Moral stories in hindi: का हो ज़िज्जी. … समय रहते बहुरिया की इज्जत की नहीं … कोई कद्र ना की तुमने… अब क्यूँ आठ आठ आंसू बहा रही हो….
राखी ,, मेरी बहुरिया बहुत अच्छी थी … कितनी सेवा करती थी इनकी…. इनका पेशाब , मल सब बिस्तर पर साफ करती… आज तक नाक मुंह ना सिकोड़ा उसने…. पूरे घर का काम एक पैर पर नाचकर करती…. पर मेरी बुद्धि पर पत्थर पड़ गए जो बस उसे पूरा दिन कुछ ना कुछ सुनाती रहती…. पर बिटवा को तो सोचना चाहिए था कि अब ये भी चले गए मुझे छोड़कर …. कैसे इस बुढ़ापे में अपनी रोटी पानी बनाऊंगी …. आखिर उसे जन्म दिया हैं वो तो मेरा दर्द समझता. .. बहुरिया तो पराये घर से आयी हैं….
ज़िज्जी ये पराया पराया बोलकर ही तूने हमेशा के लिए बहुरिया को दूर कर दिया…. तेरा बिटवा अब सिर्फ तेरा नहीं किसी का पति भी हैं… ज़िसे वो दूसरे घर से ब्याह के लाया हैं… वैसे भी बहुत समझदार हैं…. जीजाजी के रहते उनकी हालत देख उसने ऐसा कदम ना उठाया …. वो बोलता नहीं था पर तुम जैसा बर्ताव बहुरिया के साथ करती थी वो सब जानता था .. उसकी भी आँखें हैं…. कैसे तुम जानबुझकर बहुरिया के सामने नाटक करती कि मेरे यहां दर्द हैं, वहां दर्द हैं….
बेचारा रवि इतने महीनों बाद फौज से छुट्टी लेकर आता कि पत्नी के साथ समय बिताऊँगा पर तुम्हे ये सब एक आँख भी ना सुहाता … 12 बजे तक बेचारी बहुरिया तुम्हारे घोटूँ की मालिश करती रहती…. एक भी दिन तुमने कभी उसे समय दिया कि रवि आया हैं लाओ बहुरिया को उसके साथ कहीं घूमने भेज दूँ य़ा बाजार तक टिक्की बताशा ही खिला लायें …
बेचारा ले भी आता तो उसमें भी तुम दस बातें बोलती…. उसके मायके वालों को भी बहुत सुनाती तुम कि ऐसा कपड़ा लायें, ऐसा सामान लायें, हमारे यहां तो नौकर भी ना पहनें…. क्या बेचारी के कोमल मन को इन बातों से ठेस ना पहुँचती….. पर तुम्हारे शरीर में उस समय ताकत थी इसलिये कदर न करी उसकी…. जब हाथ पैर जवाब दे गए तुम्हारे अब आठ आठ आंसू बहा रही हो….
ले गया रवि उसे अपने साथ खुले आसमान में उड़ाने .. जो बेचारी भरी सर्दी में भी बाल सुखाने ऊपर ना जा सकती आज दुनिया घूम रही हैं… तुम्हे तो खुश होना चाहिये …. कि बहू बेटा खुश हैं….
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सही कह रही हैं राखी …. पर मुझे तो ले जाता संग…. बिटवा ने एक बार भी ना कही साथ चलने की….
उसे क्या वहां भी अपनी ज़िन्दगी नर्क बनानी थी जो तुम्हे संग ले जाता…. वहां भी तुम कौन सा कम पड़ती….. लोग कहते हैं आज के ज़माने में बहू बेटा माँ बाप को साथ नहीं रखते… हर बार गलती बहू बेटा की नहीं होती गलतियां माँ बाप से भी हो सकती हैं ज़िज्जी .. दोनों पल्ले देखकर बोलना चाहिए… अब जैसा भगवान रहे हैं तुम्हे ज़िज्जी. .. वैसे ही रहो और हरि भजन करो… मैं चलती हूँ नहीं तो बस निकल ज़ायेगी.. कोई दिक्कत हो तो फ़ोन लगा देना…. आ जाऊंगी….
जैसे ही राखी जी द्वार पर पहुँची…. रवि और बहुरिया बच्चों के साथ अंदर आ रहे थे …. दोनों ने राखी जी और माँ के पैर छुये….
सास ने बहू को कसके गले लगा लिया…. उसे सीने से लगा घंटो रोती रही…. उसके दोनों हाथ चूमे …
अब छोड़ भी दो ज़िज्जी बहुरिया को…. कब तक दुलार करती रहोगी….
माँ, तुम्हारी तबियत ठीक नहीं हैं…. तुमने बताया नहीं… फ़ोन तुम्हारा लगता नहीं…. हम कितना परेशान हो गए थे … इमरजेंसी में छुट्टी लेकर आया हूँ… चलो सामान रख दो सारा माँ का राखी … माँ तुम हमारे साथ चल रही हो….
इतना सुन माँ के आँखों से झरझर आंसू बह निकले… उन्होने रवि को गले से लगा लिया…
राखी जी भी अपनी ज़िज्जी की तरफ देख मुस्कुरा दी.. और निश्चिंत हो अपने घर की ओर रवाना हो गयी….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा