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भिखारी, नहीं मैं – प्रीति सक्सेना

दोपहर सारे कामों से फारिग होकर एक बढ़िया सी नींद लेने की तैयारी कर ही रही थी कि

एक आवाज़ जो किसी बुर्जुग की लगी मुझे सुनाई दी…. उत्सुकता वश मैं भी बाहर आकर उन्हें देखने का लोभ न रोक सकी!!

वो बाजू वाली पड़ोसन से कुछ पैसे मांग रहे थे, उनकी करुणामय पुकार, आंखों में दिखती सच्चाई और सबसे ज्यादा उनका स्वाभिमान मुझे न जानें क्यों अपनी तरफ़ खींच रहा था, दिल उन पर पूरी तरह यकीन करना चाहता था पर आजू बाजू खड़े लोग मेरा मखौल न बनाएं सोचकर कदम आगे नहीं बढ़ा पा रही थी!!

   मैंने अपने घर के बाहर बनी सीढ़ियों पर बैठने को उनसे कहा, कुछ खाने पीने को दिया फिर पूछा…….. वो थोड़ी बहुत आर्थिक सहायता चाहते थे…. दस बीस पचास रुपए की, मैंने पड़ोसियों की ओर देखा, सभी ने कुछ सोचा और उन बुर्जुग को हमने 100 रुपए दे दिए, उन्होंने वापस करने की बात भी कही जिसे हमने नकार दिया……और सच कहें तो भरोसा भी नहीं था कि कोई लिया हुआ पैसा  लौटाता

भी है क्या?

       दूसरी दोपहरी उन्हीं बुर्जुग की आवाज़ सुनाई पड़ी, अचरज में डूबी मैं तुरंत बाहर आई, पड़ोसने भी बाहर ही मिल गईं …… जो हमने देखा… हम सबकी आंखे भीग गईं… वो बुर्जुग अपने कपड़ों पर छोटी छोटी चिमटी, रिबन, कंघी, बालों में लगाने के फुंदने, चाय की छन्नी

बरतन मांजने का कूचा, काला डोरा लटकाए बच्चों जैसी भोली सी हंसी हंसते हुए खड़े हैं

कितने अपने और सच्चे लगे बाबा, हाथ पकड़कर, बैठा लिया, हंसते हुए पूछा…. दुकान खुल गई बाबा……वो टूटे दांत दिखाकर हंसते हुए बोले….. यहीं से शुभ शुरूआत करूंगा…. हम सभी ने एक दो चीजें खरीदी किसी ने मोल भाव न किया, बाबा को पैसे दिए वो दस रूपये उधारी के लौटाने लगे जिसे हमने अस्वीकार कर दिया !!

हमने बाबा को आते जाते रहने को कहा जिसे वो मान गए  , हर इंसान लालची नहीं होता पर हम

सभी पर एक सा ठप्पा लगाकर एक सी नज़र से देखने लगते हैं, कुछ ऐसे भी लोग हैं दुनियां में जो आत्मसम्मान और मेहनत करके जीना चाहते हैं, उन्हें सहयोग जरूर दें… छोटा सा हमारा दिया गया साथ उनके स्वाभिमान को आहत नहीं होने देगा क्योंकि वो सहयोग चाहते हैं भीख नहीं!!

प्रीति सक्सेना

इंदौर

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