• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

बहू तो बेटी बन गयी लेकिन सास मां ना बन पायी – अर्पणा जायसवाल

“भाभी, मम्मी जी को आपने आटे के लड्डू क्यों नहीं दिये खाने को?” कथा ने जेठानी उषा से पूछा तो वो थोड़ा चिढ़ते हुए बोली, “देखो देवरानी जी अभी तुम्हें इस घर में आए दो महीने ही हुए है। ज्यादा अच्छी बहू बनने का दिखावा करने की जरुरत नहीं है। मैं पांच सालों से यह घर और मम्मी जी को संभाल रही हूं तो मुझे मत बताओ कि मम्मी जी को क्या खाने में देना है और क्या नहीं। वैसे ही उनको पचास बीमारियां है। देशी घी के लड्डू खाने के लिए हाजमा और लड्डू तोड़ने के लिए दांत भी सही होने चाहिये।”

“भाभी, एक लड्डू खाने से कुछ नहीं होगा बल्कि उनके उदर के साथ मन भी तृप्त हो जाएगा। मैं एक लड्डू उन्हें खिला कर आती हूं” कथा ने डिब्बे से एक लड्डू निकाला तो ऊषा ने तुरंत उसका हाथ रोक लिया, “इस एक-एक लड्डू की कीमत है। यह मैनें अपने लिए और अपनी बेटी के लिए बनाए है। तुम चाहो तो बहुत सारे खा सकती हो लेकिन मम्मीजी को एक लड्डू भी नहीं मिलेगा” उषा ने जब यह कहा तो ना जाने क्यों उसकी आवाज में एक दर्द था।

कथा ने उषा की तरफ आश्चर्य से देखा। उसकी आंखों में नमी देख कर कथा इतना तो समझ गयी कि यह बहुत ही ईंटेंस मामला है वरना कोई एक लड्डू खाने के लिए क्यों मना करेगा। लेकिन साथ ही उसे सासूजी का चेहरा भी याद आ रहा था कैसे एक बच्चे की तरह उससे लड्डू मांग रही थी।

“भाभी, आप सही कह रही है… लड्डू खाने से मम्मीजी की तबीयत खराब हो जाएगी” कथा ने बात को वही खत्म किया और अपने काम में लग गयी।

लेकिन उषा बैचेन होकर घूमने लगी फिर अचानक उसने डिब्बे में से एक लड्डू निकाला और उसके चूरे कर दिए। एक चम्मच लगा कर कथा को प्लेट पकड़ा दिया, “कथा, ये लो मम्मीजी को लड्डू दे आओ। उन्हें लड्डू तोड़ने में दिक्कत होगी इसलिये चूरा बना दिया है ताकि चम्मच से खा सके।”

कथा ने हैरानी से उषा को देखा फिर मुस्कुरा कर प्लेट लेकर सासूजी के पास चली गयी। कथा को देख रंजनाजी बहुत खुश हो गयी, “आ गयी छोटी बहू! लड्डू लेकर… मुझे पता था कि तुम जरुर मेरे स्वाद का ख्याल रखोगी। बड़ी बहू के हाथों में जब से घर-गृहस्थी की चाबी आयी है उसने मुझ पर हर चीज के लिए बंदिश लगा दी। वरुण से जब उसे डांट पड़ती है तब मुझे खाने को मिलता है। लेकिन अब तुम आ गयी हो तो मुझे कोई चिंता नहीं। अब तुम खिलाना मुझे अच्छी-अच्छी चीजें।”

खुश होते हुये प्लेट को हाथ में लिया लेकिन चूरा देख कर चेहरा बुझ गया, “ये क्या बहू! बचे-कुचे लड्डू लायी हो?”



“मम्मी जी आप लड्डू तोड़ नहीं पाती इसलिये लड्डू को थोड़ा तोड़ दिया” कथा ने जब बताया तो और खुश हो गयी, “सचमुच बहू, तुमने आज दिल खुश कर दिया।” और चम्मच से स्वाद लेकर खाने लगी।

लड्डू खाने के बाद रंजना जी के चेहरे पर संतोष था,”वाह! मजा आ गया… वैसे मानना पड़ेगा कि तेरी जेठानी के हाथों में स्वाद है। लड्डू में जो कुछ भी मिलाया है एकदम बराबर तौल से और हर एक चीज का स्वाद मुंह में आ रहा है… मेथी, गोंद, सभी मेवे, चीनी का बूरा और देशी घी में भुना पंजीरी का स्वाद लड्डू को और बढ़ा रहा। आज एक राज की बात बताऊं उषा बहू के लड्डू बहुत ही पौष्टिक और पाचक होते है और मुझसे बेहतर बनाती है। तभी तो जी ललचा जाता है उसके हाथ के बने लड्डू खाने को। तुझे राज की एक और बात बताऊ उसके हाथ के तिल-गुड़ लड्डू और सेव-गुड़ लड्डू खाकर देखना बहुत ही टेस्टी होते है।”

