस नौकरी पर ना जाने देती । दोनों एक दूसरे को झूठा ढाढस बंधाने का प्रयास कर रहे थे ।



         दिन बीत गया । रात को भीखू अपनी मांँ के पास जाकर लेट गया। मांँ भी अपने नरम बूढ़े हाथों से उसका सिर सहलाती उसके टूटे हुए दिल के बारे में सोचती रही । इधर भीखू लेटे-लेटे अपनी मांँ की तकलीफों के बारे में सोचता रहा। कब दोनों को नींद आ गई कुछ पता ही ना चला।

          अगली सुबह आशा की नई किरण लेकर आई । भीखू ने अपना मार्ग बदलने का प्लान तय कर लिया था । अब उसने सुबह की दौड़-धूप को छोड़कर अपनी मां का हाथ बटाने का निश्चय किया। दोपहर को पढ़ाई और शाम को जिम छोड़कर अपनी मां के साथ उठना – बैठना , लेटना तथा उसके दुख दर्द में सहयोग करना । वह हमेशा अपनी मां के बारे में ही सोचता क्योंकि घर में तीसरा सोचने के लिए कोई था ही नहीं । आज भीखू ने आई ए एस की परीक्षा का फार्म भर दिया । वह इस परीक्षा को पास करके शायद अपनी मां के कष्टों को हमेशा हमेशा के लिए दूर कर देना चाहता था। भीखू आई ए एस की परीक्षा देकर आया तो बहुत खुश न था क्योंकि वह अपने पुराने अनुभवों से सीख ले चुका था

                    वक्त ने करवट बदली। समय और गरीबी के कारण भीखू की मांँ आज उसे हमेशा – हमेशा के लिए छोड़ कर स्वर्ग सिधार गई। जाते-जाते मांँ उससे कह गई ..बेटा लगे रहना, बुरा वक्त टल जाएगा। आज भीखू बिल्कुल अकेला था। वह उस सूने घर में जब कोई वस्तु देखता तो उसे अपनी मांँ की याद सताती । वह बिस्तर पर लेट कर रोने लगता । मांँ तू मुझे छोड़कर क्यों चली गई ? मैं अब किसके सहारे जीवन जीऊँ ? किसके लिए जिंदा रहूं ? कहते हैं समय सब जख्मों को भर देता है । सो भीखू भी धीरे-धीरे अपने को संभालने लगा। वक्त बीतता गया । आज भीखू की परीक्षा का परिणाम आने वाला था लेकिन भीखू इसे लेकर ज्यादा उत्साहित न था क्योंकि उसके इस सुख दुख में शरीक होने के लिए उसके साथ कोई न था ।

          भीखू ……….भीखू ….तू  परीक्षा में पास हो गया। भीखू के एक दोस्त हरी ने उसे सूचित किया। भीखू आज खुशी से झूम उठा । आज वह एक बड़ा अधिकारी बन गया था लेकिन अगले ही पल मांँ की याद करके  उसका मन बहुत उदास हो गया । बिस्तर पर लेट कर अपनी मांँ को याद करने लगा । भला वह मांँ को कभी आराम क्यों ना दे पाया? उसकी मांँ ने उसके लिए कितने अरमान संजोये और अब वे पूरे हुए तो वह उसे अकेला छोड़ कर चली गई । सोचते – सोचते उसकी आंख लग गई । जब वह उठा तो उसे लगा कि उसकी मांँ कहीं गई नहीं उसी के पास है । उसका सिर सहला रही थी , उसको ढांढस बंधा कर उसका मार्गदर्शन कर रही थी और कह रही थी उठ भीखू खड़ा हो वक्त बदल गया है। संभाल अपने को और पूरे कर अपनी मांँ के सपने को। भीखू सचमुच अपनी मांँ के सपनों से प्रेरणा लेकर इतना आगे बढ़ पाया । आज मांँ नहीं है ….लेकिन उसे प्रेरणा और अपना स्पर्श देकर वह आज भी अपना कार्य बखूबी कर रही है।। सचमुच मांँ महान होती है।

                      डाॅ संजय सक्सेना

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