भाई-भाई *-  पुष्पा जोशी

विषय #अपने_तो_अपने_होते_हैं

आचार्य चिन्मय जी और मालिनी जी का परिवार एक आदर्श परिवार था.समाज और मौहल्लै में उनकी अच्छी साख थी. चिन्मय जी संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे.हवन पूजन, वैवाहिक कार्यक्रम के सभी विधान, कथा वार्ता सभी में उन्हें महारत हांसिल था, उन्हें ज्योतिष विद्या का भी ज्ञान था, सब लोग अपनी छोटी बड़ी उलझन लेकर उनके पास आते और वे,उनकी बातों का समाधान करते.उनका पंडिताई का पेशा था, और इसे वे पूरी ईमानदारी से करते.आमदनी अच्छी थी और गृहस्थी की गाड़ी सुचारू रूप से चल रही थी.उनके बेटे और बेटी संस्कारी थे.सभी में आपस में बहुत प्रेम था .लोग उनके परिवार के प्रेम और शांति पूर्ण वातावरण का उदाहरण देते थे.मगर कहते हैं ना समय एक जैसा नहीं रहता एक छोटी सी चिनगारी ने उनके घर की शांति को भंग कर दिया.चिनगारी छोटी थी, मगर उसे हवा देने वालों ने दोनों भाइयों के दिल की दूरी को बढ़ा दिया,रूपेश और देवेश दोनों के मन में प्रेम के स्थान पर द्वेश पनपने लगा. हुआ यूँ कि उनकी बहिन राधिका की शादी में.उनके समाज की एक लड़की आई थी कीर्ती, बेहद खूबसूरत, मृदुभाषी और समझदार थी, दोनों भाई उसे मन ही मन चाहने लगे.आचार्य जी के यहाँ पहली शादी थी, बहुत धूमधाम थी, शादी के कार्यक्रम पूरे सप्ताह चले, कीर्ती ने सारे कार्यक्रम में हिस्सा लिया, दोनों भाई के मन में उसके प्रति प्रेम का अंकुर पनप रहा था, और दोनों भाई एक दूसरे की मानसिकता से अनभिज्ञ नहीं थे. विवाह सम्पन्न हो गया राधिका अपने ससुराल बिदा हो गई, कीर्ती भी अपने माँ पापा के साथ अपने गाँव चली गई. 

बेटी के विवाह की व्यस्तता के चलते मालिनी जी का ध्यान इस तरफ नहीं गया,व  विवाह के बाद उड़ते-उड़ते यह खबर मालिनी जी तक  पहुँची, उन्होंने चिन्मय जी से बात की. कुछ दिन यूंही व्यतीत हो गए. अवसर देखकर दोनों भाइयों ने अलग – अलग समय पर अपनी मंशा अपने माता-पिता से कही.चिन्मय जी विद्वान व्यक्ति थे, वे जानते थे कि अगर दोनों मेसे किसी एक की शादी कीर्ती के साथ की तो दोनों भाइयों के रिश्तों में खटाई पढ़ जाएगी.उन्होंने  दोनों भाइयों के सामने बिना लाग लपेट के अपना निर्णय सुना दिया और कहा – ‘बेशक कीर्ती बहुत अच्छी लड़की है मगर तुम दोनों उससे शादी करना चाहते हो, तो यह संभव नहीं है. मैं तुम दोनों को इसकी इजाजत नहीं दे सकता.पिता का प्रभाव इतना था कि दोनों कुछ नहीं बोल सके. समय के साथ अच्छी सर्वगुण सम्पन्न लड़कियां देख कर चिन्मय जी ने दोनों का  विवाह कर दिया.दोनों लड़किया सभ्य और सुशील थी घर के माहौल के अनुरूप ढल गई. दोनों बेटों की गृहस्थी सुचारू रूप से चल रही थी.मगर कीर्ती के प्रति उनका आकर्षण आज भी बना था और दोनों के मन में यह कील गढ़ी थी . रूपेश सोच रहा था कि क्या देवेश अपने बड़े भाई की इच्छा का मान नहीं रख सकता था वहीं देवेश सोच रहा था कि क्या रूपेश भाई मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते थे. एक छत के नीचे रहते हुए दोनों के दिल के बीच एक खाई पड़ गई थी.  जिसे उनके कुछ सगे संबंधी जो इस परिवार की प्रतिष्ठा से जलते थे हवा देकर बड़ा रहे थे.माता पिता के देहांत के बाद घर दो भागों में बट गया.दोनों की पत्नियों ने बहुत समझाया, दोनों के बच्चे भी बिछड़ने पर दुखी हुए.मगर दोनों भाई अपनी जिद पर अड़े थे.




