आज अपने घर को बड़े ही करीने से सजाते हुए श्रिया अपने पुराने घर की यादों से इस घर को आजाद करने की भरसक कोशिश कर रही थी पर उस घर की यादों में बेटी की बात याद कर लग रहा था यहाँ आने का फैसला चाहे कितने को गलत लगा हो पर मेरी बेटी के लिए लिया मेरा फैसला एक दम सही है।
तभी छनाक की आवाज सुनाई दी वो दौड़ कर कमरे की ओर भागी। देखती है बेटी अपने टेबल पर से सारा सामान फेंक रही है।
“क्या हुआ मेरी बच्ची.. … ऐसे क्यों फेंक रही है सारा सामान…ऐसे नहीं करते बेटा।” कहते हुए अपनी आठ साल की इकलौती लाडली इति को सीने से लगा ली
उधर दूसरे कमरे में काम करता श्रिया का पति सार्थक भी दौड़ते हुए कमरे में आ गए।
‘‘ सार्थक इति का डर कैसे निकलेगा? ये अभी भी उन बातों को ही सोचती रहती है.. हमने देरी कर दी.. बस परिवार की इज्जत की खातिर बस इतनी सी बात सुन सुन कर अपनी लाडली को ही मुसीबत में डाल दिए। पता नहीं उस दिन क्या हो सकता था।
“मैंने भी कभी उस बात को इतनी गहराई से नहीं सोच पा रहा था.. बस माँ पापा का ख्याल तुम रख सको इसलिए तुम्हें उनके पास रहने बोल रहा था पर क्या पता था अपने ही घर में ऐसा भी कुछ हो सकता था…अब हम यही साथ साथ रहेंगे श्रिया… इति को अब उस खौंफ से बाहर लाना होगा।”कहता हुआ सार्थक श्रिया के साथ साथ इति को भी अपने बाहों के घेरे में ले लेता है
श्रिया इति को किसी तरह समझा कर सोने बोलकर उसके साथ ही लेट जाती है।
इस कहानी को भी पढ़ें:
घर का हिस्सा बेटियाँ- प्राची अग्रवाल : Moral Stories in Hindi
कहते हैं ना मन जब किसी बात से भयभीत हो तो हर वक्त वही सब बातें दिमाग़ में घूमती रहती बस श्रिया भी आज अपने ससुराल के गलियारों में चल पड़ी थी..
सास ससुर के साथ श्रिया और इति बहुत आराम से संग संग रह रहे थे। सार्थक की नौकरी पास के ही शहर में थी तो वो सप्ताहांत में आया करते थे। वक़्त गुज़र रहा था। सार्थक की एक बड़ी बहन भी थी जो दूसरे शहर में रहती थी। उनका एक बारह साल का बेटा था ।पति की मृत्यु एक रोड एक्सीडेंट में हो गई ,घर की माली हालत ठीक नहीं थी तो वो अपने मायके आ गई। माँ बाप भाई की लाडली सुमन को यहां कोई दिक्कत भी नहीं हो रही थी।
श्रिया ने भी बड़ी ननद का पूरा मान किया। सुमन का बेटा मानस और इति साथ साथ खेलते पढ़ते।
कुछ दिनों से श्रिया देख रही थी कि इति चुप-चुप सी लगने लगी है ।
पूछने पर इति जो भी बोली सुनकर श्रिया ने यह कहकर टाल दिया कि ,‘‘बेटा वो भी बच्चा है ऐसा कुछ नहीं होगा जो तुम सोच रही हो.. तुम लोग मोबाइल कम देखा करो।’’
उसके बाद से श्रिया ने भी नोटिस करना शुरू किया तो लगा इति ठीक ही कह रही थी वो जिसे बस इतनी सी बात समझ रही थी वो इतनी सी नहीं थी।
इस बारे में उसने सास से पहले कहा तो वो भी यही बोली इतनी सी बात है अरे बच्चे हैं वो …ऐसा वैसा क्यूँ सोच रही है।
ननद से भी बात की वो भी यही बोली श्रिया मानस बच्चा है बस इतनी सी बात के लिए तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो…!
