बेबसी – बालेश्वर गुप्ता

 मुन्ना अब तुम बिन रहा नही जाता रे।लौट आ,हमारे जीवन के कितने दिन बचे हैं, आ जायेगा तो परिवार के बीच मरने की भी संतुष्टि होगी।

        पापा रोज ही तो वीडियो काल पर मिलते हैं, हम दूर कहाँ है, आप ही टाल जाते हैं, मैं तो आपको हर साल दो तीन महीने अपने पास रहने को बुलाता हूँ।

        बेटा, सच पूछे तो हमारा मन परदेश में लगता नही,तेरी माँ तो बिल्कुल ही डिप्रेशन में ही चली जाती है।अपने देश में क्या कमी है, तू यहीं आ जा।

        75 वर्षीय रमेश का एक मात्र बेटा 10-12वर्षों से अमेरिका में ही जॉब करता है, वही की नागरिकता उसने ले ली है।पत्नी भी जॉब करती है।एक प्यारा सा पोता है,वो भी अब 8 वर्ष का हो गया है।रमेश और उसकी पत्नी सुमन जब भी मुन्ना के पास अमेरिका गये, तो बिल्कुल अकेलेपन में डूब गये।वहां की कल्चर और भाषा उन्हें रास नही आती,मुन्ना और उसकी पत्नी पर समय नही होता,वो तो उनका पोता बबलू पास में रहता तो किसी तरह तीन महीने कट पाते।भारत वापस आने पर फिर मुन्ना और बबलू की तड़फ उनका जीवन मुहाल कर देती।करे तो क्या करे?मुन्ना आना ही नही चाहता।बस कहता 24 घंटो के लिये कोई नौकरानी रख लो जो आप दोनों की देखभाल करेगी।किसी चीज की कमी मत रखना,मैं सब व्यवस्था कर दूंगा।

      रमेश ने दबे स्वर में कहा भी बेटा, हाँ कमी है, मुन्ना की,ला कर दे उसकी कमी की पूर्ति। मुन्ना बस  हंस कर टाल देता।मुन्ना अपने के पास रहने के अहसास को समझ ही नही पा रहा था,या समझ कर भी अनजान बना था।

         एक रात को लघुशंका को उठे रमेश चक्कर खा कर गिर पड़े,सिर फट गया,खून बहने लगा।घबराकर सुमन पड़ौस के घर की तरफ भागी, पड़ौसी भले थे,एकदम आ गये।अस्पताल में रमेश को दाखिल कराया गया।कोई विशेष बात नही थी,ब्लड प्रेशर कम हो जाने के कारण चक्कर आ गया था।अगले दिन ही रमेश को डिस्चार्ज कर दिया गया। इन 24 घंटो में ही मुन्ना ने दो तीन बार वीडियो कॉल करके रमेश के हालचाल पूछे,हॉस्पिटल का बिल भी भर दिया,एक सप्ताह के लिये एक नर्स की भी व्यवस्था करवा दी।अपने पापा से बहुत प्यार करता है ना मुन्ना,उनका दुःख देख नही सकता।




        रमेश निर्विकार भाव से हॉस्पिटल से घर आ गये।अब वो अधिक ही उद्विग्न रहने लगे थे।उनके सामने मुन्ना और बबलू का चेहरा रहता।बेबसी में रमेश बाबू टूटते जा रहे थे।अब तो कई दिनों से मुन्ना का फोन भी नही आ रहा था,सुमन फोन मिलाती भी तो कोई उठा ही नही रहा था।अनजानी आशंका से रमेश और सुमन ग्रसित हो गये थे।ऐसा कभी नही हुआ था कि मुन्ना का फोन ना आये तो अब क्यो नही आ रहा? किससे जानकारी ले कैसे करे,कुछ समझ ही नही आ रहा था। अचानक ध्यान आया कि पास के नगर के मोहन जी का बेटा भी मुन्ना की कंपनी में ही जॉब करता है।इतना ध्यान आते ही रमेश बाबू तुरंत ही मोहन जी के घर की तरफ चल दिये।उनके नगर तक बस जाती थी सो एक घंटे में ही रमेश बाबू मोहन जी के यहाँ पहुंच गये।सारी बात मोहन जी बता रमेश जी ने उनके बेटे के माध्यम से मुन्ना की जानकारी करने के बारे में सहायता मांगी।मोहन जी ने रमेश बाबू को सांत्वना दी और पूरी सहायता करने का आश्वासन भी दिया।मोहन जी ने रमेश जी को चाय नाश्ता करा कर उनको शाम तक विश्राम की सलाह दी।अमेरिका में उस समय दिन निकलेगा तो बात सही ढंग से हो पायेगी।अनमने रमेश बाबू कर भी क्या सकते थे?किसी प्रकार रात्रि में मोहनजी का संपर्क अपने बेटे से हुआ और उन्होंने मुन्ना के बारे में जानकारी करने को बोला।

