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बहुरानी! सासु मां से कुछ भी कहने में संकोच कैसा……..? – सीमा रस्तोगी 

“नविका बेटा! उठ जाओ खाना ले आईं हूं!” सुमन बहु नविका को आवाज लगाते हुए बोली.

“मम्मी जी! पता नहीं क्यों आजकल खाने का मन बिल्कुल भी नहीं करता, बस इच्छा होती है कि कुछ ना कुछ चुकुर-पुकुर खाती रहूं!” नविका पलंंग पर उठते हुए बोली.

“अच्छा जरा बताओ तो भला कि क्या चुकुर-पुकुर खाने का मन करता है!” सुमन नविका की ही भाषा में मुस्कुराते हुए बोलीं.

“मम्मी जी! यही तो मैं समझ नहीं पा रहीं हूं!” नविका मायूसी से बोली.

“बेटा! ऐसी हालत में यही होता है, ज्यादातर खाने से इच्छा हट जाती है, क्योंकि मेरे साथ भी ऐसा ही होता था और अम्मा कुछ ना कुछ मुझसे पूछकर गरमागरम बना देतीं थीं और मैं बड़े चाव से खा लिया करती थी!” सुमन नविका का सिर सहलाते हुए बोली, नविका का तीसरा महीना लग गया तो और उसको धीरे-धीरे खाने से अनिच्छा होती चली जा रही थी… थोड़ा केस कॉम्पलीकेटेड होने के कारण, डॉक्टर ने थोड़े समय के लिए बेडरेस्ट के लिए भी बोल दिया था….

“मम्मी जी! आपके साथ भी ऐसा ही होता था! नविका चौंककर बोली “और दादी जी आपको सब-कुछ बनाकर खिलातीं भी थीं!”



“हां और क्या? वो भी तो दादी बनने वाली थीं, कभी अम्मा पकौड़ी बना दें, कभी गरमागरम हलवा तो कभी आलू का परांठा और कभी और भी कुछ,  तुम्हारी भाषा में वो क्या कहा था तुमने अभी?

“मम्मी जी! चुकुर-पुकुर!” नविका मुस्कुराकर बोली.

“हां वही चुकुर-पुकुर, वो हमेशा ही यही कहती थीं, कि जो दिल करे वो खाओ-पिओ नहीं तो बच्चे लबरे (लार गिराने वाले) पैदा होते हैं!” सुमन के चेहरे पर अपनी सासु मां के लिए श्रद्धा के भाव उत्पन्न हो गए…

“लेकिन मम्मी जी! मुझको तो आपसे कुछ भी बनाने के लिए कहने में संकोच लगेगा!” नविका झेंपते हुए बोली

“बेटा! मां से कुछ भी कहने में संकोच कैसा? और फिर मैं अभी बूढ़ी थोड़े ही ना हो गईं हूं, जो तुम्हारे लिए कुछ बना नहीं सकती और बेटा तब उस जमाने में तो ज्यादा सुविधाएं भी नहीं थीं, लेकिन फिर भी वो मेरा बहुत ज्यादा ख्याल रखतीं थीं और अब तो गैस-चूल्हा है, एक बार लाइटर का बटन दबाओ और गैस जल जाती है!” सुमन कुछ खो सी गई…



“ठीक है मम्मी जी!” और नविका सुमन के गले लग गई

“फिर बताओ इस समय तुम्हारा क्या चुकुर-पुकुर खाने का मन कर रहा है?”

“मम्मी जी! फ्रिज में ब्रेड और उबले आलू हों, तो प्लीज सेंडविच बना दीजिए!” नविका संकोच से बोली

“नविका बेटा! फिर प्लीज? पूरे हक से अपनी मां से कहो जो भी खाने का मन हो! “और सुमन उठकर सेंडविच बनाने के लिए चल दी… 

नविका तो सच में इतनी अच्छी सास पाकर, अपने भाग्य को सराहती…

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ये कहानी पूर्णतया स्वरचित है

मौलिक है

दोस्तों आपको मेरी ये प्यारी सी कहानी कैसी लगी, जब मेरा बीच वाला बेटा होने वाला था और डॉक्टर ने बेडरेस्ट बता दिया था, उस समय मेरी मम्मी जी, कुछ ना कुछ मेरे लिए मुझसे पूछ-पूछकर चुकुर-पुकुर😀😀 बनाती रहतीं थीं, आपको मेरा अनुभव कैसा लगा, लाइक और कमेंट्स के द्वारा अपने अनुभव भी बताइएगा और प्लीज फॉलो जरूर कीजिएगा।

धन्यवाद आपका🙏😀

आपकी सखी

सीमा रस्तोगी 

 

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