बहुत याद आती है सासू मां की – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

देख बेटा तान्या….. तू नौकरी करना चाहती है ना…. बेशक कर….!

पर याद रखना घर की व्यवस्था तो तुझे ही देखनी पड़ेगी…. स्पष्ट और सच बोलना शायद सही होगा …।

    मुझसे ना …ये घर के कामों और तुम्हारी मदद के विषय में ज्यादा उम्मीद मत रखना….. 

मैं उम्र के इस पड़ाव  ” ढलती सांझ ” में जी भर कर…. जी लेना चाहती हूं बेटा…. मैंने सारी जिंदगी बहुत संघर्ष किया है …नौकरी करना मेरा शौक नहीं , मजबूरी थी….!

      चूंकि मेरी सासू मां यानी तुम्हारी दादी जी बहुत समझदार थी…!

और मैं ये बात नि:संकोच कह सकती हूं ….

    जितनी मेरी सासू मां अच्छी थी उतनी मैं नहीं हूं ….मतलब सासू मां के मामले में मैं तुमसे ज्यादा किस्मत वाली हूं तान्या….. मेरी सासू मां  ने पूरी जिंदगी सिर्फ घर के संघर्षों ,व्यस्तताओं और चिताओं में ही बिता दिया…. मेरे लाख मना करने के बाद भी वो न जाने किस मिट्टी की बनी थी , मानती ही नहीं थी… शायद उनके इसी सहयोग की वजह से मैं नौकरी भी कर पाई थी…!

आज स्नेहा अपने अतीत के पन्नों को तान्या के सामने खोलने की कोशिश की…..

…. आओ आज तुम्हें मैं अपनी सासू मां के बारे में कुछ बातें बताऊं……

इस कहानी को भी पढ़ें: 

एक हाथ से ताली नहीं बजती – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

कहां से शुरू करूं समझ में नहीं आ रहा…

संगीता नाम था उनका…. 

चप्पल उतार जैसे ही उम्रदराज संगीता जी पूजा स्थान में पहुंची… सारी महिलाएं हंसी उड़ाने वाले अंदाज में पूछने लगी ….अभी आ रही है पूजा में चाची जी ….?  कथा तो समाप्त हो गया…. सिर्फ आरती होना बचा है ….!

    संगीता जी ने बिना कुछ जवाब दिए भगवान के आगे मस्तक टेका… फिर होठों पर उंगली लगाकर पंडित जी की ओर इशारा कर चुप रहने का संकेत किया …..। दो मिनट चुप रहने के बाद फिर खुसर पुसर की आवाजों के बीच एक महिला ने पूछा ….इतनी देर क्यों लगा दिया आने में ….?  पूजा का समय तो 10:00 बजे का था संगीता जी ने सिर्फ मुस्कुरा कर चुप रहना ही उचित समझा….!

   आरती संपन्न हुई …..पर्स में से पैसे निकालकर आरती के थाली में रखते और मस्तक में आरती लगाते ही बगल में रहने वाली पूजा ने पूछा….इतनी देर से आई आप चाची जी….. ?

संगीता जी कुछ बोलती इससे पहले ही वहां बैठी दूसरी महिला मीना ने कहा ….अरे चाची जी को फुर्सत कहां है…..

” माला जपने की उम्र में चूल्हा चौका जो संभाली हैं ” क्या करेंगी बेचारी …बहु नौकरी पेशा वाली जो है… और सारी महिलाएं हंसने लगी…. संगीता जी ने जवाब देने की बजाय मुस्कुरा कर चुप रहना ही उचित समझा…. पर चुप रहने को यहां तो महिलाएं कमजोरी समझने लगी थी…!

उन्हीं महिलाओं में से किसी ने कहा….. अरे कमाऊ बहू मिली है भाई चाची जी को…… पैसे कमाने वाली बहू के सारे नखरे बर्दाश्त किए जाते हैं…. न जाने ऐसी कितने तीखे बाण संगीता जी के कानों को भेदते चले गए थे…।

    संगीता जी मन ही मन सोच रही थी… पैसा …?  बहु स्नेहा के तनख्वाह के बारे में तो मैं कुछ भी नहीं जानती… वो क्या कमाती है …क्या खर्च करती है…?  मेरा बेटा समीर अच्छा खासा कमाता है …प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत है ….और वो पहले से ही मेरी देखभाल करता आ रहा है…. घर के सारे खर्चे वही करता था और अब भी तो वही करता है…. मुझे तो मालूम भी नहीं की स्नेहा का घरेलू खर्च में योगदान है भी या नहीं ….!

