भाभी मैने चोरी नही की – ममता गुप्ता

“उसके अंतर्मन में हमेशा जंग छिड़ी रहती….की हम ग़रीब हैं तो क्या कोई हमारा अपना सम्मान नही है,अमीर लोंगो को हमेशा ग़रीब लोग चोर ही क्यो नज़र आते हैं…।अरे जब हम लोगों को किसी भी कार्यक्रमों में बुलाने से शर्मिंदगी महसूस होती है,तो फिर बुलाते ही क्यों…? मालती मन ही मन मे एक जंग चल रही थी…!!

दरअसल मालती के पति रमेश एक छोटी सी परचून की दुकान करके अपना जीवनयापन करते हैं, साथ मे ही मालती भी सिलाई का काम करके,घर के खर्चे लायक पैसे तो कमाई ही लेती है…।

मालती के मायके में माँ पिता तो थे नही,दो भाई व भाभी थी…एक भाई की शादी हो चुकी थी,दूसरे भाई की शादी होने वाली थी…।मालती की भाभी सुमन अपनी बहनों को ज्यादा तवज्जो देती थी,ननद को नही,मालती को अपने मायके न जाएं हुए कभी कभी साल साल भर हो जाता था,वह इन्तजार करती रहती थी कि काश..कभी तो झूठे मुँह से ही फोन करके भाभी कह दे कि “दीदी कब आ रही हो मायके…। लेकिन मालती की उम्मीदों पर पानी फिर जाता ऒर उसका इंतजार सिर्फ इंतजार बनकर रह जाता।

एकदिन मालती के भाई अनुज का फोन आया कि “दीदी आपको शादी में जरूर से जरूर आना है।

मालती के मायके में दो महीने पहले छोटे भाई की शादी थी…छोटे भाई की शादी में मालती और उसके परिवार वालो को बुलाया गया…।

मालती जब अपने छोटे भाई की शादी में पहुँची तब उसकी भाभी ने उसकी तरफ मुँह सिकुड़ते हुए कहा-अरे दीदी कम से कम आज के दिन तो बढ़िया ,महँगी सी साड़ी पहन आती,आजकल तो एक से एक लेटेस्ट डिजाइन की साड़ियां मिलती है, और ये क्या जीजू को तुमने जोकर की तरह कपड़े पहना रखे हैं, लगता है शादी का कोट हैं, जो छोटा हो गया हैं, । भाभी की बातें सुनकर लगा जैसे वह मालती की गरीब   होने का मज़ाक बना रही है…

सुमन ने अपनी ननद और नन्दोई की इंसल्ट करने में कोई कमी नही छोड़ी फिर दिखावे के लिए बोली..अरे !! दीदी मेरी बातों का बुरा मत मानना,

यह शब्द सुनकर उसके अंतर्मन में एक जंग छिड़ी रहती, की क्या इस शादी में मुझे इसलिए बुलाया की मेरी इंसल्ट कर सकें… हमारा मजाक उड़ा सकें…आख़िर क्या हक हैं भाभी को सभी के सामने हमारा मजाक बनाने का.?




.मालती के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था…वह अपनी भाभी को जवाब देना चाहती थी लेकिन पति रमेश ने उसका हाथ पकड़ कर उसे इशारों में मना कर दिया…।

मालती अंदर ही अंदर गुस्से को पी गई…!! और शादी में आये हुए रिश्तदारों से मिलने लगी…आस पड़ोस के लोगों ने मालती से पूछा कि-अरे मालती तुम्हारी शादी क्या हुई तुम तो मायके का रास्ता ही भूल गई…अरे कभी कभी तो आ जाया करो अपने भैया भाभी से मिलने..तेरी भाभी बेचारी यही कहती रहती हैं कि मालती दीदी को हम तीज त्योहार पर फोन करते हैं आने के लिए…लेकिन कभी आती ही नही है।

पड़ौसन की बात सुनकर मालती ने कहा- आया वही जाता हैं जहाँ मान सम्मान हो,बिन बुलाए आकर अपनी बेइज्जती कराने से अच्छा है, अपने घर पर ही रहूं…कभी भाभी ने फोन किया होता तो जरूर आती लेकिन शादी बाद मेरे अपनों ने ऐसा पल्ला झाड़ा की जैसे हम उनके कुछ लगते ही नही है। आज शादी में बुलाया तो चली आई.वरना नही आती मालती ने सीधे मुँह पर सच बोलते हुए कहा।।