अलग होने के बाद दोनों को अकेले गृहस्थी चलाने में परेशानी हो रही थी.जब कभी अकेले में बैठते तो अपना बचपन याद आता, माता-पिता भाई-बहिन के साथ बिताया समय याद आता, उनका प्यार याद आता और ऑंखें नम हो जाती. विचार आता कि हम क्यों अलग हुए.कीर्ती की शादी हो गई वो अपने घर में मस्त है.हमारी गृहस्थी भी ठीक ठाक चल रही है.समय के साथ कुछ पुरानी ख्वाइशों पर धुंध जमने लगती है, और व्यक्ति वर्तमान में जीने लगता है. दोनों को अपनी गलती  समझ में आती है, फिर से मिलना चाहते हैं, मगर अब पहल कौन करे, यहाँ अहं की दीवार खड़ी हो जाती है.

एक दिन रूपेश और उसका परिवार छुट्टियां मनाने के लिए घूमने जा रहै थे.रास्ते में उनकी कार सामने से आ रहै डम्पर से टकरा गई. भयंकर दुर्घटना हुई उसके दोनों बच्चे राजू और बिन्नी को चोट आई.रूपेश के सिर पर चोट लगी थी, बहुत खून बह गया था और उसे कुछ भी होश नहीं था. रमा भी घायल हो गई मगर उसे सुधबुध थी, उसने लोगों से मदद मांगी.एक भले मानुष ने उन्हें अपनी गाड़ी में अस्पताल पहुँचाया, रमा ने एक फोन अपने देवर देवेश को किया और स्थिति बताते हुए कहा- ‘भैया और जो भी बातें हैं हम बाद में करेंगे अभी हमें आपकी मदद चाहिए आप जल्दी आ जाए.’ रमा ने उन लोगों को भी फोन लगाया जिन पर रूपेश को बहुत ज्यादा विश्वास था.




देवेश और स्वाति तुरन्त अस्पताल आए, देवेश ने कहा-‘भाभी आप चिन्ता न करें स्वाति को रमा के पास छोड़ वो डॉक्टर से बात करने गया.स्वाति ने रमा के घावों पर मरहम पट्टी करवाई.रूपेश का ब्लड बहुत बह गया था, और उस ग्रुप का ब्लड मिल नहीं रहा था.देवेश ने अपने ब्लड का टेस्ट कराया, भाई का रक्त रंग लाया और रूपेश खतरे से बाहर आ गया.डॉक्टर ने देवेश से कहा कि बेहोशी की हालत में वे आपका ही नाम पुकार रहै थे, देवेश की ऑंखें नम हो गई थी और उसने प्रण कर लिया था कि वह अपने सारे गिले शिकवे भूलकर, भाई की और उसके परिवार की सहायता करेगा. रूपेश को जब होश आया और उसने अपने भाई को अपने पास देखा तो उसका हाथ कसकर थाम लिया और कहा ‘ भाई अब मुझे छोड़ कर कहीं मत जाना’ ‘कहीं नहीं जाऊँगा भाई’ . आप सबके सिवा मेरा है कौन? ‘

रमा ने कहा-‘ इतने लोगों को फोन लगाया कोई मदद के लिए नहीं आया, आज अगर भैया नहीं आते तो?’ कहते हुए रमा का गला भर आया. ‘ कैसे नहीं आता भाभी हमारा एक परिवार है’.रूपेश ने कहा सही है भाई  –  “अपने तो अपने होते हैं”

 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक

 

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