      और मुझे मालूम करना भी नहीं है.. कुछ मामले में वो दोनों पति-पत्नी खुद समझे तो बेहतर होगा….फिर बेटा बहू के आपसी तालमेल में मेरा क्या काम… ये लोग भी ना कुछ भी कहते हैं….

हां कभी-कभी मेरे व्यक्तिगत जरूरत के कुछ सामान स्नेहा जरूर लाकर दे देती है ..पर मेरे मन में तो पैसों को लेकर कभी कोई प्रश्न नहीं आए ….ना ही मैंने कुछ पूछना उचित समझा और सारे लोग प्रश्न भरी निगाहों से मुझे ही घूर रहे हैं …..

इस कहानी को भी पढ़ें: 

“मैं अपने अहंकार में रिश्तों के महत्त्व को भूल गई थी” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral Stories in Hindi

माला जपने की उम्र में खाना बनाना जैसे ना जाने क्या-क्या व्यंग  बाण से मुझे ताने मार रहे हैं…!

   खैर… स्नेहा मेरी बेटी जैसी है …मुझे जब काम करने व स्नेहा का सहयोग करने में कोई आपत्ति नहीं है तो लोग कुछ भी बोले मुझे फर्क नहीं पड़ना चाहिए….. मेरा घर , मेरा परिवार ….हम सब तो खुश है ना बस मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात है…!

एक लंबी सांस लेते हुए स्नेहा ने अपनी बातों की तारतम्यता बनाए रखते हुए आगे कहा….

जानती है बेटा तान्या…ऐसी आपबीती कठोर बातें संगीता जी  ने अपने मुख से मुझे कभी नहीं बताया शायद उन्हें लगता यह सब बातें मैं स्नेहा को बताऊंगी तो कहीं स्नेहा ये ना सोचे की मम्मी जी अपने मन की बातें तो मुझे नहीं कह रही ना ….छोड़ो जो जहां सुनो वही बात खत्म करो… पर कभी मोहल्ले वालों  से, कभी परिचितों से मुझे सब कुछ पता चल ही जाता था…।

पर संगीता जी को बिना विचलित हुए अपने काम पर पूरा ध्यान देना यह चीज मेरे मन में उनके प्रति और सम्मान बढ़ा देती थी बेटा…!

अचानक से घर के सुख शांति में उस दिन ग्रहण लग गया था जब हृदयघात से अचानक संगीता जी की मौत हो गई थी…. सब कुछ थम सा गया था ….!

ऐसी थी मेरी सासू मां संगीता देवी….

स्नेहा की आंखों में सासू मां को याद कर आंसू आ गए थे…!

फिर दादी जी के नहीं रहने के बाद क्या हुआ मम्मी जी…. तान्या ने भी उत्सुकता से पूछा…

 अब क्या होगा क्या मुझे नौकरी छोड़नी पड़ेगी …. बच्चे का क्या…? अभी तो छोटा हैं….!

फिर एक दिन मैंने समीर से पूछा अब कैसे मैनेज होगा समीर….अपनी विवशता समीर के सामने रखी…!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

राजो – सुधा शर्मा

चिंता मत करो स्नेहा….नौकरी छोड़ दो… अभी बच्चे को और इस घर को तुम्हारी जरूरत है ….वैसे भी तुम्हारे पैसे का कुछ अता पता तो है नहीं ….ना जाने कहां खर्च करती हो …. दिमागी तनाव के चलते आपा खोते हुए आज समीर ने कह ही दिया …।

   समीर मुझे मायके में….. क्या मायके में पैसे देती हो ….अब समीर ने स्नेहा का हाथ पकड़ अपने हाथों में लेते हुए बड़े प्यार से बोला…..तो इसमें छुपाने या डरने जैसी क्या बात है स्नेहा ….?तुम्हें शादी से पहले ही साफ-साफ मुझे बोलना चाहिए कि मायके में मेरी जरूरत है ….मेरे पैसों की जरूरत है… यदि मुझे मंजूर होता तो मैं शादी करता…. वरना …तुम ये सब हमसे छिपाकर क्यों करती हो…?

