बंधन – नेकराम

बात सन 1985 की है जब मैं 5 वर्ष का था

यह कहानी आज से 37 वर्ष पुरानी है

आज मेरी उम्र 42 वर्ष 11 दिन 10 घंटे 9 मिनट 7 सेकंड हो चुकी है

दिल्ली की एक छोटी सी पुनर्वास कालोनी में हमारा एक छोटा सा कच्चा सा मकान था बरसात के दिनों में घर में पानी जमा हो जाता था बरसात बंद होने के पश्चात हम अपनी अम्मा के साथ मिलकर घर का पानी बाहर निकालने में जुट जाते थे

बड़ा भाई अक्सर मेरे हिस्से का पानी भी स्वयं निकालता मैं दूर एक कोने में बैठा बैठा देखता रहता था

बड़ा भाई जिनकी उम्र उस समय 9 वर्ष थी मैं उन्हें भैया ही कहता था यह मुझे अम्मा ने सिखाया था

7 वर्ष की एक बहन थी प्यारी सी अम्मा हमेशा मुझे आंख दिखाते हुए कहती खबरदार अगर बहन का नाम लिया तो उसे बड़ी दीदी ही कहकर पुकारना है तब मैंने भी मन में गांठ बांध ली ठीक है बड़ी बहन को बड़ी दीदी ही कहकर बुलाऊंगा

घर के आंगन में मिट्टी का बना हुआ चूल्हा जिस पर अम्मा हमेशा सुबह-शाम उपले जलाकर पतीले में दाल बनाया करती थी हम सब भाई बहन चूल्हे के चारों ओर मिट्टी के बने फर्श पर बैठकर खाना खाया करते थे

मैं अक्सर अम्मा से बातें करता पापा हमारे साथ खाना क्यों नहीं खाते सब के पापा तो घर में रहते हैं हमारे पापा कहां हैं

अम्मा इसका जवाब कभी ना देती और खामोश होकर रोटियां पकाती रहती

लेकिन बड़े भैया हाजिर जवाबी थे तुरंत कह देते थे नेकराम तू खाना खाते समय मत बोला कर

अपने पापा को किसी ने जादू टोना कर दिया है इसलिए वह घर पर नहीं आते कहीं दूर अनजान सुनसान जगह पर घूमते रहते हैं

अब हम ही बड़े होकर अम्मा का सहारा बनेंगे

खाना खाने के बाद हम अक्सर अम्मा से पूछ कर पास के ही एक पार्क में खेलने चले जाते थे वहां मोहल्ले के बहुत से बच्चे इकट्ठे हो जाते थे सभी बच्चे अपने अपने खेल खेलते थे

उस पार्क में एक बड़ा सा पेड़ था मैं हमेशा उस पेड़ पर चढ़ने की जिद करता तो बड़े भैया मेरी खूब मदद करते



और पार्क में खेलते खेलते जब मेरा झगड़ा बच्चों से हो जाता तो मेरे बड़े भैया सुपरमैन बन कर आते और सब बच्चों की खूब धुलाई करते मुझे बड़ा मजा आता और फिर बड़े भैया कहते घर जाकर अम्मा को कुछ ना बताना वरना अम्मा हम दोनों को आज शाम को खाना नहीं देगी

मैं भैया की हां में हां मिलाता और खुशी खुशी घर आ जाता

उन्हीं दिनों मेरा पहली क्लास में दाखिला हो गया था उस समय मेरे बड़े भैया तीसरी कक्षा में थे उन्होंने स्कूल की क्लास में आकर सब बच्चों को धमकाया और कहा यह मेरा छोटा भाई नेकराम है अगर किसी ने भी इसे पीटने की या मारने की कोशिश की तो समझो उसकी में खूब धुलाई करूंगा

क्लास के सारे बच्चे मुझसे डर कर रहते

स्कूल से घर आने के बाद जब अम्मा हमें कहीं नजर ना आती घर पर तो बड़े भैया मुझे बताते नेकराम तू चिंता मत कर अम्मा शाम का खाने का इंतजाम करने के लिए कहीं पर काम करने गई होगी क्योंकि पापा तो अपने घर पर है नहीं मैं देखता हूं घर में कुछ खाने पीने का सामान रखा हो तो

