बेटी  हमारा स्वाभिमान – स्वेता मंजु शर्मा 

एक माँ थी । उसकी तीन बेटियां थीं । माँ बहुत पढ़ी लिखी थी । एकांत के क्षणों में अक्सर अपने पति से सिर्फ एक ही बात कहती थी…. ” हम अपनी बेटियों की शादी सरकारी नौकरी वाले लड़कों से करेंगे. हम इनको खूब पढायेंगे”। सीमित आय में उस माँ ने कभी अपने पति से कुछ नहीं मांगा।

 ना अच्छे कपड़े माँगे, न गहने, न घूमना फिरना. सिर्फ अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च मांगती रही । सिर्फ उनको पढ़ाने की धुन में लगी रही । बेटियां बढ़ने लगी । लोग   कहने लगे… शादी करो शादी करो। माँ तो कुछ और ही सोच कर बैठी थी । उसकी बेटियों के परीक्षा परिणाम उसका मस्तक गर्व से ऊँचा उठा देते थे । 

फिर लोगों के सुर बदले। इस बार तीन बेटी की माँ होने का ताना नहीं था, तारीफ थी उसकी बेटियों की । वो गर्व से फूल उठी । बेटियां परचम लहराती गयीं । वो दिन आया जब सबसे बड़ी बेटी का भारत सरकार की प्रतिष्ठित परीक्षा कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा सांख्यिकीय मंत्रालय में सांख्यिकीय अधिकारी के पद  के लिए चयन हुआ । वो खुशी से झूम उठी । उसकी बरसो की तपस्या का फल मिलने लगा था ।

 अगले बरस दूसरी बेटी का भारत सरकार के विभाग सेंट्रल एक्साइस में  निरीक्षक के पद पर चयन हुआ। वो बेहद खुश थी । तीन बरस बाद उसकी सबसे छोटी बेटी का सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में पी ओ के पद पर चयन हुआ । वो खुशी से झूम उठी । सारा समाज जो उसे तीन तीन बेटियों की माँ होने के लिए ताने देता था, वो समाज आज उसके परिश्रम के आगे नत मस्तक था.

 

वो माँ कोई और नहीं मेरी माँ हैं । मैं उनकी बड़ी बेटी हूँ । और स्वयं एक बेटी की माँ हूँ मेरी दोनों छोटी बहने जैसा कि कहानी में मैंने बताया, अपने अपने कार्य स्थल पर कार्यरत हैं । मुझे मेरी माँ पर गर्व है. उन्होंने अपना करियर छोड़ कर हम सबको सशक्त बनाया.

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