बेटे का फर्ज़ – पूजा मनोज अग्रवाल

मोहिनी के पति फौज में थे ,,,विवाह के मात्र तीसरे वर्ष में ही वे मोहिनी और उनके बेटे हर्ष को छोड़कर इस दुनिया से अलविदा कह गए । मोहिनी की जिंदगी की असल परीक्षा तो अब प्रारंभ होने वाली थी ,,,,पति के जाते ही उनकी  जिंदगी का नया नारकीय अध्याय शुरु हुआ । सास ननंद ,  देवरानी ,जेठानियो  के तानों का प्रहार , सास की प्रताडना और प्रतिदिन की टीका टिप्पणी सुनते सुनते उनका अन्तर्मन घायल हो चुका था,,,।

मायके मे माता  पिताजी का स्वर्गवास हो चुका था,,,, भाई भाभी थे, परन्तु उनसे मोहिनी को कोई आस ना थी ,,,, जीवन जीने के लिए रोटी कपड़ा और मकान की जरूरत तो सभी को ही होती है,,, इन सभी जरूरतो को पूरा करती भी तो कैसे,,,?

मोहिनी केवल पांचवी पास थी , तो बाहर भी नौकरी मिलना आसान ना था,,,,, इसलिये हर्ष को पालने की खातिर , ससुराल मे ही नौकरानी बन कर रहने को विवश हो गई थी  ।

कहते है ना ,,औरत ही औरत की दुश्मन होती है ,,,यह कहावत सटीक बैठती थी उसके लिए,, कभी परिवार के किसी भी महिला सदस्य ने उसके दुख व पीडा को महसूस न किया था , ना कभी उनके लिये आवाज़ उठाई थी । हाँ ,,,, रसोई का बचा खुचा खाना देकर जेठानी प्रतिदिन उसपर एहसान लाद दिया करती ,,, तो देवरानी पुरानी घिसी पिटी उतरन देकर ,,, । नये वस्त्र तो उसे  दीवाली पर भी नसीब ना होते । घर के बढते बच्चों के उतरे हुए कपड़ो मे ही मोहिनी ने हर्ष को पाल पोस लिया था।

घर गृहस्थी की जिम्मेदारियों का बोझ , साथी के प्रेम का अभाव  और घर वालों के निरंतर मिलते तानो ने मोहिनी को समय से पूर्व ही बूढ़ा बना दिया था ,,, हंसना बोलना तो वह भूल ही गई थी ,,,, ।

सिर्फ खुशी तो इस बात की थी कि , हर्ष पढ़ने में बहुत अच्छा था ,,,उसके जीवन की आखिरी उम्मीद हर्ष ही था । हर्ष ने अभावों मे भी अपनी पढाई पूरी कर ली थी,,, और कुछ दिनो मे उसे मुंबई की एक कंपनी मे नौकरी मिल गई,,, यह मोहिनी की जिन्दगी का सबसे बड़ा और खुशी का दिन था।

” माँ ,,,, आप तैयारी कर लो,,, मैंने मुंबई में एक घर किराए पर ले लिया है,,,अब से हम वहीं रहेंगे,,,” मुस्कुराते हुए हर्ष ने माँ को अपने सीने से लगा लिया ।


हर्ष के यह शब्द सुनकर मोहिनी के पांव जमीन पर ना पड़ रहे थे,,,खुशी से उसकी आंखों से गंगा जमुना की धारा बहने लगी । शायद उसके दुख के दिन अब फ़िर गए हैं,,, सुखद भविष्य की कामना करते हुए मोहिनी ने अपने मुंबई जाने की तैयारियां करना शुरू कर दिया ,,।

देवरानी जेठानियों  को तो आज काटो तो खून नहीं आपस में खुसर पुसर का दौर चल रहा था ।  घर मे कोई भी मोहिनी को मुंबई भेज कर खुश नहीं था, क्योंकि वह जानते थे मोहिनी जैसी अच्छी और सस्ती नौकरानी तो उन्हें कहीं भी नहीं मिलेगी,,,।

खैर वो शुभ दिन आया और मोहिनी अपने बेटे हर्ष के साथ मुंबई चली गई ,,,मुंबई के बांद्रा इलाके में उन्होंने एक घर किराए पर लिया था  । हर्ष ने अपने साथ ऑफिस में काम करने वाली एक लड़की प्रिया से विवाह कर लिया । मोहिनी की खुशी की कोई सीमा ना थी ।

हर्ष और प्रिया के विवाह के एक हफ्ते बाद मोहिनी ने प्रिया से चूल्हा पुजवाने की रस्म अदायगी की और बोली ,” बहू तुम इस घर की गृह्लक्ष्मी और अन्नपूर्णा  हो आज से तुम भी इस रसोई मे खाना बना सकती हो  “।

अगले दिन मोहिनी रसोई मे पहुँची ,,, बड़े प्रेम व स्नेह से हर्ष और प्रिया को नाश्ता बनाकर खिलाया ,,,, ।

ऑफिस जाते जाते प्रिया ने मोहिनी से कहा,,, ” मांजी , “मैं इस घर की बहू हूं , नौकरानी नहीं ,,,आप मुझे गृह लक्ष्मी और अन्नपूर्णा के नाम पर बेवकूफ नहीं बना सकती,,,, मै  ऑफ़िस  के साथ रसोई की जिम्मेदारी ना संभाल पाऊंगी ,,,और फ़िर पूरा दिन आप खाली बैठ कर क्या करेंंगी, खाने की जिम्मेदारी तो आपको ही संभालनी होगी ”  यह कहकर वह रसोई से बाहर निकल गई ,,,, ।

मोहिनी अवाक रह कर बहू का चेहरा ताकती रह गई,,,। 

तड़ाक,,,,तभी हर्ष ने एक जोरदार थप्पड़ प्रिया के गाल पर रसीद कर दिया  ,,,,  उसका गाल झनझना उठा,, वह गुस्से से तिलमिला उठी,,,,कुछ बोल पाती इससे पहले ही  हर्ष उस पर बिफर  उठा । ” तुम यहां से वापस अपनी मां के घर लौट सकती हो ,,,,पूरी जिंदगी मेरी मां ने मुझे अकेले रहकर ,  लोगों की प्रताडना और  यातनाएं सहन करते हुए पाला है,,,,बस मै अब और नहीं होने दूंगा ,,,पहले उन्होने अपनी जिन्दगी मेरे लिये जियी थी,, अब मै अपनी सारी जिंदगी उनके साथ जियूंगा ,,,।

पूजा मनोज अग्रवाल

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