तभी वहाँ सुमन भाभी आ गई ऒर मालती को एक बैग देते हुए कहा कि-दीदी आप इस बेग का ध्यान रखना, इस बैग में कुछ क़ीमती सामान व नोटों की गड्डी हैं,जरा अच्छे से ध्यान रखना। मालती ने मना किया की मुझसे इस बेग की देखभाल नही होगी लेकिन सुमन ने जबतदस्ती मालती के ऊपर बेग की ज़िम्मेदारी सौप दी। बैग का ध्यान रखने के लिए मालती उस बेग को एक जगह लेकर बैठ गई…पति रमेश मेहमानों से मिलने व शादी के कुछ काम मे व्यस्त हो गए..।

मालती अपनी ज़िम्मेदारी बड़ी शिद्दत से निभा रही थी..। शादी के दिन ही सगाई का प्रोग्राम रखा गया था,पहले सगाई फिर शादी …पण्डित जी ने दूल्हे दुलहन को एक दूसरे को अंगुठी पहनाने को कहा-तभी सुमन मालती के पास गई औऱ बेग में से अंगूठी निकालने लगी तो,उस बेग में दुल्हन की अंगूठी नही थी…अंगूठी न मिलने पर सुमन ने मालती से कहा-दीदी इस बैग में से सोने की अंगूठी ग़ायब हैं, कहि आपने तो नही चुरा ली…सुमन ने अपने पति अनुज को बुलाया ओर कहा-देखो जी मैने अंगूठी इसी बैग में रखी थी,और यह बैग मैने दीदी को संभाला था,अब सोने की अंगूठी इस बैग में नहीं है…अंगूठी चोरी होने की खबर आग की तरह फैल गई… सभी लोगों की निगाहें मालती पर ही टिकी हुई थी…जैसे अंगुठी मालती ने चुराई हो..मालती ने कहा -भाभी आपने मुझे बैग जैसे दिया,मैने उसी तरह से रखा, मैने इसे नही छेड़ा और नही खोलकर देखा…मैने अंगुठी की चोरी नही की है…सच में मैंने अंगुठी नही चुराई ।।

आप लोग ठीक से देखेगी अंगुठी बेग में ही होगी…मालती ने कहा।।

मैने बेग को खूब अच्छे से देख लिया इसमें अंगुठी नही है… अब वहां इकट्ठे लोग तरह तरह की बाते बनाने लगे कि-इसे शर्म नही आई अपने ही भाई के घर मे चोरी करते हुए।।

लगता हैं दीदी ने अंगुठी नन्दोई जी को देकर घर भेज दिया या फिर उस अंगुठी को छिपाने गए हैं तभी नन्दोई जी नजर नही आ रहे…सुमन ने नजर घुमाते हुए कहा।।




सच कह रही हूं भाभी मैने चोरी नही की…मैं गरीब जरूर हूँ लेकिन चोर नही…आखिर आप मुझ पर चोरी का इल्जाम लगाकर साबित क्या करना चाहती हो…आप सब मेरा यकीं कीजिए मैने चोरी नही की…मालती चीख़ चीखकर कह रही थी मैं चोर नही हूँ मालती की आवाज सुनकर उसका पति आया जो इस वृतांत से अनजान था…अनुज अपने ही जीजा की तलासी लेने लगा…लेकिन कुछ नही मिला।।

आखिर अंगूठी गई तो गई कहा-तभी सुमन की बहन जो ब्यूटी पार्लर तैयार होने गई थी..वह पार्लर से लौटी और गार्डन में भीड़ इकट्ठा देख झठ से वहाँ आई…क्या हुआ है यहाँ..?