श्रिया ने भी बात को वही खत्म करना सही समझा पर मन में डर बैठ गया था और वो सतर्क रहने लगी थी। इस बार जब सार्थक आए तो उनसे भी उस बात पर चर्चा की पर जवाब एक सा ही मिला वो बच्चे हैं ऐसा कैसे कुछ सोच सकती हो.. बस इतनी सी बात के लिए परेशान मत हो।
इस कहानी को भी पढ़ें:
बस इतनी सी बात उस दिन बहुत बड़ी बन गई जब इति अपने कमरे के दरवाजे को बिना बंद किए वॉशरूम चली गईं, और तौलिया ले जाना भूल गई।
तभी हर दिन की तरह मानस जो कमरे के बाहर इति को झाँककर देख रहा था बंद ना होने की वजह से दरवाजा खुल गया।
और इति इन सब से अंजान तौलिया लेने बाहर आगई।मानस की इस व्यवहार से पहले ही वो डरती रहती थी कि वो जब भी कपड़े बदलती या फिर नहाने जाती वो उसके आसपास ही घूमता रहता करता चाहे कुछ करे ना करे पर उसके इस तरह देखने से ही इति को डर लगता था।
मानस तौलिया पकड़ कर खड़ा हो गया।इति जोर जोर से चिल्लाने लगी। श्रिया किसी अनहोनी से डर कर जल्दी से कमरे में आई..इति को कपड़े पहनाए और मानस को बाहर जाने बोली।
सास और सुमन भी आवाज सुनकर कमरे में आ गए। बात पूछने पर जब श्रिया ने मानस की हरकत बताई तो दोनों ने फिर वही कहा ,”बच्चा है शरारत कर रहा होगा.. इतनी सी बात के लिए तुम ना जाने क्या क्या सोचने लगी।’’
उस वक्त तो श्रिया कुछ ना बोली।
वो सोची दूसरे दिन सार्थक आने वाले हैं अब उनसे ही बात करूँगी।
दूसरे दिन श्रिया ने सार्थक से कहा,‘‘ अब मैं इति के साथ यहाँ नहीं रह सकती….मानस को सब बच्चा समझ कर नजरअंदाज कर रहे हैं पर उसका असर हमारी बेटी पर हो रहा है, ना माँ सुनने समझने को तैयार है ना दीदी….आप भी नहीं समझना चाहते तो ना समझे पर मेरी बेटी के लिए ये सब सही नहीं है.. बच्चा बच्चा कर के बहुत बड़ी ग़लती ना कर दे हम.. मानस दिन भर मोबाइल देखता रहता.. दीदी कुछ नही कहती.. गलत असर किसी भी उम्र में हो सकता इस बात को आप लोग कोई समझना ही नहीं चाहते। उनके लिए बस इतनी सी बात होगी पर मेरी इति के लिए बहुत बड़ी बात हो गई। वो खुद को देखकर रोने लगती है और शर्म से किसी के सामने नही जा रही।इति बच्ची है पर बात समझती है। स्कूल में उन्हें हर बात को समझाया जाता है गुड टच बैड टच क्या होता है….मानस लड़का है जाने वो ऐसे क्यों करता कितनी बार डाँट भी लगाई है….पर सुनता ही नहीं….ऐसे में यहां रहना सही नही है…माँ को भी समझना होगा और दीदी को भी और इन सब से सबसे पहले आपको।’’
इस कहानी को भी पढ़ें:
इसके बाद सार्थक श्रिया इति को लेकर इधर आ गए।घर में सबको इस फ़ैसले पर बामुश्किल था समझाना पर जब एक माँ अपनी बेटी के लिए सोचने पर आ जाए तो बहुत कुछ नजरअंदाज कर देती चाहे किसी का कितनी कड़वी बात ही क्यों न हों।
धीरे धीरे इति सामान्य होने लगी। सास ससुर को भी एहसास होने लगा कि मानस की हरकत सही नहीं रहती वो कभी कभी मोहल्ले में भी बच्चियों को छेड़ देता था। सुमन ने फिर कड़ी निगरानी में मानस को रखना शुरू किया मन में आई विकृति दूर करने के लिए वक्त पर उठाए सुमन के कदम से धीरे धीरे मानस में भी सुधार लाने लगा।
मेरी इस रचना को लिखने का प्रयास बस इसलिए है कि हम कई बार जिन बातों को बस इतना ही कह कर टाल जाते या नजरअंदाज कर जाते है वो बातें बच्चों के मन की विकृतियों में से एक हो सकती है… आज वक्त ऐसा आ गया है कि लोग अपनों पर शक करने से बाज नहीं आते ऐसे में लड़का हो या लड़की हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों पर पैनी निगाह जरूर रखें.. कोई भी हरकत अगर हमें शंकित करती हैं तो उसपर गौर फरमाएं बस इतनी सी बात कहकर ना टाले।
आपके विचारों का इंतजार रहेगा।
आपको मेरी रचना पंसद आये तो कृपया उसे लाइक करे और कमेंट्स करें ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# फ़ैसला