बेचारी मत बनना – मीता जोशी

“आज उड़ान संस्था को बने पचास-वर्ष हो चुके हैं। आप सभी इस बात से भलीभांँति परिचित हैं। ये संस्था महिलाओं की मदद के लिए खोली गई थी। यहाँ किसी भी तरह की प्रताड़ना, राय या अकेला पड़ने पर उनकी मदद के हर सम्भव प्रयास किए जाते हैं। जब मैंने ये संस्था शुरू की थी तब बहुत कम महिलाएंँ यहाँ तक पहुँच पाती थीं। मदद माँगने में डरती थीं। लोगों ने कईं बार मुझसे पूछा संस्था को “उड़ान- आभा की” जो नाम दिया है  ये आभा कौन है? और मैं हर बार चुप रह जाता। आज उस इंसान से आप लोगों का परिचय करवाना चाहता हूँ जिसके संघर्ष को देख,मैने उड़ान को ‘उड़ान-आभा की’ नाम दिया। जी हाँ,आप सभी उस शख्सियत से परिचित हैं। कभी लेखिका के रूप में ,तो कभी समाज सेवी संस्था से जुड़े होने के कारण या कभी मोटिवेशनल वक्ता के रूप में।

सही समझे हैं आप सुप्रसिद्ध समाज सेविका ‘आभा जोशी’ जिनकी ज़िन्दगी अपने आप में एक प्रेरणा देती हैं।

आइये आभा जी, मंच पर आपका स्वागत है।आज अपने संघर्ष की कहानी अपनी जुबानी सुना लोगों को एक  प्रेरणादायक संदेश दे दीजिए।”

सभी की नजर आभा जी को देखने के लिए उत्सुक थी। लोगों की कल्पना में आभा जी की छवि  एक बिंदास महिला की थी लेकिन उनकी सोच के विपरीत हल्के रंग की साड़ी में एक दुबली-पतली काया वाली महिला  जब स्टेज की तरफ बढ़ी तो सब आश्चर्य में थे। बालों की सफेदी उनकी उम्र बयाँ कर रही थी। शांत सी गंभीर महिला जब स्टेज पर जा सबसे रूबरू हुई तो चेहरे पर एक अलग ही कांति थी। स्वाभिमान,गुरुर और नाम के अनुरूप आभा उनके चेहरे पर दिखाई दे रही थी।

“नमस्कार” कह जैसे ही हाथ जोड़ा, उस सौम्य छवि ने सबका मन मोह लिया।

“मीडिया से मुझे हमेशा से ही परहेज रहा है।ये मानती आई हूँ कि आपका व्यक्तित्व आपकी पहचान हो।

आज यहाँ हमारे बीच सभी तरह की महिलाएंँ हैं।उन्हीं को कुछ संदेश देना चाहूँगी।

वीरेन जी ने मुसीबत में मेरी सहायता की और उसके बाद अपनी संस्था को मेरा नाम दिया। उम्र बीत गई लेकिन कभी उनका भी आभार प्रकट नहीं कर पाई।



सबसे पहले तो अपना उदाहण देते हुए आपसे कहना चाहूँगी कभी बेचारी मत बनिए।अन्याय का खुल कर विरोध कीजिए क्योंकि अन्याय सहते हुए ‘ये बेचारी’ शब्द जो सहानुभूति के तौर पर मिलता है ना, ये शब्द आपकी आत्मा का आप पर से नियंत्रण खो देता है। हर इंसान के लिए अपनी तकलीफ बड़ी होती है,शायद मेरी कहानी आपके लिए सामान्य हो लेकिन जिन हालात से मैं निकली बेचारगी को छोड़ने के बाद ही मैंने सफलता पाई।

मेरी माँ यही कोई  तेरह-चौदह साल की रही होंगी। उनके पिताजी ने अपने मित्र के बेटे से उनका विवाह तय कर दिया। पढ़ाई-लिखाई में होशियार माँ शादी का अर्थ भी नहीं जानती थी तब ही विवाह कर दिया गया।विवाह तो हुआ लेकिन विदाई की रस्म अधूरी थी यानि शादी तो हुई लेकिन उसके पश्चात भी माँ पीहर ही रही। गौना छह -साल बाद तय हुआ। सुना था पिताजी ..माँ से नौ साल बड़े थे।इस बीच माँ की पढ़ाई चालू रही। पता चला जिस आदमी के साथ विवाह बंधन में बंधी थी गलत संगत के चलते उसने पढ़ाई छोड़ दी। माँ जब तक विदा होकर गई तब तक पिताजी को अनगिनत बीमारियांँ लग चुकी थीं। साल भर में मैं पैदा हुई।  बदकिस्मती देखिए होश संभाल भी नहीं पाई थी किडनी खराब होने की वजह से पिताजी दुनिया छोड़कर चले गए। घरवालों ने माँ को अपशकुनी कह घर से निकाल दिया।  उन्होंने पीहर में आ पढ़ाई जारी रखी। जो आता उसके मुंँह में एक ही शब्द होता”बेचारी विदा होकर ही क्यों गई?किस्मत ही फूट गई और ये बच्ची.. बेचारी! क्या किस्मत लेकर पैदा हुई।”

