बेटी- रूद्र प्रकाश मिश्रा

 ” इस बार भी बेटी ही हुई ” । ये तीसरी बेटी हुई थी इस घर में और उसके होते ही ये एक पंक्ति पता नहीं कितनों के मुँह से निकली होगी । क्या मर्द , और क्या औरत , सभी बस इसी एक वाक्य को दुहरा रहे थे । पता नहीं , पोते का मुँह देख भी पाऊँगी या नहीं , या ऐसे ही भगवान के पास चली जाऊँगी बोलते – बोलते ही । ये बोलते हुए दादी मानो भूल ही गई थी , कि वो भी एक बेटी ही थी ।

           आस – पड़ोस वाले भी तो मानो कितने बड़े शुभचिंतक हो जाते हैं कभी – कभी अचानक ही । हाँ भैया , एक बेटा तो होना ही चाहिये , नहीं तो बुढ़ापे में मुक्ति कैसे मिलेगी । चर्चाओं का दौर यहाँ – वहाँ गर्म रहा कुछ दिनों तक । फिर धीरे – धीरे सब शान्त हो गया ।

              इन सब बातों के बीच शायद सब भूल ही गए थे कि बच्ची के माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी ये सब सुनकर । खैर , समय धीरे – धीरे और आगे बढ़ा और लगभग एक साल बीत गया । अनीता अब इन सब तानों को सुन – सुनकर इतनी अभ्यस्त हो गई थी कि अब कुछ भी सुनकर उसे बुरा नहीं लगता था । जीवन धीरे  – धीरे एक बार फिर से सामान्य हो चला था । समय के साथ उसके मन के घाव भी भर चले थे ।

                 सुनो , हम इस बार कोई रिस्क नहीं लेना चाहते । मतलब , उसके पति ने उससे पूछा – रिस्क नही लेना चाहते का क्या मतलब हुआ ?  अनीता ने जबाब दिया – मतलब कि इस बार बेटी नहीं चाहिये । इस बार हम पहले ही जाँच करवा लेंगे कि कोख में क्या है , बेटा , या बेटी ।और अगर बेटी निकली , तो उसे किसी नर्सिंग होम या किसी डॉक्टर के पास जाकर गिरवा देंगे । लेकिन , उसके पति ने कहा – ये गलत है और गैर कानूनी भी । लेकिन – वेकिन  कुछ नहीं यही करेंगे इस बार , अनीता ने जबाब दिया ।

          और हुआ भी यही । थोड़े ही समय बाद दोनों पति – पत्नी किसी डॉक्टर से मिले । इस बार भी बेटी ही होती । वही हुआ , जो पहले से तय था । साथ ही साथ इस बार अनीता ने और ज्यादा बच्चा नहीं होने का ऑपरेशन भी करवा लिया था । अब सब निश्चिन्त हो चुका था जीवन में ।

                        समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था । एक दिन अनीता ने अपने पति से कहा , सुनो न , नॉन – वेज खाए कितने दिन हो गए न , आज खाते हैं । ठीक है , उसके पति ने कहा । आज ऑफिस से वापस आते समय लेते आऊँगा ।शाम हुई , खाना बना और सब खाने बैठे । अनीता का ध्यान अचानक ही अपनी थाली की तरफ गया , उसने गौर से अपनी थाली में पड़े रोटी की तरफ देखा । लगा कि जैसे उसकी तरफ कोई देख रहा हो । ” माँ ” ये एक आवाज सी मानो उसके कानों में गूँज गई । उसने अपनी बेटियों से पूछा – क्या तुम लोग मुझे आवाज दे रही हो । नहीं , हमने नहीं दिया । उसकी बेटियों ने जबाब दिया । क्या हुआ ,   तुम कहाँ खो गई , खाना खाओ , उसके पति ने कहा । उसे बड़ी अजीब सी एक आहट फिर महसूस हुई अपने मन में । वह मानो जैसे खो गई थी किसी ख्याल में । ऑपरेशन रूम की वो बात जो डॉक्टर से उसने की थी मानो आज अचानक ही उसके जेहन में ताजा हो आई थी ।

            ” डॉक्टर मेम , एक बात पूछूँ ?  हाँ , पूछो डॉक्टर बोली । आप मेरी कोख की भ्रूण को कैसे हटाएंगी , अनीता ने पूछा । क्यूँ , तुम जानकर क्या करोगी , डॉक्टर ने पूछा । बस , ऐसे ही , अनीता बोली । बस ज्यादा कुछ नहीं , हमारे पास जो औजार हैं इससे उस भ्रूण को टुकड़ों में काट देते हैं और बाहर निकाल देते हैं । फिर तुम्हें कुछ दिन की  दवाइयाँ देंगे । फिर सब ठीक हो जाएगा । “

              अनीता का ध्यान टूटा । अचानक से ही लगा जैसे उसका कलेजा मुँह को आ जाएगा । वह खाना छोड़ मुँह पर हाथ रखकर अपने कमरे की तरफ भागी । क्या हुआ , पीछे ही उसका पति भी भागता आया । कुछ नहीं , तबियत ठीक नहीं लग रही । तुम लोग खाओ , मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही । उसका पति खाने की मेज पर चला गया । अनीता अपनी दोनों हाथों से अपने तकिए को मुँह से लगाए रो रही थी ।

        रूद्र प्रकाश मिश्रा

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