भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती- अर्चना कोहली “अर्चि

“मम्मा आज मैंने अस्पताल में पापा को देखा। बहुत बूढ़े-से लग रहे थे। उन्होंने मुझे नहीं पहचाना शायद। दादी बीमार है। उनके इलाज के लिए आए थे। बहुत शोर कर रहे थे, दादी के इलाज के लिए”। जाह्नवी ने अपना कोट उतारते हुए कहा।

 

“तुमने पहचान लिया उनको”, अनामिका ने हैरानी से पूछा।

 

“भूल गई, जब हम घर छोड़कर आए थे, साथ में एक फोटो भी लाए थे। आपकी शादी की। उसमें दादा जी की फोटो थी। इसलिए आप लाई थी। उस फोटो में नाना जी भी है। कुछ समय तक आपने कमरे में लगाकर रखी। फिर उतारकर स्टोर रूम में रख दी।

हाँ बिटिया। शुरू में जब घर छोड़कर आई तो दर्द का दिल में एक सैलाब था। पापा और दादी की फोटो देखकर बहुत दुख होता था, इसलिए स्टोर रूम में छिपाकर रख दी”।

 

“वैसे मम्मा।  आप फोटो में बिलकुल हीरोइन लगती थी। वैसे हीरोइन तो आज भी लगती हैं”। जाह्नवी ने हँसते हुए कहा।

 

“ज्यादा मस्का न मार”। कहते हुए अनामिका ने जाह्नवी के सिर पर हलकी-सी चपत लगाई।

“वैसे मम्मा सब सच ही कहते हैं, भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती”। देखा मैनें दादी और पापा की क्या हालत है आज”।

 

“वैसे जाह्नवी, क्या  हुआ है माँजी को”।

 

“सुना है कैंसर है। आखिरी स्टेज है, पर मम्मा आप क्यों परेशान हो! जो जैसा करता है, वैसा ही मिलता है। फिर हमारा रिश्ता ही क्या है उनसे। जिन्होंने मेरे पैदा होने से पहले मुझे मारने की कोशिश की। आप पर इतने जुल्म किए, उनके प्रति इतनी सहानुभूति क्यों! फिर आपका तो तलाक भी हो चुका है”।

 



“बिटिया। पता है पहले वो शहर का सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित परिवार था। तेरे पिता जी के बारे  में तो कहा जाता था,  वो सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए थे। क्योंकि उनके पैदा होने के बाद ही तेरे दादा जी का व्यापार बहुत तेज़ी से ऊपर चढ़ा था”।

 

“बिटिया। बहुत घमंड था अपने पैसे  पर तेरे पिता जी और दादी को। दादी बहुत ऊँचे घराने की थी, तभी उनके इस तरह के विचार थे”। 

“मम्मा, फिर आपकी पापा से कैसे शादी हुई? क्या लव मैरिज थी। नाना जी तो उनकी तुलना में उन्नीस थे, जैसा मैंने देखा है”।

 

“नहीं रे। अरेंज मैरिज थी। दादा जी तेरे नाना जी के पक्के दोस्त थे। उनकी जिद से मेरा और तेरे पिता का विवाह तो हो गया लेकिन तेरे पिता और दादी ने मुझे दिल से नहीं अपनाया। कटाक्षों की बौछार से मेरा दिल तार-तार कर देते थे”।

 

“मम्मा दादा जी क्या कुछ नहीं कहते थे”।

 

“बहुत कहते थे। पर कुछ कर नहीं पाते थे। इसी गम में वे चले गए। मेरा वही सहारा थे। उनके जाने के बाद तो मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा। मेरा और उनका तो बस देह का रिश्ता था। रात के अंधकार में नोचते-कचोटते। फिर वही अपमान”।

 

“आपने उस इंसान से अलग होने का कब सोचा”।

 

“तमीज से बात करो। आखिर तेरे पिता हैं”।

 

“कैसे पिता। क्या उन्होंने मेरे साथ वक्त गुजारा। क्या मेरे आने पर खुशी मनाई। कभी गोद में उठाया।  उन्होंने तो दादी की बातों में आकर मुझे मार देना चाहा। आपने ही एक बार बताया था। जब मैं पापा के पास जाने की ज़िद कर रही थी।  अच्छा बताओ न मम्मा, कैसे तुमने अलग होने का सोचा”।

 



“तुम्हारे लिए बिटिया। सोचा था, तुम्हारे आने से बदल जायेंगे। लेकिन नहीं। फिर रोज़ रात के दर्द से भी परेशान हो चुकी थी। इसलिए मैने ही उनसे अलग होने का निर्णय किया। आपसी रजामंदी से तलाक हो गया”।

 

“मम्मा, पापा ने दूसरी शादी कर ली थी”। वो तो नज़र नहीं आई”!

 

“हाँ बिटिया। अखबार में पढ़ा था। किसी भावना नाम की लड़की से विवाह हुआ था। वो तो धोखे से सब लेकर भाग गई, मुझे कहीं से पता चला था। अलग होने के बाद बिटिया मैंने बहुत दुख उठाए थे। पढ़ी-लिखी थी। इसलिए स्कूल में हिंदी की शिक्षिका बन गई। शुरू में ट्यूशन भी की। सिलाई की। नाना जी ने भी मदद की। पर मैं नानाजी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए काम किया। अलग कमरा लिया। नाना जी ने दूसरे विवाह के लिए बहुत कहा, पर पहले विवाह से मिले दर्द के कारण हिम्मत ही नहीं जुटा पाई। फिर तू तो थी न मेरे साथ”।  

 

“मम्मा। आपने मेरे लिए बहुत मेहनत  की। इसी कारण आज मैं डॉक्टर हूँ”। जाह्नवी ने अनामिका के गले में बाहें डालते हुए कहा। 

 

 “पता है बिटिया। मैंने खर्चे के लिए तेरे पिता से कुछ भी नहीं लिया। न अपने लिए ना तेरे लिए। जिसने मेरे और तेरे जीवन को दुख की बदली बना दिया हो, उससे कुछ भी लेना मुझे गवारा नहीं था। वैसे बिटिया तुझे एक बात कहनी है।  मानेगी। मना मत करना”।

 

“क्या मम्मा”?

 

“मैं चाहती हूँ, जितना हमसे हो सके, उनकी मदद कर दे। उन्होंने जो किया, उसकी सज़ा उन्हें मिल चुकी है। चाहे जैसा भी उन्होंने किया। हैं तो वो तेरे पिता और दादी।  वैसे भी दादी के रह ही कितने दिन हैं।  वक्त ने उन्हें पहले ही एक सीख दे दी है।

 

अर्चना कोहली “अर्चि”

नोएडा (उत्तर प्रदेश)

#वक्त

 

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