भेदभाव का परिणाम  – पुष्पा जोशी

मंगला देवी और दिनेश जी मध्यमवर्गीय परिवार के दम्पति थे, उनकी दो बेटियां थी सूजी ५ साल की और रूही ३ साल की दोनों बहुत खुश थे. मगर दिनेश जी की माँ घर में हमेशा क्लेश करती थी.उनके, क्लेश का कारण था, कि उन्हें एक पौते की ख्वाहिश थी, हमेशा यही कहती, बेटियां पराया धन है ससुराल चली जाएगी अकेले रह जाओगे, कभी बेटियों को कौसती तो कभी बहू को उल्टा सीधा बोलती.दिनेश जी ने बहुत समझाने की कोशिश की मगर उम्र के साथ उनकी जिद बढ़ती ही जा रही थी.थक हार कर दम्पति ने एक अवसर और लिया.इस बार एक नहीं दो बेटे हुए जुड़वां.मगर विडम्बना देखो एक बच्चा रूई के गोले जैसा, नाजुक गौरवर्ण, स्वस्थ और सुन्दर था और दूसरा बेहद कमजोर, श्याम वर्ण का.उनके नाम ही श्वेत और श्याम रख दिए गए. श्याम को बचपन से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा.माता- पिता के लिए तो दोनों संतान बराबर थी, मगर दोनों बच्चियाँ श्वेत को ही खिलाना पसंद करती, अगर दोनों बच्चे रोते तो वो सिर्फ श्वेत को ही चुप कराती, मॉं उन्हें बहुत समझाती मगर उनको ये बात समझ में ही नहीं आती.समय के साथ बच्चे बड़े हुए.घर के बाहर खेलने के लिए जाने लगे श्याम कमजोर था, इसलिए दोनों बहिने उसे साथ नहीं ले जाती, श्याम को सिर्फ माँ का भरोसा था वह उसके साथ-साथ रहता

.माँ उसके साथ खेलती, उसे शिक्षाप्रद कहानियाँ सुनाती.श्याम बहुत कुशाग्र बुद्धि का था, उसे सब जल्दी याद हो जाता था.दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे, वहाँ भी श्वेत के बहुत मित्र बन गए, सीधे साधे शरीर से कमजोर श्याम को यहाँ भी भेदभाव का सामना करना पढ़ा.बच्चे उसका मजाक बनाते और कई बार तो श्वेत भी उनके साथ मिल जाता.एक दिन वह रोता हुआ स्कूल से आया और बोला ‘माँ ! मुझे स्कूल नहीं जाना है, सब मेरा मजाक बनाते हैं, बस आप ही मुझे प्यार से रखती हैं मैं आपके ही पास रहूँगा.’ मॉं ने श्वेत को समझाने की कोशिश की ‘बेटा !श्याम तुम्हारा भाई है, तुम इसके साथ रहा करो, खेला करो’ तो वह बोला ‘मॉं कोई इसे दोस्त नहीं बनाता तो मैं क्या करूँ, मुझे दोस्तों के साथ खेलना अच्छा लगता है मैं तो उन्हीं के साथ रहूँगा.’ माँ सुनकर हक्का बक्का रह गई. उन्होंने श्वेत को समझाना व्यर्थ समझा और श्याम को प्यार से अपने सीने से लगा लिया और समझाया ‘ बेटा हर व्यक्ति में दो चीज होती है एक रूप और दूसरा गुण. रूप ईश्वर की देन है, उसमें हम कुछ नहीं कर सकते मगर गुण को विकसित करना हमारे प्रयास पर निर्भर है.अगर तुम अपने गुणों को विकसित करोगे तो एक दिन ऐसा आएगा की तुम्हारें कई मित्र बन जाऐंगे.’ सच मॉं क्या सचमुच ऐसा हो सकता है? श्याम ने आश्चर्य से पूछा.’ बिल्कुल ऐसा ही होगा बेटा, तुम्हारा रंग श्याम है इसमें तुम्हारा क्या दोष है, जिसको जो कहना हो कहने दो, उनकी बातों पर तुम ध्यान ही मत दो, तुम विद्यालय में पढ़ने के लिए जाते हो, मन लगाकर पढ़ाई करो, अपनी तरफ से किसी को अपशब्द कहना नहीं, अपनी जिव्हा खराब होती है.तुम अपना आचरण ठीक रखो और किसी से डरने की जरूरत नहीं है.ईश्वर सबको देख रहा है.’ श्याम के मन में  नई ऊर्जा का संचार हुआ और उसने कहॉ-‘ठीक है मॉं अब मैं रोज स्कूल जाऊँगा और मन लगाकर पढ़ाई करूँगा.’ माँ ने कहा ‘ठीक है बेटा मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है.’




