कुछ बच्चे माता-पिता की प्रतिष्ठा धूमिल कर
उनकी इज्ज़त पर बट्टा लगा देते हैं, जिससे समाज में उनका सिर शर्म से झुक जाता है। शशि भूषण सिंह ने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि अपने बेटे निखिल की करतूतों के कारण उन्हें समाज में शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है।
शशि भूषण सिंह के पास काफी पुश्तैनी जायदाद थी, परन्तु बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से शहर में नौकरी करते थे। दोनों पति-पत्नी काफी सभ्य, सुसंस्कृत और विनम्र स्वभाव के थे। उन्हें न तो अपनी जायदाद का घमंड था,न ही नौकरी का।समाज में सभी के सुख-दुख में हमदर्द बनकर शामिल होते। उन्हें एक बेटा और दो बेटियॉं थीं।
शशि भूषण जी की दोनों बेटियॉं पढ़ने काफी होशियार थीं, परन्तु निखिल औसत विद्यार्थी था।बचपन से ही निखिल के मन में एकलौता वारिस होने की बात घर कर गई थी। निखिल के माता-पिता को उसके व्यवहार में अहंकार की बू आने लगी थी। साधारण अंकों से बारहवीं उत्तीर्ण करने पर शशि जी ने उसे बेंगलुरु के इंजिनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिलवा दिया। उन्हें उम्मीद थी कि घर से दूर रहकर निखिल पढ़ाई पर ध्यान दें सकेगा।
एक साल तो निखिल का मन पढ़ाई में लगा रहा, परन्तु दूसरे साल उसकी दोस्ती कुछ ग़लत लड़कों से हो गई,जिनका मकसद केवल माता-पिता के पैसों पर ऐश करना था।सच ही कहा गया है-‘संगति ते गुण होते हैं, संगति ते गुण जाता।’
अब पढ़ाई छोड़कर निखिल के कदम बहकने लगें। आदतें खराब होने लगीं।अपनी अय्याशी पूरी करने के लिए पिता से झूठ बोलते हुए कहता -“पापा!इस बार प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए ज्यादा पैसे चाहिए।”
शशिभूषण जी बिना सवाल किए उसे पैसे भेज देते।हर बार कोई-न-कोई झूठा बहाना बनाकर निखिल पिता से पैसे मॅंगवा लेता।दूर बसे माता-पिता को बच्चों की सही जानकारी नहीं मिल पाती है। बार-बार अधिक पैसे मॉंगने पर शशि भूषण जी को आभास होने लगा कि जरूर ‘दाल में कुछ काला’है!
पढ़ाई के चार साल बीत चुके थे, फिर भी निखिल का पिता से पैसे मॉंगना जारी था।एक दिन पैसे मॉंगने पर शशि भूषण जी ने गुस्से में कहा -“निखिल!अब तुम्हें पैसे नहीं मिलेंगे,नौकरी ढ़ूॅंढ़ो।”
ग़लत संगति में पड़कर निखिल तो पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुका था,भला उसे नौकरी कहॉं से मिलती!
कुछ समय बाद निखिल ने अपनी नौकरी लगने की झूठी बात अपने माता-पिता को बताई।अब निखिल दोस्तों के साथ मिलकर ड्रग्स का धंधा करने लगा और खुद भी ड्रग्स लेने लगा।’बुरे काम का बुरा नतीजा ‘ आखिर एक दिन निखिल दोस्तों के साथ ड्रग्स का धंधा करता हुआ पकड़ा गया।
निखिल के पिता को बेटे की करतूतों के बारे में जानकारी मिली । उन्होंने बेंगलुरू जाकर बेटे को जेल से छुड़वाया।एक जेल अधिकारी ने उन्हें सीख देते हुए कहा -“महाशय!जेल से छुड़ाने से कुछ नहीं होगा। ड्रग्स छुड़वाकर बेटे को एक
अच्छा इंसान बनाईए।”
शशिभूषण जी ख़ामोश -से सिर झुकाकर जेल अधिकारी की बात सुनते रहे।उनकी इज्जत पर तो बट्टा लग ही चुका था,अब उन्होंने बेटे को सुधारने का प्रण कर उसे वापस अपने शहर ले आऍं।वहॉं उसे नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करवाया। बिस्तर पर बेहोश पड़े बेटे को देखकर शशिभूषण दम्पत्ति की ऑंखें भींग उठतीं हैं। नशा मुक्ति अधिकारी उनके मनोभावों को समझते हुए कहता है -” धैर्य रखिए!हो सकता है कि ठीक होकर निखिल अब आपकी इज्जत पर बट्टा न लगाकर आपका, परिवार का नाम ही रोशन कर दें! “
शशिभूषण दम्पत्ति उम्मीद भरी नजरों से उसकी ओर देखते हैं। उम्मीद पर ही तो दुनियॉं कायम है।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा स्वरचित।