         मुन्ना का अपने पापा से सम्पर्क न करने के कारण की जानकारी सुनकर रमेश धक से रह गये।उनका पोता वहां अमेरिका में बीमार था हॉस्पिटल में दाखिल था।बबलू की बीमारी को सुन रमेश बाबू असहाय से हो वही नीचे बैठ गये।कैसे बेटा बहु बबलू को संभाल पा रहे होंगे।उनका फूल सा बबलू तो मुरझा गया होगा,कैसे -कैसे पहुंचे उनके पास क्या करे ?विवशता भी मनुष्य को बेबस ही कर देती है,रोने के अतिरिक्त कोई राह सुझाई नही देती।




      अगले दिन सुबह रमेश बाबू अपने घर पहुंचे,न चाहते हुए भी सुमन को बताना ही पड़ा।सुनती हो,अपना बबलू तो होस्पिटल में दाखिल है, हम यहां है,कैसे पहुंचे उसके पास?क्या बबलू के पास पहुँचे बिना हम यूही मर जायेंगे?

       मैं अपने पड़ोसी गिरधारी के बेटे से बात करता हूँ वो हमारे अमेरिका जाने की व्यवस्था में सहयोग कर दे,कह रमेश बाबू बाहर की ओर चल दिये।कुछ देर बाद आ वो सुमन से बोले,भागवान वीजा आदि बनने में आठ दस दिन तो कम से कम लग ही जायेंगे।सुमन बोली,कैसे कटेंगे ये दिन,मेरे बच्चो पर क्या गुजर रही होगी? नियम कानून  कोई भावनाओं को थोड़े ही समझते है।रोते, कलपते रमेश बाबू और सुमन को तीन दिन बीत गये, इस बीच मुन्ना का कोई फोन भी नही आया।बेचैनी बढ़ती जा रही थी।अपने पर ही खीज आती क्यूँ अपने बेटे को विदेश भेजा था?पर अब क्या हो जब चिड़िया चुग गयी खेत।

       रमेश बाबू और उनकी पत्नी सुमन की आँखों के आंसू तो सूख गये थे,पानी बचा ही नही था जो आंसू आते,पर अपनी पीड़ा को कहां लेकर जाते।तीसरे दिन ही अचानक सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी ,हड़बड़ा कर दरवाजा खोला तो सामने मुन्ना बबलू को गोद मे लिये खड़ा था,साथ मे बहु भी थी। दौड़कर रमेश बाबूने मुन्ना को गोद मे ले लिया मुन्ना को और बहू को भी अपनी ओर खींच लिया,सुमन भी पीछे से आ गयी थी।मुंह से कोई भी नही बोल पा रहा था पर भाव एक दूसरे के प्रति उमड़ पड़ रहे थे। 

       घर के अंदर आ किसी प्रकार मुन्ना बोला,पापा मैं आ गया हूं आपके पास, अब नही जाऊंगा कभी,जानते हैं पापा बबलू के गंभीर बीमार होने पर हम तो अकेले रह गये, सब कुछ हमारे पास था,पर परिवार नही था,आप नही थे पापा, मम्मी नही थी।तब समझ आया बिना अपनो के तो कुछ भी नहीं।अब हम यही रहेंगे पापा आपके पास रहेंगे,आपसे दूर नहीं।




      रमेश बाबू कभी मुन्ना को देख रहे थे तो कभी ऊपर आकाश की ओर,सोच रहे थे ईश्वर तू है जरूर छुपा बैठा है कहीं,पर देख सब को रहा है,तभी तो मेरे मुन्ना को मेरे पास भेज दिया।

#परिवार 

            बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

स्वरचित-अप्रकाशित।

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