बारिश और भीगी सड़क – आरती झा

भीगी सड़क देख अनायास ही अरुण के चेहरे पर मुस्कुराहट खेल गई। उसने पूरी कोशिश की थी कि सामने बैठी पत्नी विधि की नजर उसके मुस्कुराते चेहरे पर ना पड़े। 

विधि चाय का कप उठाते हुए पूछ ही बैठी.. बारिश देख अरुणा की याद आ गई क्या… अरुणा अरुण की छोटी बहन..अरुण से महज दो साल छोटी। 

अरुण – नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। 

अरुणा – कब तक बहन के प्रति प्यार और सम्मान छुपाए रखोगे। इतना बड़ा अहं बना कर बैठ गए हो तुम। क्या माँग लिया था तुमसे उसने.. इस घर में अपने नाम की एक कोठरी ही ना। 

अरुण – वो सिर्फ कोठरी नहीं .. माँ की कोठरी अपने नाम चाहती थी।

विधि – माँ क्या अलग अलग थी तुम दोनों की.. कोठरी भी तब तक के लिए जब तक जिंदा है…इतना ही कहा था अरुणा ने। जान छिड़कने वाला भाई उसकी ये इच्छा पूरी नहीं करेगा.. उसने सोचा भी नहीं होगा। 

कहकर विधि खाली हुए चाय के कप लेकर वहाँ से उठ गई। 

अरुण पत्तियों से टपकते मोतियों के बूँदों को देखता हुआ अतीत में खो गया। अरुणा बचपन से ही गोल मटोल.. प्यारी जापानी गुड़िया सी लगती थी…माँ बताती थी तूतली बोली में मैंने ही उसे गुड़िया कहा था।

तब से सबकी गुड़िया हो गई थी अरुणा। बारिश होते ही मचल उठती थी मेरी बहन। नीचे जाकर बारिश में भीगने और उस पानी में लोट पोट होने के लिए और मैं माँ के मना करने के बावजूद भी उसकी ख्वाहिश पूरी करने जरूर ले जाता था। 

माँ को दुनिया से गए दस साल बीत गए और अरुणा को इस घर से गए भी दस साल बीत गए। कितना रोई थी वो जब मैंने कहा था “तुम्हारी नीयत में ही खोट है”.. साथ ही यहाँ कभी ना आने भी कह दिया।एक ही शहर में रहते हुए भी ना वो पलट कर आई और ना ही मैंने उसकी कोई खबर लेनी चाही।




विधि जरूर भाभी होने का फर्ज निभाती हाल चाल लेती रही।लेकिन मेरी नाराजगी के डर से ना खुद जा सकी ना ही अरुणा को बुला सकी।

उस दिन भी अरुणा के यहाँ से जाते समय ऐसी ही बारिश हो रही थी.. सड़कें और उसकी आँखें दोनों ही भीगी हुई थी।

आज मन झकझोर रहा था।क्षमता होते हुए भी बेटी की शादी के बाद “तुम्हारी किस्मत” कह जान छुड़ा लिया जाता है। जबकि बेटे के लिए पढ़ाई और शादी के बाद भी उसकी सुविधा के लिए सम्पति अर्जित की जाती है.. उसे कोई नहीं कहता..”तुम्हारी किस्मत” ..

अगर माँ पिताजी ने ही संपत्ति में से आधा अरुणा को दे दिया होता तो मैं क्या कर लेता।शायद मुझे खुशी ही होती…मैं लालची तो कभी नहीं था… फिर क्या हुआ उस दिन.. पुरातनपंथी सोच हावी हो गई या कुछ और… जो कुछ भी हुआ.. गलत ही हुआ..इसी मौसम में एक गलती हुई थी.. इसी मौसम में गलती सुधार भी लूँगा…

विधि को आवाज देता हुआ अरुण गाड़ी की चाभी निकालने लगा। 

इस मौसम में कहाँ जा रहे हैं? 

अरुण – बारिश की बूँदों के साथ जो बह गया था.. आज उसे समेटने जा रहा हूँ। 

विधि – साथ लेकर ही आना .. तब तक मैं अपनी ननद रानी के स्वागत की तैयारी करती हूँ। 

#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल 




आरती झा”आद्या”

दिल्ली

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