बड़े भैया जल्दी से चूल्हा तैयार करते और कुछ 2   3 रोटियां मोटी मोटी सेक लेते और मुझे अचार के साथ खिला देते और मुझे पढ़ाने के लिए बैठ जाते और कहते हुए नेकराम तुझे बड़ा होकर मैं आईपीएस अधिकारी बनाऊंगा

मैं भी जिद पकड़ लेता और पूछता भैया यह आईपीएस अधिकारी कौन होता है यह क्या काम करता है

बड़े भैया कहते आईपीएस अधिकारी का मतलब तो मुझे नहीं मालूम लेकिन किसी बड़े साहब के मुंह से सुना था वह अपने बेटे को कह रहे थे कि तुझे आईपीएस अधिकारी बनाऊंगा

मैंने भी चिल्ला कर कहा कि मैं पुलिस वाला बनूंगा

तब बड़े भैया बोले पुलिसवाला नहीं बनाऊंगा तुझे मैं तुझे पता है ना अपने थाने के पुलिस वाले कुछ भी काम नहीं करते हैं हमारे मोहल्ले में रोज चोरियां होती है पुलिस उन्हें नहीं पकड़ती

मैं मासूमियत से कहता तो मैं डॉक्टर बनूंगा बड़ा होकर

बड़े भैया इस पर भी ऐतराज जताते और कहते कि डॉक्टर अच्छे होते तो हमारे पापा का इलाज ना हो जाता अब तक

पड़ोस में रहने वाली बूढ़ी काकी बीमारी से मर गई किसी भी डॉक्टर ने उनका इलाज नहीं किया

सब डॉक्टर पैसे मांगते हैं गरीब आदमी पैसा कहां से लाए

सूरज ढलते ही अम्मा का घर में आगमन हो जाता 7 वर्ष की बहन की उंगली थामे घर में आते ही चिल्लाना शुरु कर देती स्कूल की ड्रेस यहां फेंक रखी है घर के बर्तन वहां फेंक रखे हैं घर में ना झाड़ू ना पूछा घर की हालत देखो कितनी बुरी हो रखी है

जब देखो सारे दिन नेकराम को पढ़ाने के लिए बैठा रहता है ना अभी तक उसने सर के बालों में कंघी की ना अपने मुंह हाथ धोए हैं

इन्हीं नोकझोंक में दिन बीतते चले गए



पिताजी कभी कभार महीने 4 महीने में घर लौट आते और फिर अचानक गायब हो जाते

उस समय बड़ा भाई ही मुझे पिता की भांति प्यार से मेरी हर छोटी से छोटी गलतियों को नजर अंदाज करता और दिन-रात मुझे पढ़ाता

एक बार गली में भालू वाला आया और साथ में भालू भी लाया बच्चों की बहुत भारी भीड़ हो चुकी थी तब बड़े भैया ने मुझे कंधे पर बिठाकर मुझे भालू का नाच दिखाया उस समय शायद बड़े भैया को भालू का नाच देखने को ना मिला हो लेकिन मैंने पूरा आनंद लिया

स्कूल में दिया हुआ काम भी बड़े भैया मेरा चुपचाप कर कर बस्ते में रख देते मुझे पता भी नहीं चलता

जब बहुत सालों तक पिता नहीं लौटे तब बड़े भैया ने स्कूल छोड़ने का फैसला लिया और दसवीं क्लास से अलविदा कहकर मोहल्ले के पास ही एक नौकरी करने लगे

जब मैं बड़े भैया से लड़ जाता और कहता कि मैं भी स्कूल छोडूंगा और आपकी तरह नौकरी कर के अम्मा का हाथ बटाऊंगा

तब बड़े भैया मुझे गुस्से में कहते नहीं नेकराम तुझे पढ़ना है मैं तुझे पढ़ाऊंगा तू घर की चिंता ना कर मां अब दिन पर दिन बूढ़ी होती जा रही है कब तक हमको तीनो भाई बहनों को पालेगी