“मम्मीजी, आपने भाभी से कभी यह सब कहा?” कथा ने पूछा।

“मैं क्यों उसे यह सब बोलू… मेरे खाने-पीने पर पाबंदी लगा रखी है तो मैं क्यों बताऊं। मैं तो जानबूझ कर उसके खाने में मीन-मेख निकालती हूं क्योंकि ज्यादा तारीफ से उसका दिमाग खराब हो गया तो।!! वैसे ही आजकल हवा में उड़ती रहती है” रंजना जी ने फिर मुंह टेढ़ा कर लिया।

“मम्मीजी, मै भी आपको एक राज की बात बताऊं… ये लड्डू का चूरा करके भाभी ने ही मुझे दिया ताकि आप अच्छे से खा सके” कथा की बात सुनकर पानी पीती रंजना जी को ठसका लग गया और खांसने लगी। कथा ने उन्हें पानी पिलाया और फिर उषा के पास चली गयी।

“भाभी, आपको बुरा ना लगे तो एक बात पूछू?” कथा उषा के पास बैठ गयी।



“जानती हूं कि तुम क्या पूछना चाहती हो… यही ना कि मैनें ऐसा क्यों कहा कि हर एक लड्डू की कीमत है!!!” थोड़ी देर रुकने के बाद बेड के पास ही पड़ी एक बच्चे की तस्वीर उठा कर उसे प्यार से देखते हुए बोली,”अस्पताल में दो दिन हो गए थे मुझे और मम्मीजी का कहीं अता-पता नहीं था।  से पूछा तो उन्होनें कहा कि मम्मीजी की तबीयत खराब है वो घर पर है। मुझे भूख लगी थी… मेरी दो दिन की बेटी शीनू भी भूखी थी। वरुण शायद खुद ही खाना बनाकर ला रहे थे क्योंकि सब्जी और रोटी आधी कच्ची-पक्की होती थी। जब शीनू को लेकर घर आयी तो मम्मीजी अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकली। वरुण और देवर जी ने ही मेरा और शीनू का टीका करके स्वागत किया। मैं मम्मीजी से मिलने उनके कमरे में गयी तो उन्होनें मुंह फेर लिया और बेटी पैदा करने के उलाहने देने लगी। तब मुझे समझ आया उनकी तबियत खराब होने का राज… अब रोज मुझे ताने मारे जाते। एक दिन मैनें मम्मीजी से कहा कि सौंठ,मेथी-गोंद के लड्डू बना दीजिये क्योंकि मुझे भूख लगती थी और ठंड भी बढ़ रही थी। तब मम्मीजी ने मुझे ताना दिया, “अपने मायकेवालों से जाकर डिमांड करो लेकिन उन्हें भी कैसे कहोगी। उनकी औकात ही नहीं है देशी घी और मेवे खरीद सके। ऐसे ही नहीं बन जाता है सौंठ मेथी के लड्डू… हर एक लड्डू की कीमत होती है। ऐसा नहीं है कि मेरे मायके वाले गरीब है और हमनें घी-मेवे नहीं खाए थे। बस मम्मीजी को मुझे नीचा दिखाने का जुनून हो गया था। वरुण मम्मीजी के आगे कुछ बोलते नहीं थे। मम्मीजी के रोज-रोज तानों से मैं मानसिक तनाव में रहने लगी जिसका असर शीनू की सेहत पर भी पड़ने लगा। तब डॉक्टर की वार्निंग पर वरुण ने मुझे कुछ महीनों के लिए मायके भेज दिया। लगभग पांच-छह महीने के बाद मैं वापस आयी और तब तक मैं समझ चुकी थी कि मम्मीजी की बातों को नज़रंदाज़ करना होगा क्योंकि मुझे शीनू के लिए स्वस्थ रहना था। मम्मीजी के ताने कभी बंद नहीं हुए लेकिन अब मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता था।

