भले ही आप मुझे पराई समझते हैं पर मैं तो आपको अपना समझती हूॅं…. – भाविनी केतन उपाध्याय 

आ गए आप ? कैसा रहा दिन ? चलिए जल्दी से हाथ मुंह धो लिजिए…. आप की मनपसंद अदरक, इलायची वाली चाय और वेजिटेबल कटलेट तैयार हैं..” मनीषा ने चहकते हुए अपने पति जतिन से कहा।
” क्या नहीं आना था मुझे घर ? तुम्हें क्या करना है जानकार मेरा दिन कैसा रहा ? चाय नाश्ता जब मन करे खा लूंगा और नहीं रखना है तो किचन में वैसे ही छोड़ दो…” जतिन ने गुस्से में कहा।
” आप किस तरह की बातें कर रहे हैं… मैं तो नोर्मल ही आप से जो रोज़ बात करती हूं वहीं तो कर रही हूं…” मनीषा ने कहा।
” रोज़ रोज़ पूछने की क्या जरूरत है ? इन्सान ऑफिस से घर ही आएगा ना ?” मनीष ने झुंझलाते हुए कहा तो मनीषा ने बात को बढ़ावा देने की बजाय जतिन के हाथों में नेपकिन थमाते हुए किचन की ओर चल दी। मनीषा गरमागरम कटलेट सेंक कर प्लेट में निकाल रही थी कि पीछे से डरी सहमी सी उसकी बेटी नव्या ने आकर कहा,” मम्मी, पापा इतने गुस्से में क्यों है ? आज तो मुझे भी प्यार नहीं किया ? क्या कुछ हुआ है आप और पापा के बीच ?”
मनीषा ने नव्या को प्यार से गले लगा लिया फिर उसके हाथ में कटलेट और चटनी की प्लेट थमाते हुए कहा,” नहीं लाड़ो, हमारे बीच कुछ नहीं हुआ है…. शायद पापा को ऑफिस का काम का प्रेशर है…. ऐसा करिए आप टीवी देखते हुए कटलेट खाइए… मैं तब तक पापा को चाय नाश्ता देकर आती हूॅं।”



नव्या अपनी प्लेट लेकर चली गई और मनीषा जतिन का चाय नाश्ता लेकर अपने कमरे में आई…देखा तो जतिन बाल्कनी में खड़ा है… चाय नाश्ते को साइड टेबल पर रख मनीषा ने बाल्कनी में आकर जतिन के कंधे पर हाथ रखा तो जतिन ने गुस्से में कहा,” मुझे यहां भी चैन लेने नहीं दोगी ?”
मनीषा ने बिना कुछ कहे जतिन का हाथ थामते हुए लगभग खिंचकर कमरे में लाकर बिठा दिया और कहा,” पतिदेव, एक बात कान खोलकर सुन लिजीए,ये घर मेरा है… मुझे किस को चैन देना है या नहीं वो मुझे पता है…. अगर आप को मेरे घर में इस तरह आने का कोई हक़ नहीं है…. अगर हो सके तो पतिदेव, आप अपना गुस्सा बाहर उतार कर ही आइए…. आप के गुस्से की वजह से हमारी बेटी डरी सहमी सी हो गई है और उसके मासूम दिमाग में ना जाने कितने सवाल खड़े हो गए इसलिए आइंदा आप की जो भी परेशानी हो शांति से सुलझाइए और मुस्कुराते हुए वापस आइए…
और एक बात ऑफिस का इतना ही काम और प्रेशर सभी को रहता है… मुझे भी रहता है पर मैंने तो कभी भी आप की तरह ऐसा नहीं किया ? मैं तो साथ में घर और बेटी दोनों को संभालती थी हूॅं… आप की यह पहली गलती है ये सोचकर माफ़ कर देती हूं पर आइंदा हमारी बेटी के सामने ऐसा दुबारा ना हो…. आज आप ने मेरी बेटी के साथ साथ मेरा दिल भी तोड़ दिया…” मनीषा ने आंखों में आसूं लिए कहा।
” मुझे माफ़ कर दो मनु ,ऑफिस में दो तीन कर्मचारी लगातार छुट्टी पर जा रहे हैं तो मेरा काम बढ़ गया है,मेरा काम की वजह से इतना प्रेशर बढ़ गया है कि मुझे गुस्सा आ रहा है… कभी कभी तो काम इतना ज्यादा हो जाता है कि ठीक से लंच भी नहीं कर पाता… थकान भी बहुत हो रही है और उसमें आज एक फाइल नहीं मिल रही थी जिसको ढूंढते हुए शाम हो गई…

अब तुम ही बताओ मेरा गुस्सा होना लाजमी है या नहीं?” जतिन ने मनीषा का हाथ थामे हुए कहा।

” अब उसमें हम कर भी क्या सकते हैं जतिन ? हम नौकरी वालों की ज़िन्दगी तो कभी धूप कभी छांव सी है… कभी काम ज्यादा तो कभी कम…. बस हमें उससे कैसे निपटते हैं वो हम पर निर्भर है… जब ज्यादा काम है तो शांति से एक एक करके काम निपटाते जाइए और कम है तो सुकून से करिए…. गुस्सा होने से हमारा ही नुकसान होता है इसलिए गुस्से पर काबू पाने की कोशिश किजीए और परेशानी को दूर करने का प्रयास किजीए… भले ही आप मुझे पराई समझते हैं पर मैं तो आपको अपना समझती हूॅं इसलिए दिल में कुछ भी ना रखकर आप को सब बता देती हूॅं..… अगर आप मुझे अपना मानते हैं तो आप अपनी परेशानी शेयर कर सकते हैं .….” मनीषा ने कहा तो जतिन ने उसे गले लगा कर कहा,” मैं अपनी परेशानी तुम्हें नहीं बताऊंगा तो और किसे बताऊंगा ? मेरा तुम्हारे और हमारी बेटी के सिवा है ही कौन दुनिया में ?”
स्वरचित और मौलिक रचना ©®
भाविनी केतन उपाध्याय
धन्यवाद,

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