माँ का आशीर्वाद और श्याम की लगन रंग लाई और आठवीं कक्षा में पूरे संभाग में  प्राविण्य सूची में उसका दूसरा नंबर आया  प्राचार्य जी ने पूरे विद्यालय के सामने उसकी प्रशंसा की.उसकी प्रतिभा का सब तरफ गुणगान हो रहा था, उसके साथ जिन बच्चों ने गलत व्यवहार किया वे मन ही मन पछता रहै थे.श्वेत के व्यवहार में भी परिवर्तन आया.श्याम के भी कुछ दोस्त बन गए थे. वह सभी गुरूजनों  का भी चहेता बन गया था. बारहवीं में भी वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुआ.श्वेत पढ़ाई में कच्चा था, वह बारहवीं में सिर्फ उत्तीर्ण हुआ था.श्वेत और श्याम दोनों ने एक ही कॉलेज में प्रवेश लिया. सूजी और रूही दोनों का विवाह हो गया था.

वे दोनों बी.एस सी फायनल में पहुँच गए थे. इसी वर्ष रोजी ने कॉलेज में प्रवेश लिया, रोजी बेहद खूबसूरत थी,सहज स्वभाव की प्रतिभाशाली लड़की थी,उसकी वेषभूषा साधारण, सलीकेदार  रहती. कॉलेज के ज्यादातर छात्र उसकी सुन्दरता पर मुग्ध थे, उसे अपना मित्र बनाना चाहते थे.वह सभी से बात करती थी, मगर न जाने क्यों उसका मन हमेशा गुमसुम और किताबों में खोए रहने वाले श्याम की ओर आकृष्ट हो रहा था, वह उससे बात करना चाहती थी, मगर वह कॉलेज समाप्त होते ही सीधा घर चला जाता था, उसने कभी नजरें उठाकर रोजी की तरफ देखा भी नहीं था.उसकी प्रतिभा के चर्चे रोजी ने सुन रखे थे.

रोजी के घर में उसके विवाह की चर्चा चल रही थी, मगर वह चाहती थी कि वह एक बार श्याम से बात कर ले,पता नहीं क्यों उसका मन श्याम की ओर खिच रहा था.और उसे एक दिन वह अवसर मिल गया, लाइब्रेरी में उसे किसी पुस्तक की जरूरत थी,




वह उसे लेने गई थी.वह पुस्तक लाइब्रेरी में नहीं मिल रही थी, उसने वह पुस्तक श्याम के हाथ में देखी, जो उस समय लाइब्रेरी में कोई किताब पढ़ रहा था. रोजी को बात करने का अवसर मिल गया.उसने बिना किसी भूमिका के उसकी टेबल के पास जाकर कहा-‘श्याम जी क्या आप यह पुस्तक मुझे एक दिन के लिए दे सकते है? ‘ श्याम ने नजरें उठाकर देखा उसका सौन्दर्य देख एक पल के लिए उसकी नजरें उस पर टिकी और फिर नजरें झुका कर बोला आप पुस्तक ले लिजिए मैं दो दिन बाद पढ़ लूंगा.’