एक दिन मम्मीजी ऐसे ही मुझ पर अपने तानों का प्यार बरसा रही थी कि अचानक वो बेहोश हो गयी। तुरंत उन्हें डॉक्टर के पास ले गए। ब्लड टेस्ट और इसीजी की रिपोर्ट आयी तो पता चला कि हाई ब्लडप्रेशर और कोलेस्ट्राल बहुत बढ़ा हुआ है और डायबीटीस भी बॉर्डर पर है। तब से उनके खाने-पीने पर कंट्रोल लग गया। क्योंकि मैं उनकी डायट को पूरी तरह से फॉलो करती हूं इसलिये मुझ पर आरोप लगाती कि मैनें उनके खाने-पीने पर बंदिश लगा दी। ऐसा भी नहीं है कि मैं उन्हें उनकी पसंद खाने नहीं देती। जब भी लड्डू या कुछ और भी उनकी पसंद का बनता तो उन्हें जरुर देती। लेकिन जब आज तुमने यह कहा कि मैनें मम्मीजी को लड्डू खाने को नहीं दिया तो मैं समझ गयी कि जरुर मम्मीजी ने तुमसे मेरे बारे में कुछ गलत ही कहा होगा और मुझे पिछला सब याद आ गया कि एक समय इसी लड्डू की कीमत मुझे बतायी जा रही थी तो मन क्षोप से भर गया और मैनें तुमसे वो सब कहा” उषा यह सब बताते-बताते रोने लगी।



“भाभी, हैरानी तो मुझे हुयी थी आपकी बात सुनकर लेकिन आपको भी मैं दो महीने से देख रही हूं। आपने अपनी छोटी बहन की तरह मुझे प्यार दिया और आपके मम्मीजी के बीच का तनाव मैनें महसूस भी किया था। विकास(पति) से पूछा भी तो उन्होनें यही कहा कि उन्हें ज्यादा नहीं पता क्योंकि वो अधिकतर हॉस्टल में ही रहे है। आपको एक बात बताऊं मम्मीजी मुझे बता रही थी कि आप तिल-गुड़ और सेव-गुड़ लड्डू के साथ खाना भी बहुत अच्छा बनाती है और जानबूझ कर मीनमेख निकालती है” कथा ने जब बताया तो ना चाहते हुए भी उषा के चेहरे पर हंसी आ गयी।

“जानती हूं मम्मी जी मेरे खाने को बेकार, बेस्वाद बोलती है लेकिन वही खाना चटखारे लेकर जब खाती है तो मैं भी समझ जाती हूं। समय सबको बदल देता है और इन पांच सालों में मैने मम्मीजी को बहुत बदलते देखा है। शीनू को भी अब प्यार करने लगी है लेकिन मेरे प्रति उनकी उदासीनता अभी तक दूर नहीं हुयी और सच कहूं तो अब मुझे कोई चाह भी नहीं है” उषा ने फ़ीकी हंसी के साथ कहा।

“चाह तो मेरी भी नहीं है कि मैं तुझसे नाराज ना रहूं लेकिन ईगो की वजह से मैं तुझसे माफी भी नहीं मांग सकती। मैं जानबूझ कर तुझे प्रवोक करती कि किसी बहाने तू मुझसे लड़े लेकिन तू मेरे प्रति पूरी तरह से उदासीन हो गयी थी। माफ कर दे मुझें… मैनें मां होकर तुझे भूखा रखा लेकिन तुमने हमेशा मेरा बहू होकर भी बेटी से बढ़ कर ख्याल रखा। तू बेटी बन गयी लेकिन मैं मां ना बन पायी। आज अगर मैं स्वस्थ खड़ी हूं तो सिर्फ तुम्हारी वजह से। तुमने मुझे दूसरा जन्म दिया है वरना डॉक्टर ने ज्यादा उम्मीद नहीं दी थी” रंजनाजी ने आगे बढ़कर उषा को गले लगा लिया तो उषा भी अपनेआप को ना रोक पायी और कस कर के गले लगकर रोने लगी।

“इसी बात पर एक-एक लड्डू हो जाए” कथा लड्डूओं की प्लेट के साथ सामने खड़ी थी। रंजनाजी और उषा एक-दूसरे को देखते हुए मुस्कुरा दी और तीनों लड्डुओं का मजा लेने लगी। आज लड्डुओं का स्वाद भी दुगुना हो गया था।

एक स्त्री की यही चाह होती है कि ससुराल में उसे मान-सम्मान मिले। सास उसे बेटी ना सही लेकिन एक बहू का मान तो दे।

स्वरचित,

अर्पणा जायसवाल

#चाहत

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!