मैंने जब होश संभाला तो हर जना बेचारी शब्द कह सहानुभूति दर्शा प्यार जताता तो मैं हमदर्दी पाने के लिए उससे लिपट जाती।

घर में कमाने वाले बस नाना थे। किस्मत की मार देखिए  कुछ समय बाद वह भी बीमार पड़ गए। मामा ने पढ़ाई छोड़ कमाना शुरू किया।अचानक माँ के लिए रिश्ता आया। बहुत पैसे वाला परिवार है तीन बच्चे हैं। नाना-नानी दोनों यही चाहते है कि  माँ हाँ कह दे। लड़का उम्र का थोड़ा ज्यादा है पर सरकारी नौकरी है। शादी-शुदा हैं।  पहली बीवी बीमारी के रहते चल बसी।रिश्ते की बात आगे बढ़ाने से पहले माँ से मिलना चाहते हैं।

“मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डाल रहा और शादी करने से पहले तुम्हें सब कुछ सच बताना चाहता हूँ।मेरे तीन बच्चे हैं  ,बस उन्हीं के लिए माँ चाहिए लेकिन मेरी एक ही मांँग है तुम विदा हो अकेली आओगी। हाँ तुम्हारी बच्ची की पढ़ाई का ,खाने-पीने का खर्चा मैं आजीवन उठाने को तैयार हूंँ ।बशर्ते वो यहीं रहे क्योंकि तुम अपनी बच्ची के साथ रहकर, मेरे बच्चों की माँ कभी नहीं बन पाओगी।”

“लेकिन ये तो सरासर अन्याय है मेरे साथ भी और मेरी मासूम बच्ची के साथ भी।”

कहते हैं माँ ने तुनक कर उन्हें घर से निकाल दिया था। इस बीच मामा की शादी हो गई और वो अलग चले गए। नानाजी को सदमा लगा  वो कौमा में चले गए। अब स्थिति ये थी कि कभी-कभी घर में खाने को भी नहीं होता था।

माँ को जब कोई रास्ता न सूझा तो वो सुधीर जी के पास गईं।



“मैं आपसे शादी करने को तैयार हूँ यदि आप मेरी बेटी के साथ मेरे घर का भी खर्चा उठाएंँगे।  मैं आपको कभी शिकायत का मौका नही दूँगी।  यही नहीं आप चाहते थे ना मैं अपनी बेटी से कभी नहीं मिलूँ। ऐसा ही होगा।”

शादी हो गई। माँ एक संम्पन्न घर में चली गई और नानी के साथ रह गई मैं ‘आभा’……नहीं-नहीं आभा नहीं ‘बेचारी-आभा’। जब कोई नया मित्र जुड़ता या किसी के घर वाले प्यार से बोलते तो मैं उन्हें अपना सारा किस्सा सुना देती और जब वो ‘ओहो बेचारी’ कह सीने  से लगाते तो मुझे लगता इतने लोग हैं तो सही,मुझे प्यार करने वाले या कहूँ  मुझ बेचारी को प्यार करने वाले। नाना जी कुछ समय बाद हमें छोड़ चले गए। नानी बीमार थी जाने से पहले मुझे खुश देखना चाहती थी।  मेरी सुंदरता और पढ़ाई के चर्चे दूर-दूर तक थे।  एक रईस घर के बेटे ने फिदा हो शादी का प्रस्ताव रखा। मुझ बेचारी का जितना उपयोग कर सकता था किया। पता चला प्रेम किसी औऱ से करता है और ये बात घर वाले भी जानते हैं।

अब तक समझ चुकी थी हादसे मेरे जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। मुझे बेचारगी तक लेकर ही जाएंँगे।

आज पुलिस थाने से फ़ोन आया,” ये आपके पति हैं? एक्सीडेंट में मारे गए हैं।”

परिवार का एक वही सदस्य मेरा परिचित था। आज उसके जाने के बाद जेठ-जेठानी सास-ससुर सब आ गए।पतिदेव जेठजी से तेरह साल छोटे थे। जेठानी सौम्य सी… माँ सी शक्ल की, गले लगा बोलीं”तुम हमारा ही हिस्सा हो कभी ख़ुदको अकेला मत समझना।”

सास के मुँह में एक ही बात रहती”बिचारा मेरा बच्चा,न जाने क्या सोच कर घर बसाया था लेकिन जिसकी किस्मत ही फूटी थी बदकिस्मती से उसी को ले आया!”

