Moral stories in hindi : चौदह साल की उम्र में सुमी ब्याह कर ससुराल आई तो सास ननदे और जेठानी ने आरती की ।बहुत अच्छा लगा था उसे ।यहां तो सबकुछ अलग ही है ।रिश्ते के चचेरे मौसेरे देवर शादी के बाद अपने घर लौटे तो उनकी माँ ने पूछा था ” कैसी लगी दुलहन?” तो उनका उत्तर था ” एक दम ” बालिका वधु ” ।
फिर घर में हँसी के ठहाके गूँजने लगे ।कुछ लोगों की कानाफूसी भी हुई ” भला बताओ तो, ऐसी भी क्या जरूरत थी शादी की? इतनी कम उम्र में ” सबकुछ सुनती रही थी सुमी ।मायके में वह अकेली नहीं थी चार चार बुआ थी उसकी ।पिता एक साधारण स्कूल मास्टर थे।दादा दादी गुजर गए थे तो सभी का भार पिता जी ही पर था ।
उनहोंने ठीक ही सोचा होगा ।एक एक कर सभी को निभाना जरूरी था।सुमी अपने ससुराल में डरी सहमी-सहमी सी रहती ।क्या पता, कौन सी बात इन लोगों को बुरा लग जाए ।मायके में तो हमेशा यही सुनती आई थी ” ससुराल जाएगी तो पता चलेगा ” यहाँ कर ले जितना मनमानी, सास के आगे यह सब नहीं चलेगा ” वह अक्सर सोचती, क्या सास बहुत बुरी होती हैं?
शादी के तामझाम खत्म हो गये।मेहमान विदा हो गये ।सुमी की पहली रसोई थी।कुछ खास रिश्ते दारो और मित्र के परिवार को खाने पर बुलाया गया था ।सुमी की हालत खराब हो गई थी डर से ।कैसे करेगी वह? इतने लोगों का खाना कैसे बनायेगी? कभी मायके में इतना किया नहीं था ।
वह सोच में डूबी थी कि अम्मा जी ने पुकारा ” सुमी,तुम अब जल्दी से तैयार हो जाओ, कुछ लोगों को खाने पर बुलाया है ” ” पर ,माँ, मैंने कभी इतना कुछ किया नहीं है ” ” पगली, तुम इतना क्यो घबरा रही हो? सबकुछ बन गया है ।चिंता मत करो बेटा ।मै भी तो तुम्हारी माँ हूँ ।कैसे छोड़ देती? सुमी ने जैसा सुना और सोचा था, वैसा कुछ भी नहीं था।अम्मा जी बहुत नेक और सहृदय महिला थी।धीरे-धीरे ससुराल नाम का डर सुमी के मन से जाने लगा था ।
सुमी को सुबह उठने में देर हो जाती तो अम्मा जी चाय बना देती ।बड़ी जेठानी जी नाश्ते की तैयारी कर लेती।ससुर जी बाहर के काम निपटा देते ।सब कुछ बहुत अच्छा था उसे लगता क्यों लोग ससुराल के नाम से डर जाते हैं ।अम्मा जी की थोड़ी उम्र हो गयी थी तो वह घर सम्भाल लेती।
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और बच्चे को डाक्टर को दिखाना है कहकर दोनों बहू को सिनेमा भेज देती।ससुर जी को सिनेमा से चिढ़ थी इसलिए अम्मा जी ने यह तरकीब निकाली ।सुमी को कभी लगा ही नहीं कि यहाँ पराये लोग हैं ।बड़ी बहू को दो बच्चे भी थे।तो उनके साथ खेलते कूदते सुमी का मन लग रहा था ।एक दिन जीजी ने पूछा भी था ” सुमी, तुम्हारा मन तो लगता है न यहाँ?”” हाँ जीजी,मन क्यो नहीं लगेगा? ” फिर एक दिन दूर की रिश्ते की बुआ आई।
सुमी ने भरसक उनको शिकायत का मौका नहीं दिया था सुबह नाश्ते के साथ गरम दूध देना, उनके पूजा पाठ का इन्तजाम करना, उनके सिर पर तेल मालिश कर देती ।रात को सोने से पहले पैर दबा देती ।फिर एक दिन जब सभी लोग सोने चले गये थे।रात के शायद बारह बजे होंगे, उसे जोरों की प्यास लगी थी ।
वह उठ कर किचन में जा ही रही थी कि कानों में बुआ जी की आवाज़ सुनाई दी ” देखो भाभी, बहू को इतना सिर चढ़ाना ठीक नहीं है, कल को तुम्हारे सिर पर नाचने लगेगी तो पता चलेगा ।ऐसा भी क्या, बहू सोती रहे और सास चाय बना कर पिलायें ।” नहीं दीदी, मेरी दोनों बहू बहुत अच्छी है ।आखिर वह अपने परिवार को छोड़ कर आई है यहाँ, अगर हम उसे अपनापन और प्यार नहीं देंगे तो वह कहाँ जायेगी ।यह अम्मा जी की आवाज़ थी।
क्या हम अपनी बेटी को मदद नहीं करते? यह भी तो अब मेरी बेटी है ।बुआ जी का मुँह बन गया था ।दूसरे दिन उनहोंने अपना बोरिया-बिस्तर समेटना शुरू कर दिया ।अम्मा जी ने बहुत मान मनौवल करके बुआ जी को कुछ दिन और रोक लिया ।आठ दिन बुआ जी रही ।धीरे-धीरे उनका हृदय परिवर्तन होने लगा था ।
रोज अम्मा जी अपनी बहु के गुणगान करती ।जाने का दिन आ गया तो उनहोंने सुमी को बुलाया ” लो बहू तुम्हारे लिए बनारसी साड़ी लाई थी, इसे मेरा आशीर्वाद समझ कर पहन लेना।” फिर उनहोंने अपने हाथों से कंगन निकाल कर सुमी को पहना दिया और गले से लगा लिया, मेरी गलती थी कि मैं तुम्हारे लिए गलत कहती रही लेकिन भाभी ने मेरी आखों पर से पर्दा हटा दिया ।
मुझे माफ कर देना बेटा ।भाभी जैसी सास हो तो ससुराल क्यों खराब लगेगा? न सास बुरी होती है, न बहू बुरी होती हैं ।सिर्फ हमारी सोच गलत होती है ।बेटी जहाँ अपने पूरे परिवार को छोड़ कर आती है तो दुखी होती है ।वहीं, सोचो,सास भी तो हर पल जिस बेटे पर अपना सबकुछ लुटा देती वही बेटा जब बहू की बात में आकर माँ की अवहेलना कर देता है तो माँ को भी तो बुरा लगता है ।
जिस घर में अपने अधिकार से रहती है उसी घर में सास को हाशिये पर डाल देते हैं तो कैसा लगेगा? ससुराल कभी गलत नहीं होता बेटा ।तुम जैसी बहू, और भाभी जैसी सास हो तो घर में हँसी खुशी का माहौल बन जाता है ।बुआ जी बेतहाशा रोयें जा रही थी।तभी जेठजी ने आकर कहा ” चलो बुआ, बहुत रोना धोना हो गया है ।रिक्शा दरवाजे पर आ गया है ” तो ऐसा था सुमी का ससुराल ।
उमा वर्मा ।नोयेडा ।स्वरचित, मौलिक और अप्रसारित ।
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