बहन की भी शादी करनी है

मकान की हालात दिन पर दिन जर्जर होती जा रही है कहीं हम इसी मकान के नीचे दबकर मर ना जाएं इससे पहले मैं इस मकान को पक्का कर लूं

बड़े भैया ने पास में ही एक नौकरी पकड़ ली और फिर रात दिन मेहनत करना शुरू कर दिया ओवर टाइम लगा कर महीने में कुछ पैसे जुटा लाते थे जिससे घर का खर्चा चलने लगा

और बहन की शादी के लिए पैसे इकट्ठे करने के लिए घर में एक गुल्लक की व्यवस्था भी कर दी

महीने में 40 50 रुपए इकट्ठे हो जाते थे गुल्लक में

तभी पड़ोसियों ने कहा अपना मकान बनवा लो काफी पुराना हो चुका है वरना टूट जाएगा

बड़े भैया ने मकान को पक्का बनाने के लिए  फैसला ले लिया

बात यहां अड़ गई कि मजदूरों को नहीं बुलाएंगे मकान हम सब मिलकर तोड़ेंगे कुछ रुपयों की बचत होगी

खुदाई शुरू हुई तो उसमें

जमीन खोदने पर  एक बड़ा सा कलर्स दिखाई दिया उसमें बहुत सारे जेवरात थे बड़े भैया ने यह जेवरात अम्मा को दिखाएं अम्मा बोली शायद यह कोई खाजाना है

भैया ने अम्मा को समझाया यह बात किसी को ना बताना

पुलिस को तो बिल्कुल भी नहीं वरना पुलिस उल्टा हमें ही पकड़ कर ले जाएगी

अम्मा और बड़े भैया ने मिलकर उस गहनों को बेचना शुरू किया और कुछ महीना बाद हमारा गोकुलपुरी में दो मंजिला मकान बन चुका था सबसे खूबसूरत और सबसे ऊंचा

घर में रंगीन टेलीविजन फ्रीज और डोरी वाला फोन भैया ने तुरंत लगवाया

बहन की शादी बड़े ही धूमधाम से कर दी

पिता की खोज में हजारों लाखों रुपए फूंक दिए और 1 दिन पिता हमें हरिद्वार के हर की पौड़ी पर मिले

पिता कमजोर हो चुके थे लेकिन मां को तसल्ली थी चलो मेरे मांग का सिंदूर तो सही सलामत है

बड़े भैया ने अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखा कर पिता को सही सलामत फिर वैसा ही स्वस्थ कर दिया

बड़े भैया 22 वर्ष के हो चुके थे उनके लिए एक अच्छा सा रिश्ता आया लेकिन बड़े भैया ने कहा नहीं मुझे नेकराम को पढ़ाना है नेकराम अभी दिल्ली के विश्वविद्यालय करोड़ीमल कॉलेज में पढ़ रहा है

लेकिन अम्मा के आगे किसी की ना चली और बड़े भैया की शादी कर दी घर में एक नया मेंबर आ चुका था भाभी भी दिल्ली की रहने वाली थी पढ़ी लिखी थी

अब अम्मा ने खाना बनाना बंद कर दिया था भाभी  किचन से सुंदर-सुंदर भोजन बनाकर हमें खिलाती पिताजी अम्मा बड़े भैया और मैं और भाभी हम सब मिलकर खूब अच्छे से दिन बिताने लगे

एक दिन मैं कॉलेज से घर पहुंचा तो दीवार के पीछे से भैया और भाभी की वार्तालाप सुनी

भाभी कह रही थी तुम तो पागल हो अपने छोटे भाई के लिए मरते हो अब कुछ ही दिनों में अपनी  संतान होने वाली है हमें भी तो अपने फ्यूचर के बारे में कुछ सोचना होगा तुम ही घर का सारा खर्चा चलाते हो शहर में एक नया मकान क्यों नहीं ले लेते मुझे भी सास-ससुर से छुटकारा मिल जाएगा और साथ में देवर से

मैंने दीवार के पीछे से अपने कदम वापस घर से बाहर कर लिए और बाहर पार्क के एक कोने पर बैठकर सोचने लगा भैया आखिर कब तक मेरा खर्चा देंगे पिता तो कमाते नहीं है और मैं भी नहीं कमाता



