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बेटे ने दर्द दिया बहु ने सहलाया….. – सीमा रस्तोगी 

“सुगंधा! मां-बाबू जी की जरूरत का थोड़ा-बहुत सामान पैक कर दो! बाहर से आता हुआ विवेक हड़बड़ाहट में बोला, जबकि मां-बाबू जी बाहर ही बैठे थे, इधर कई दिनों से उन्हें विवेक कुछ चिढ़ा-चिढ़ा सा लग रहा था

“क्यों? क्या कहीं जा रहें हैं मां-बाबू जी? सुगंधा ने प्रश्नवाचक निगाहों से विवेक की ओर निहारा

“हां, कल सुबह ही उनको वृद्धा-आश्रम छोड़ने जाना है! मैंने सारी कागजी कार्यवाही पूरी कर ली है”

“मैंने आपसे कितनी बार कहा कि मेरे रहते मां-बाबू जी वृद्धा-आश्रम नहीं जाएंगें” विवेक की बातें सुनकर सुगंधा एकदम से बिफर पड़ी

“तो क्या उन दोंनों की देखभाल का जिम्मा सिर्फ मेरा ही है, कितनी बार छोटे को फोन कर चुका हूं, लेकिन उसके कान पर जूं ही नहीं रेंगती, कि कुछ दिनों के लिए तो कम से कम मां-बाबू जी को अपने साथ ले जाए! लेकिन उसको अपनी जिम्मेदारी नजर नहीं आ रही, जबकि इन दोनों के ही इलाज में कितना ज्यादा रूपया खर्च होता है”

“वाह! विवेक, मां-बाबू जी तो आपके भी हैं अगर आप थोड़े दिन ज्यादा सेवा कल लोगे तो कुछ बिगड़ नहीं जाएगा! और रही बात खर्चे की तो मां-बाप के ऊपर खर्चें का क्या हिसाब रखना” सुगंधा विवेक की सोच पर खिसियाकर बोली

“लेकिन, हिस्सा लेने में तो वो सबसे आगे कूद रहा था और मां-बाबू जी ने भी उस समय मेरे साथ पक्षपात भी किया, उसको मुझसे ज्यादा सब-कुछ दिया, लेकिन अब जब उन लोगों की सेवा का अवसर आया, तो भाईसाहब नदारद हैं! उससे कोई मतलब ही नहीं!

“विवेक! मां-बाबू जी ने कोई पक्षपात नहीं किया, जो उसके भाग्य का था वो उसे मिल गया और वैसे भी मां-बाप किसी की हिस्सेदारी नहीं होते, ये तो हम लोगों के लिए सौभाग्य की बात है कि उन लोगों की सेवा हमारे हिस्से में आई, फिर जब उनकी सेवा से मैं नहीं पीछे हट रही तो फिर तुम क्यों परेशान हो! चार दिनों बाद तुम्हारे बच्चे बड़े होंगें, तो वो भी तुम्हारे साथ तुम्हारी देखा-देखी यही सब दोहराएंगे, फिर मत रोना कि मेरे बच्चों ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मां-बाबू जी को वृद्धा-आश्रम भेजने से पहले बहुत अच्छी तरह से सोच लेना विवेक! सुगंधा के शब्दों में उसके सास-ससुर के लिए बहुत दर्द था।




 

“ये तुम्हारी फिलॉसफर वाली बातों का मेरे ऊपर कोई असर नहीं पड़ने वाला, मैंने निर्णय ले लिया है बस, अब कल सुबह मैं इन दोनों को वृद्धा-आश्रम छोड़ने जा रहा हूं, इतनी बार कह चुका हूं छोटे से उसका भी तो फर्ज है कि नहीं” विवेक सुगंधा से एक तरह से चिढ़ते हुए बोला

 

“विवेक! दुनिया कहती है कि हर बहु अपने सास-ससुर को यदि मां-बाप समझ ले तो सारे वृद्धा-आश्रम बंद हो जाएं, लेकिन यहां तो उल्टी ही गंगा बह रही है, कि खुद बेटा अपने मां-बाप को छोटे भाई से चिढ़कर उनको वृद्धा-आश्रम भेजने के लिए तैयार है, लेकिन हां मेरा फैसला भी तुम कान खोलकर सुन लो, अगर मां-बाबू जी! इस घर से वृद्धा-आश्रम गए, तो मैं भी ये घर छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चली जाऊंगीं और फिर अकेले ही संभालना बच्चों को, मुझसे कोई उम्मीद ना करना और हां ये मैं धमकी बिल्कुल भी नहीं दे रहीं हूं, अपने निर्णय पर अटल रहूंगीं!

“तुम मेरी पत्नी होकर मुझको ये धमकी दे रही हो? ऐसे ही तुमने मेरा जनम-जनम तक साथ निभाने का वादा किया था” एकदम से विवेक गुस्सा उठा

“विवेक! पत्नी तो तुम्हारी मैं तब बनी जब मां-बाऊ जी ने तुमको जन्म दिया, विवेक मां-बाप भगवान के समान होतें हैं, उनकी सेवा-सुश्रुषा बड़े भाग्य से मिलती है, बिल्कुल सही कहा जाता है कि एक मां-बाप चार बच्चों को पाल लेते हैं, लेकिन चार बच्चे मिलकर उन मां-बाप को नहीं पाल पाते! और रही बात जनम-जनम तक साथ निभाने की तो मैं तुम्हारे किसी भी गलत निर्णय में तुम्हारा साथ बिल्कुल भी नहीं दूंगीं, बल्कि मुझे तो तुम्हारी बातें सुन-सुनकर तुम्हारे ऊपर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा है! छिः कैसी औलाद हो तुम! भगवान ना करे तुम्हारी इन बातों का साया मेरे बच्चों पर पड़े! सुगंधा के दिल में गुस्से के साथ-साथ बेहद दर्द भी था।




सुगंधा का ये निर्णय सुनकर कि मां-बाऊ जी के वृद्धा-आश्रम जाते ही सुगंधा भी ये घर छोड़कर हमेशा के लिए चली जाएगी, क्योंकि विवेक तो सुगंधा के बिना एक पल भी नहीं रह सकता और ये चली जाएगी तो बच्चों को कौन पाले-पोसेगा और कौन घर संभालेगा… विवेक तो एकदम से जैसे जड़ हो गया…

 

आखिरकार उसे अपना निर्णय बदलना ही पड़ा, लेकिन आज सुगंधा को अपने निर्णय पर बहुत गर्व हो रहा था और बाहर बैठे मां-बाऊ जी का सीना भी अपनी बहु की बातों सुनकर गर्व से चौड़ा हुआ जा रहा था…”लोग शायद गलत ही कहते हैं कि बहु के आते ही बेटा पराया हो जाता है, यहां तो बहु ने ही बेटे को पराया होने से बचा लिया, बेटे ने दर्द दिया, बहु ने सहलाया, हम तो धन्य हो गए, ऐसी बहु पाकर, आज तो बहु हमारी शान बन गई…. और तो और उसने हम लोगों को बेघर होने से बचा लिया!!

 

ये कहानी स्वरचित है

मौलिक है

 

आपको मेरी कहानी कैसी लगी लाइक और कमेंट्स के द्वारा अवगत करवाइएगा और मुझको फॉलो भी कीजिएगा।

धन्यवाद आपका🙏😀

आपकी सखी

सीमा रस्तोगी 

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