    नहीं समीर ,उन्हें मेरी जरूरत या मेरे पैसों की जरूरत नहीं थी …. वो तो  मुझे ऐसा लगता था तुम यहां अपने घर में खर्च करते हो…. तो मैं भी अपने मायके में खर्च करूं…..मैं गलत हूं समीर ….आगे से ध्यान रखूंगी…।

  मुझे पता था स्नेहा… यहां तक की मम्मी को भी सब कुछ पता था… समीर ने कहा…. क्या..? मम्मी जी को पता था मैंने आश्चर्य समीर की ओर देखा….

     हां स्नेहा…..पर वो बहुत धैर्यवान और उत्कृष्ट विचारों वाली थी …उन्होंने कभी तुमसे कुछ पूछना उचित नहीं समझा…. बस निस्वार्थ भाव से तुम्हें सहयोग करती रहीं …! 

    पर मैं चाहता था …तुम्हारे मेरे बीच में ये आंख मिचौली क्यों …मुझे तो सब पता होने का अधिकार होना ही चाहिए..! 

फिर मम्मी जी आपने नौकरी की या नहीं तान्या की उत्सुकता और बढ़ती जा रही थी…

नहीं बेटा…. समीर और मैंने मिलकर निर्णय लिया …..मैं घर संभालूंगी..! जब तक बेटा तेजस बड़ा नहीं हो जाता…!

तब समझ में आया… ये घर का काम.. बच्चों की देखरेख बहुत मुश्किल लगने लगा था …पर धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होता गया…।

 काश …! दादी जी को मैं भी देख पाती कहकर तान्या स्नेहा के कंधे पर हाथ रखती हुई बोली… !

मम्मी जी मुझे लगता है आप भी बहुत समझदार हैं…. आपने स्पष्ट और साफ-साफ मुझे बता दिया की उम्र की ढलती सांझ को मैं जी भर कर जीना चाहती हूं……मम्मी जी मैं आपका पूरा साथ दूंगी आपकी उम्र के इस पड़ाव को खुशनुमा बनाने में …. थम्सअप दिखाते हुए तान्या कमरे में चली गई…।

    मम्मी जी आज 22 तारीख है… आपकी किटी पार्टी है ना….हां बेटा …पर मैं नहीं जाऊंगी… क्यों मम्मी जी …?

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बिसात – बीना शर्मा : Moral Stories in Hindi

वो ….मुझे…. कुछ संकोच भरे लहजे में स्नेहा कुछ बताना चाहती थी ….पर बात बदल कर उसने सिर्फ इतना ही कहा….. मुझे सर्दी खांसी है बस इसीलिए…!

 शायद असली समस्या बताने में स्नेहा को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी… वो बताना तो चाह रही थी तेज खांसने या छींकने से….. पेशाब…..नहीं नहीं मुझे ये नहीं बताना चाहिए…. ठीक किया मैंने तान्या को कुछ नहीं बताया…!

मम्मी जी आप तैयार रहिएगा…मैं शाम को ऑफिस से लौटते समय दवाई लेती आऊंगी ….कहकर तान्या ऑफिस के लिए निकल गई…!

शाम को निर्धारित समय से कुछ पहले ही तान्या बड़े से थैले में कुछ सामान लेकर आई और स्नेहा को पकड़ाते हुए बोली….मम्मी जी इसमें डायपर है …पार्टी में जाने से पहले पहन लीजिएगा….! 

क्या …डायपर …? 

पलके झुका कर हां मैं सिर हिलाते हुए तान्या ने समझाया…

कम ऑन मम्मी जी ….कहते हैं ना बुढ़ापा बचपन का रूप होता है अब आप इसे पहन कर बेफिक्र होकर पार्टी में जाइए और इंजॉय कीजिए…!

उम्र के साथ-साथ कुछ समस्याएं हो ही जाती है मम्मी जी…।

और हां उस साड़ी के साथ ये मेरा मोती वाला सेट भी पहन लीजिएगा बहुत प्यारी लगेगी…।

तू बहुत समझदार है मेरी बच्ची…. स्नेहा के मुख से अनायास ही निकल पड़ा…. अरे नहीं मम्मी जी… किस्मत वाली सिर्फ आप ही नहीं थी कि आपकी सासूमां बहुत समझदार थी…. किस्मत वाली तो मैं भी हूं मेरी सासूमां भी बहुत समझदार हैं…।

   और किस्मत वाली तो मैं भी हूं कि मेरी बहू भी बहुत समझदार है और सास बहू दोनों हंस पड़े…!

(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना)

साप्ताहिक प्रतियोगिता # ढलती सांझ 

संध्या त्रिपाठी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!