दिन पर दिन किताबों की फीस महंगी होती जा रही है

मैंने कॉलेज छोड़ने का फैसला ले लिया और शहर में ही एक नौकरी करने लगा यह बात जब बड़े भैया को पता चली तो उन्होंने मुझे बहुत डांटा और कहा कि तुमने मुझसे बिना पूछे स्कूल क्यों छोड़ा

उस समय मेरे पास कोई जवाब नहीं था

मैं शांत मुद्रा में चुपचाप खामोश खड़ा रहा

बड़े भैया ने दूर एक रिश्ता शहर का ही मेरे लिए देखा और मेरी शादी की बात चलाई

धूमधाम से मेरी शादी हो चुकी थी घर में एक बहू और आ चुकी थी

अम्मा हमेशा खुशी से हमें देखती और कहती चलो ठीक है मेरे दोनों बेटों की शादी हो गई दोनों बहुएं घर में है और बेटी की भी शादी हो चुकी है और तुम्हारे पिताजी भी घर लौट आए हैं अब हमारे दिन अच्छे कटेंगे

लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था

रसोई घर में अक्सर खाना बनाने के लिए झगड़ा होता बड़ी बहू कहती मैं नहीं बनाऊंगी छोटी बहू कहती मैं नहीं बनाऊंगी इसी बात पर हमें अम्मा ने घर के अंदर ही बंटवारा कर दिया अब मेरा चूल्हा अलग जलता था और बड़े भाई का अलग

मैंने नया नया कॉलेज छोड़ा था नौकरी में अभी लगे हुए 20 दिन ही हुए थे तन्खाह का इंतजाम नहीं हो पाया था

तभी एक दिन रास्ते पर रोक कर बड़े भैया मुझे मिले और मुझे 2000 रुपया देते हुए बोले ले रख ले कुछ राशन ले लेना

मैंने शहर में एक नया मकान खरीदा है किसी को बताना नहीं खास तौर पर अम्मा को भी ना पता चले यह बात

तुम कल ही अपना सामान शिफ्ट कर लो इतना कहकर बड़े भैया चले गए

अगली रात को घर का सारा सामान मेरा ट्रक में लाद दिया गया और मैं शहर के बने हुए दूसरे मकान में रहने लगा

समय और बीतता चला गया

कुछ सालों के बाद मुझे पता चला

अम्मा और पिताजी  की आंखों को बनवाने के लिए बड़े भैया ने मकान गिरवी रख दिया था

और अस्पतालों के चक्कर काटते काटते बड़े भैया की नौकरी भी छूट चुकी थी

मुझे यह तब पता चला जब मैं अपने सफेद रंग की कार से नौकरी करने के लिए सुबह 10:00 बजे घर से बाहर निकला

तो बस स्टैंड के नीचे कुछ लोगों को भीगते हुए देखा चेहरे जाने पहचाने से लगे

नजदीक जाकर देखा तो होश उड़ गए अम्मा और पिताजी भैया और भाभी और बगल में दो छोटी सी लड़कियां उम्र 7 और 9 वर्ष रही होगी खड़ी थी

मैंने तुरंत बड़े भैया को गले लगा लिया और अम्मा पिताजी के पैर छुए और तुरंत अपनी कार में सबको बिठाकर वापस तुरंत घर लौट आया

कार में बैठे-बैठे ढेरों बाते हुई यह सब कैसे हुआ अम्मा

गोकुलपुरी का मकान का क्या हुआ

पिताजी बताने लगे बेटा वह मकान तेरे बड़े भाई ने हमारी आंखों को ठीक करने में लगा दिया

ब्याज में पैसे उठाए थे लेकिन ब्याज का पैसा लोटा ना सके

और वह मालिक का सत्यानाश हो उसने तुम्हारे बड़े भाई को नौकरी से निकाल दिया

मैंने बड़े इत्मीनान से कहा आप चिंता ना करें मेरा घर तुम्हारा ही तो है मैं तुम्हारा छोटा सा बेटा नेकराम हूं