आखिर यहाँ इतनी भीड़ क्यो है…सुमन की बहन नेहा ने सवाल किया।

तभी सुमन ने कहा -क्या बताऊँ मैने अपनी ननद को बैग संभालने दिया उसमे सोने की अंगूठी थी…सोने की अंगुठी देख ननद बाई का मन फिर गया उन्होंने बेग में से अंगुठी चोरी कर ली…और झूठ बोल रही हैं कि चोरी नही की।।

तभी नेहा बोली अरे!!जिज्जी वो सोने की अंगूठी तो आपने मुझे रखने के लिए दी थी…आपको शायद भूल गई हो…मैं जब पार्लर जा रही थी तब आपने ही कहा था कि नोटों की गड्डी के साथ यह सोने की अंगूठी रखना ठीक नही होगा कभी पैसे निकालेते  वक़्त गिर गई तो आफत आ जायेगी इसलिए आपने वह अंगूठी मुझे रखने के लिए दे दी। मैं अभी लेकर आई अंगूठी। नेहा ने कहा।

अब सभी के सामने सबकुछ साफ था..सुमन और अनुज का सिर सभी के सामने झुका हुआ था…दोनों मालती और रमेश के आगे हाथ जोड़कर माफी मांगने लगे …हमे माफ् कर दो बिन सोचे समझे आप लोगों को हमने ग़लत समझा।

लेकिन मालती के अंतर्मन में गुस्से और अपमान का ज्वालामुखी फुट रहा था… उसने सीधे मुँह कहा तुम लोगों को हमारा अपमान करना था जो तुमने कर दिया… अब माफी मानकर क्यों अपने आप को शर्मिंदा कर रहे हो…मैने कितनी बार कहा कि मैंने चोरी नही की लेकिन मेरी तुमने एक नही सुनी…मेरे साथ साथ मेरे पति के ऊपर भी इल्जाम लगा दिया ।




मैं न तो अपना अपमान सहन कर सकती हूँ ऒर न ही मेरे पति का…जब तक सहन करने की हिम्म्त थी करती रही लेकिन अब बात मेरे और मेरे पति के आत्मसम्मान की है… तो मैं आज से इस घर से रिश्ता तोड़ती हूँ जहाँ रिश्तों का कोई मोल नही। मुझे ऐसे मायके की जरूरत नही।

मुझे कभी अपने भाई से यह उम्मीद नही थी कि वो भी मुझे चोर समझने लगेगा…लेकिन समझ आ गया जब लोगों की आंखों पर दौलत का अहंकार छाया रहता है जब उन्हें हर गरीब व्यक्ति चोर ही नजर आता है…मालती ने वो अपनी सारी भड़ास निकाल दीक्योंकि मालती की हालत उस वक्त ऐसी थी काटो तो खून नही।। मालती अपने भाई भाभी से रिश्ता तोड़कर वहाँ से चली गई।

सुमन और अनुज माफी मांगते ही रह गए लेकिन मालती ने उन्हें कभी माफ नही किया…क्योंकि उसदिन मालती के स्वाभिमान को ठेस लगी थी..।

वहाँ मौजूद लोग सुमन को ही दोष देने लगे कि तुम्हे पहले सभी से पूछताछ करनी चाहिए थी,और किसी कमरे में ले जाकर फिर मालती से पूछती ऐसे सभी के सामने पूछना गलत था,मालती की बात पर एक विश्वास तो करती । सच में सुमन ने मालती के साथ बहुत बुरा किया।।

जब भी मालती को यह बातें याद आती है आज भी उसके अन्तर्मन में एक जंग छिड़ी रहती हैं कि आखिर क्यो मेरे अपनों ने मेरे साथ ऐसा किया।।।

 

दोस्तों क्या मालती ने अपने भाई भाभी से रिश्ता तोड़कर ठीक किया या नही…मेंरे विचार से मालती ने बिल्कुल ठीक किया ऐसे भाई भाभी से क्या रिश्ता रखना जिन्हें अपने लोगों पर ही विश्वास नही ….हर वक्त अपमान का घुट पीने से अच्छा है ऐसे लोगों से रिश्ता ही तोड़ देना जो सिर्फ दौलत के घमंड में चूर रहते है।। यह मेरे अपने विचार हैं।

क्या आप मालती के फैसले से सहमत हैं तो,कृपया प्रतिक्रिया जरूर दे।

यह कहानी पूर्णयता मौलिक व स्वरचित हैं, इस कहानी के माध्यम से मेरा मकसद किसी को ठेस पहुँचाना नही है कृपया कहानी को कहानी के रूप में ही पढ़े अन्यथा न लें।।

#स्वाभिमान

ममता गुप्ता

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!