आज जेठजी ने प्यार से सीने से लगाकर कहा”बेचारी! इतनी सी उम्र में इतने बड़े हादसे की शिकार हो गई।ख़ुदको कभी अकेला मत समझना।मैं हूँ ना।”

जेठानी जी अक्सर कुछ खोई सी रहतीं जब जेठजी की सच्चाई पता चली तो उनसे घृणा सी होने लगी।मेरी पति की जगह नौकरी लग गई।आज ऑफिस का पहला दिन था।

ऑफिस गई तो वहाँ वीरेन जी से मिलना हुआ। सौम्य से व्यक्तित्व के,आकर्षक छवि वाले इंसान। मैं जल्द ही इनसे प्रभावित हो गई।



लंच टाइम में पियोन ने आकर कहा”एक उम्रदराज महिला पास वाले कॉफी-शॉप में आपको बुला रही हैं।”

“कौन होंगी? मैं तो किसी को नहीं जानती।”सोचते हुए वहांँ पहुँची।

वहाँ पहुँची तो बेंच पर एक महिला इंतजार कर रही थी।  उसने मुझे देख आवाज लगाई”आभुली” पलट कर देखा भी नहीं कि आँसू टप-टप गिरने लगे।

“आभुली” आज इतने सालों बाद  ये प्रेम भरा नाम सुना था।

जबसे माँ गई आभुली, बेचारी आभा हो गई थी।

दिल की धड़कन बढ़ गई गले लगा इतना रोई”क्यों कहते हैं माँ मुझे बेचारी? तू हैं ना! फिर भी।”

माँ ने आँसू पौंछते हुए कहा”सिर्फ आज मिलने आए हूँ जमाई जी का पता चला। तुझे ये कहने आई हूँ कि कमजोर मत पड़ना। तेरी माँ तो बेचारी थी अन्याय सहती गई क्या करती  कोई सहारा न था।ज्यादा पढ़ी-लिखी न थी ना! पर तुझे, तेरी परवरिश,शिक्षा सब मिल सके इसलिए खुद की भावनाओं का सौदा कर दिया,तेरे बचपन का भी सौदा किया सिर्फ इसलिए कि तू खड़ी हो सके।”

तेरी जेठानी का फ़ोन आया था ‘एक बार उससे मिलने आओ’ सो चली आई। तेरे आगे कोई मजबूरी नहीं है बस ये बेचारी बन जिस दिन गले लगाने वाले के कंधों को झिड़क देगी, आगे बढ़ जाएगी। आगे से खुद के लिए लड़,खुद के लिए जी लेकिन स्वाभिमान से,सहारे से नहीं। ये सहारा देने वाले सौदा करते हैं। भावनाओं का सौदा,जज़्बातों का सौदा।मैं तो बिक गई तुझे खड़ा करने के लिए। तू कभी अपना सौदा मत करना।”

माँ कह चली गई। कुछ दिनों से  बेचैनी सी थी। डॉ को दिखाया तो पता चला एक नन्ही जान मेरे अंदर पल रही है। बस उसी दिन बेचारगी का चोला उतार फेंका ये सोच कि माँ के त्याग का फल देना है।

मुझे माँ से कभी नफरत नहीं हुई। हमेशा उसकी बेचारगी की छवि मेरे अंदर रही। मेरा बच्चा ,कभी बिचारा नहीं बनेगा वो कोई अन्याय नहीं सहेगा। आज खुद्दारी से जेठजी को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। पर अपने पराए में भेद कभी  जान ही न पाई।

वीरेन जी ने लाख मदद की। उनकी भावना जानते-समझते हुए भी कभी उन्हें अपना न पाई और इस सच्चे इंसान ने अपनी भावना दरकिनार कर हमेशा मेरा साथ दिया।

बस फिर क्या था मेरे कदमों में बस प्रसिद्धि थी और मैं आभा आपके सामने।

अपने ऊपर अत्याचार न होने दें।जो समय रहते अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है दुनिया उसके कदमों में होती है।बेचारगी का चोला पहन क्षण भर को तो सहानुभूति मिलती है पर उसके बदले आप अपना न जाने क्या-क्या खो देते हैं। मैं बस इतना ही कहना चाहूँगी लड़ो और आगे बढ़ो कभी बेचारी मत बनो। 

मीता जोशी

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