बारिश ने बना दी बात – ऋतु अग्रवाल

   आयुषी कल से बहुत परेशान है। जबसे मम्मी ने बताया है कि कल लड़के वाले उसे देखने आ रहे हैं तब से वह मन ही मन ना जाने क्या-क्या तिकड़में लगा रही है पर मम्मी भी उससे एक कदम आगे हैं। मतलब वह डाल डाल तो मम्मी पात पात।

    अब आप सोचेंगे कि आयुष इतनी परेशान क्यों है? दरअसल बात यह है कि हमारी आयुषी एक साँवली सलोनी, तीखे नैन नक्श की प्यारी सी लड़की है जो पेशे से टीचर है। चुलबुली सी आयुषी गृहकार्य भी निपुणता से कर लेती है। सब कुछ ठीक-ठाक पर मम्मी को लगता है कि सांवले रंग की वजह से आयुषी को अच्छा रिश्ता नहीं मिल पाएगा। वही सो कॉल्ड सोसाइटी टैबू मतलब गोरा रंग अनिवार्य।

      आयुषी कितना कहती कि मम्मी हम भारतीय साँवले या गेहुंए रंग के ही होते हैं। आपको क्यों लगता है कि साँवले होने की वजह से मेरी शादी नहीं होगी? पर आयुषी की मम्मी भावना हमेशा ही तरह तरह के उबटन और लेप बनाकर आयुषी को देती रहती। आयुषी जानती थी कि इन सब उपायों से केवल रंगत निखर सकती है, गोरी नहीं हो सकती। पर मम्मी का मन दुखी ना हो इसलिए बहस नहीं करती थी।

       अब जब लड़के वाले देखने आ रहे हैं तो भावना ने फरमान जारी कर दिया कि  आयुषी को तैयार करने के लिए ब्यूटीशियन आएगी। आयुषी जानती थी कि ब्यूटीशियन तरह तरह की प्रसाधन सामग्री का इस्तेमाल करके उसे कुछ घंटों के लिए गोरा कर देगी। वह इस तरह के झूठ के लिए तैयार नहीं थी। वह जैसी है वैसी ही लड़के वालों के सामने आना चाहती है। उसने भावना को कहा,” मम्मी मैं आपकी इस बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ। यह झूठ है, चलो मान लिया आप मुझे ब्यूटीशियन से तैयार करवा दोगी पर शादी के बाद तो मेरा वास्तविक रंग रूप उनके सामने आएगा, अगर तब बात बिगड़ी तो आप क्या करोगी?



    पर भावना सच्चाई से मुँह मोड़ लेना चाहती थी। वह कुछ सुनने समझने को तैयार ही नहीं थी। भावना की जिद और रोने धोने के सामने आयुषी को घुटने टेकने ही पड़े।

    अगले दिन सुबह से ही भावना बड़ी खुश थी। सब तैयारियाँ हो चुकी थी। ब्यूटीशियन आयुषी को तैयार कर चुकी थी।आयुषी बहुत खूबसूरत लग रही थी। ब्यूटीशियन ने आयुषी का कायाकल्प कर दिया था। जैसा भावना चाहती थी उसी के अनुसार आयुषी गोरी दिख रही थी। पर कहीं कुछ आयुषी के भीतर दरक रहा था। वह इस फरेब से बिल्कुल भी खुश नहीं थी।

    ग्यारह बजते बजते लड़के वाले आ गए। पूरा परिवार उनकी खातिरदारी में लग गया। चाय लेकर आती आयुषी पर सभी की नजरें टिकी हुई थी। बातचीत का सिलसिला जारी हुआ तो आयुषी ने अपने सरल व्यवहार से सभी का मन मोह लिया। वहीं लड़के की मम्मी कुछ असहज सी दिख रही थीं। थोड़ी ही देर में आयुष और विभोर को बातचीत करने के लिए छत पर भेज दिया गया। दोनों एक दूसरे को अपनी-अपनी पसंद नापसंद से अवगत कराने लगे। दोनों को एक दूसरे का साथ भा रहा था पर कुछ अजीब सा विभोर की आँखों में चुभ रहा था।

      दोनों छत पर टहलते टहलते बातचीत कर ही रहे थे कि अचानक टिप टिप शुरू हो गई। विभोर तो ओट में खड़ा हो गया पर आयुषी हाथ फैला कर अपने चेहरे पर टपकती बूँदों का एहसास अपने अंतर्मन में समाने लगी। ज्यों ज्यों बारिश बढ़ने लगी, आयुषी एक बच्चे में तब्दील होने लगी। कभी गोल गोल चक्कर काटती कभी पैरों से पानी उछालती। उसे विभोर का ध्यान ही नहीं रहा और ना ही चेहरे से उतरते मेकअप के आवरण का। टपकती बूंदों ने मेकअप के आवरण के साथ-साथ औपचारिकता का आवरण भी उतार दिया।

        विभोर आयुषी के इन पलों को मोबाइल में कैद करने लगा। वह आयुषी के साँवले सलोने, मासूम रूप को देख कर आनंदित हो रहा था। उसे सब समझ आ रहा था कि वह चुभन जो उसकी आँखों को परेशान कर रही थी, वह आयुषी के चेहरे पर मेकअप की परत और उससे उपजी अस्वाभाविकता थी।

      विभोर ने फोन करके अपनी मम्मी को ऊपर बुला लिया। विभोर की मम्मी रचना जी आयुषी में छिपी खिलखिलाती बच्ची को देखकर बहुत खुश थी। उनके पीछे पीछे बाकी सभी लोग भी ऊपर आ गए। भावना आयुषी को रोकने के लिए आगे बढ़ी तो रचना जी ने उनका हाथ थाम कर कहा,” भावना जी! मुझे अपने विभोर के लिए ऐसी ही हँसती, खिलखिलाती बच्ची चाहिए ना कि कोई सजी-धजी गुड़िया। रंग रूप का क्या है भावना जी,वह तो आज है कल नहीं पर व्यवहार की सहजता और स्वाभाविकता सदैव साथ रहती है। मैं आपसे अपने बेटे के लिए आयुषी का हाथ माँगती हूँ और इसके लिए मुझे अपने परिवार की अनुमति की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैं जानती हूँ कि मेरा  परिवार भी स्वभाव को ही प्राथमिकता देगा।

        सबको ऊपर आया देख और उनकी बातें सुन आयुषी ठगी सी खड़ी थी। वह शरमा कर नीचे जाने लगी तो रचना जी ने आयुषी का हाथ पकड़कर कहा,” भावना जी एक बात और! जो बात आपकी मेकअप से लिपी पुती मानसिकता नहीं कर सकती थी, वह काम इस बारिश की बूँदों और इस बच्ची की सहजता ने कर दिखाया। मैं समझती हूं कि अधिकतर लोगों गोरे रंग को प्राथमिकता देते हैं पर वे यह भूल जाते हैं कि जो सुंदरता स्वभाव और सहजता में होती है जो कि चेहरे पर दिखती ही है वह मेकअप की परत में नहीं होती।”

  रचना जी की बात का सभी लोगों ने ताली बजाकर स्वागत किया।आयुषी और विभोर की नजरें मिली और सावन की बौछारें दोनों के ह्रदय के सागर टप टप  गिरने लगीं। #बरसात

#बरसात

स्वरचित

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

यह कहानी पूर्णतया मौलिक है।

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