फिर ऐसे ही कुछ मुलाकात होती रही, संक्षिप्त बातें कभी पढ़ाई को लेकर, कभी किसी विषय को लेकर.श्याम की शालीनता रोजी को भा गई थी, उसने अपनी माँ से बात की,माँ अपनी बेटी को जानती थी, उन्हें विश्वास था कि रोजी की पसंद गलत नहीं हो सकती.उन्होंने रोजी के पिता से बात की.दोनों ने मिलकर सलाह की और रोजी से कहा कि वो श्याम के घर का पता पूछे और कहै कि मेरे मम्मी पापा आपके माता-पिता से मिलना चाहते हैं.

रोजी ने श्याम से बात की उसे लगा हो सकता है वे श्वेत के रिश्ते के लिए आ रहै हों उसने  कई बार श्वेत के मुख से रोजी का नाम सुना था, उसने घर का पता बता  दिया.वे लोग श्याम के घर गए, आधुनिक विचार धारा के थे इसलिए रोजी को भी साथ ले गए. उन्होंने उन्होंने श्याम के माता -पिता से कहा कि ‘यह हमारी बेटी रोजी है, आपका बेटा श्याम और रोजी एक कॉलेज में पढ़ते हैं मेरी बेटी आपके श्याम को पसंद करती है, हम अपनी बेटी का रिश्ता श्याम के लिए लेकर आए हैं.अगर आपको एतराज न हो तो बात आगे बढ़ाऐं.’ श्याम के माता पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, इतनी सुन्दर लड़की और सुलझी हुई सोच का परिवार.उन्होंने कहा ‘ हमें इस रिश्ते से आपत्ति नहीं है मगर पहले हम श्याम से पूछ लें फिर आपको जवाब देते हैं.’ ‘ठीक है आप जैसा उचित समझे’.श्याम की माँ ने श्याम को सारी बात बताई तो वह बोला माँ आपने गलत सुन लिया होगा, वे लोग श्वेत के रिश्ते के लिए आए होंगे, कहाँ वो इतनी खूबसूरत और कहाँ मैं….?’




‘नहीं बेटा हमने गलत नहीं सुना, वे लोग तेरे लिए ही आए थे.  मैंने तुझसे कहा था ना कि जिस दिन तेरे गुणों की खुशबू फैलेगी उस दिन सब तेरे बहुत मित्र बन जाऐंगे और रोजी तो तेरी जीवन साथी  बनना चाहती है.अब तू बता कि तू क्या चाहता है? ‘

श्याम ने कहा  ‘माँ तुझे रोजी पसंद है ना, मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है.मेरा बी.एस सी हो गया है मगर मैं शादी उसी समय करूँगा जब मेरी अच्छी नौकरी लग जाएगी.’ माँ ने कहा ठीक है मैं उनसे कह दूँगी.’

श्याम ने बैंक की परीक्षा दी और उसमें उत्तीर्ण होकर उसकी अधिकारी वर्ग में नौकरी लग गई. श्याम और रोजी की शादी हो गई. शादी में श्याम की बहने सूजी और रोजी भी आई थी, अपनी भाभी को देखकर वह फूलें नहीं समा रही थी, अपने भाई के प्रति उन्होंने जो गलत व्यवहार किया था, उसके लिए उन्होंने अपने भाई से मॉफी मांगी तो वह बोला ‘बहिन आपके भेदभाव का ही परिणाम है कि मैं आज इस मुकाम पर हूँ, मुझे आप दोनों से कोई शिकायत नहीं है, हम सब भाई बहिन अपने माता पिता के लिए समान हैं, उन्होंने हममें कभी भेदभाव नहीं किया, हम भी अपने भेदभाव भुलाकर साथ में प्यार से रहेंगे, क्यों श्वेत भाई सही है ना?’  ‘हाँ श्याम भाई हम सब एक है’ .माता – पिता इनकी बातें सुनकर खुश हो रहै थे. पूरे परिवार में खुशी की लहर   दौड़ गई.

#भेदभाव 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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