हर्ष विहार दिल्ली में हम खुशी-खुशी रहने लगे जिस घर में पहले माले पर  नेकराम और उसकी बीवी और उसके तीन बच्चे दूसरे माले पर बड़े भैया और उनकी बीवी और उनकी दो बेटियां

तीसरे माले पर अम्मा और बाबूजी रहने लगे

दिन खुशी-खुशी बीतने लगे

7 वर्ष बीत चुके थे

एक दिन अचानक भाभी को पता चला कि यह मकान तो बड़े भैया के नाम है

तब से उनकी रातों की नींद उड़ गई

धीरे-धीरे यह खबर अम्मा और पिताजी और गली के पड़ोसियों तक भी पहुंच चुकी थी

भाभी के परिवार वाले अक्सर आते और कहते कि नेकराम को तो मकान का किराया देना चाहिए वरना मकान खाली कर दे



बड़े भैया ने कई बार इसका विरोध किया लेकिन कब तक आखिर उन्हें अपनी बीवी के सामने घुटने टेकने पड़े

क्योंकि अब उनकी लड़कियां भी सयानी होती जा रही थी उन्हें भी कमरों की जरूरत थी

एक रात मैंने अपनी पत्नी से कहा सुनो वैसे भी यह मकान बड़े भैया के नाम है हमें यह घर खाली कर देना चाहिए तुम्हारी इसमें क्या राय है

पत्नी ने कहा ठीक है मैं अपने मायके फोन लगाकर मम्मी जी से पूछ कर बताती हूं

कुछ दिनों के बाद पत्नी ने मुझे बताया

हमें यह घर खाली कर देना चाहिए शहर में हम भी किराए के मकान में रहेंगे और नौकरी करके अपने लिए कुछ एक नया मकान बनाएंगे और मैं तुम्हारा हाथ बटाऊंगी

उसी रात हमने अपने घर के जरूरत के सारे  कपड़े  एक पोटली में बांध लिए और अपने बीवी बच्चों को लिए मैं बड़े भैया के घर से निकलकर शहर के एक छोटे से किराए के मकान में रहने लगा

कुछ महीने ही बीते होंगे कि रास्ते में मुझे बड़े भैया फिर मिले उन्होंने एक कागज का टुकड़ा मेरे हाथ में थमाते हुए कहा

नेकराम मैंने कुछ पैसे बैंक में इकट्ठे किए थे

शहर में बड़ा तो नहीं लेकिन एक छोटा सा मकान खरीदा है

यह रहे मकान के कागज

मैंने कागज  लेने से इंकार कर दिया तो बड़े भैया नाराज होते हुए बोले अब तू मुझसे बड़ा हो गया है

इस बार मैंने यह मकान तेरे नाम किया है तुझे अब कोई मकान से नहीं निकाल सकता

मैंने बड़े भैया को अलविदा कहा और सीधा अपने घर पहुंचा और अपनी पत्नी से कहा सुनो मैंने शहर में एक नया मकान खरीदा है कल ही उद्घाटन है पंडित जी को बुला लेना

और सभी रिश्तेदारों को भी

अगला दिन भी आया सभी रिश्तेदार नए मकान के उद्घाटन के लिए पहुंचे

गली में बहुत बड़ा टेंट लगा हुआ था आज पड़ोसियों को भी निमंत्रण दिया हुआ था

गरमा गरम पूरी गाजर का हलवा आलू की सब्जी और पनीर की सब्जी साथ में रहता और सलाद की पूरी व्यवस्था थी

रिश्तेदारों ने जब घर में आकर सामने दीवार पर देखा तो पिताजी की तस्वीर के साथ बड़े भाई साहब की तस्वीर को भी साथ में लटका देखा तो बड़े आश्चर्य चकित हुए

कुछ रिश्तेदार तो कहने लगे लो यह कैसा कलयुग आया है जिस बड़े भाई भाभी ने नेकराम और उसकी बीवी उसके नन्हे नन्हे बच्चों को घर से बाहर निकाला उसी नेकराम ने अपने बड़े भाई को पिता का दर्जा दिया है

मैं बता कर भी बता ना सका बता ना सका कि बड़े भैया तो ईश्वर है मेरे लिए भगवान है

समाप्त

स्वरचित रचना

नेकराम

दिल्ली

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