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बहू वक्त रहते घर का बजट बना लो वरना फिर न कहना कि विपक्ष ने सचेत नहीं किया.! – निधि शर्मा 

“सुनैना महीने के आखिरी वक्त पर भी तुम इतनी खरीदारी कैसे कर सकती हो..! देश के बजट पर इतनी चर्चाएं हो रही है और तुम एक घर का बजट भी वक्त पर तैयार नहीं कर पाती हो। मुझे समझ में नहीं आता इस महीने के 6 तारीख को तुम मेरे साथ माॅल जाकर पूरा राशन लेकर आई थी ये कहते हुए कि फिर मॉल आने की जरूरत नहीं पड़ेगी। फिर आज किस चीज में पैसे खर्च करके आई हो, इस तरह से तो समझो तुम्हारे नए घर का सपना हो गया वक्त पर पूरा या कुछ बाकी है।” सुमित फोन पर अपनी पत्नी सुनैना से कहता है।

सुनैना बोली “अरे नहीं ज्यादा सामान नहीं था। बस मेरी कुछ सहेलियों ने कहा कि चलो घूम कर आते हैं तो मैं भी चली गई और थोड़ा बहुत सामान ले लिया। आप तो जानते हैं कि एक सामान के चक्कर में कई बार बहुत सारे सामान आ जाते हैं, मैं जानती थी जैसे ही आपके फोन में पैसे कटने का नोटिफिकेशन आएगा आप नाराज हो जाओगे।” सुनैना की ये बात सुनकर सुमित ने गुस्से में फोन रख दिया।

सुनैना सर पकड़ कर बैठ गई और बोली  “जाने सरकार में बैठै लोग देश का बजट कैसे सही वक्त तैयार करते हैं  मेरा तो हर महीने का बजट बिगड़ जाता है ..! ऐसा क्या करूं कि हर महीने का बजट भी न बिगड़े और मन की भी पूरी हो जाए..।” इसी सोच में सुनैना बैठी थी तभी उधर से उसकी सास ललिता जी ने आवाज लगाई।

“बहु क्या हिसाब किताब लगा रही हो बस खयालों में बजट कम करने से कुछ नहीं होगा। अपने हाथों की खुजली को कम करो और थोड़ा अपना भी दिमाग लगाओ, वरना ऐसा न हो कि मेरा बेटा हर वक्त जोड़ता रहे और तुम उसे घटाती रहो।”

सुनैना बोली “मम्मी जी एक तो आपके बेटे ने मुझे इतना कुछ सुनाया और आप हैं कि मेरे साथ खड़े होने की जगह मुझे कड़वी बातें सुना नहीं है..! अगर आपको इतना अनुभव है तो आप ही कोई तरीका सिखाइए जिससे कि घर का बजट ना बिगड़े और हम सबकी इच्छाएं पूरी होती जाए, हैं आपके पास ऐसा कोई सुझाव..?”



ललिता जी बोलीं “सास की बातें हर बहू को कड़वी लगती है इसमें नया क्या है। अगर तुम ध्यान दो तो किसी महीने तुम्हारा बजट इधर से उधर नहीं होगा परंतु उसके लिए तुम्हें मेरी कुछ कड़वी बातें सुननी पड़ेगी अगर तुम तैयार हो तो मैं अपने अनुभव से तुम्हें कुछ राय दे सकती हूं।”

  सुनैना सोची सास की कुछ बातें तो कड़वी होती है पर उन्हें जीवन का अनुभव भी बहुत होता है इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उसने उनकी बातों को अनसुना करते हुए कहा “मम्मी जी एक बात बताऊं बुरा मत मानिएगा क्या ज्यादा अनुभवों की वजह से विचार में कड़वाहट आ जाती है..?”

 ललिता जी बोलीं “बहु हर लड़की की मां जब उसे समझाती है तो वो बात उसे इतनी बुरी नहीं लगती जितनी सास की कही हुई बातें लगती है। घरेलू बातें और बचत करने का तरीका जब सास समझाए तो उस वक्त बहू को लगता है कि सास उस पर रोक-टोक लगा रही है, फिर भी अगर तुम पैसे बर्बाद करोगी तो नुकसान तो मेरे ही घर का होगा। चलो ठीक है आज मैं तुम्हें अपने अनुभवों से बताती हूं कि महीने का बजट कैसे कम किया जा सकता है है।”

सुनैना ध्यान से उनकी बातें सुनने लगी तो ललीता जी बोलीं “पहले तो घर के हर खर्च के बारे में तुम्हें लिखना होगा। जैसे मकान का किराया, बिजली का बिल,गैस, स्कूल फीस और राशन एक जगह पर लिखकर रखना होगा।”

 सुनैना बोली मम्मी जी इससे क्या ही बचत होगा..?” वो बोलीं “बहुरानी इससे ये पता चलेगा कि अगले महीने किस खर्चे पर हम कंट्रोल कर सकते हैं जैसे स्कूल की फीस गैस सिलेंडर पर महीने खर्च नहीं होता।”

सुनैना बोली “मम्मी जी ये सब कर के कितना बचा लेंगे..!” ललिता जी मुस्कुराकर बोलीं “बहू बचपन में तुमने एक कहानी पढ़ी होगी कि बूंद बूंद से घड़ा भरता है, बस वही करना है। जैसे खाना कुकर में या ढककर हमेशा मध्यम आंच पर बनाओ तो गैस कम खर्च होगा, और जितनी सामग्री हो उसी अनुपात में बर्तन और पानी का इस्तेमाल किया करो तो गैस कम लगेगा। 

    “लहसुन अदरक का पेस्ट एक बार में ही मिक्सी में पीस कर रख दो, दिन के समय बल्ब जलाने की क्या जरूरत है..! प्राकृतिक रोशनी ही पर्याप्त होती है। और हां जब कपड़े सूख जाए तो छोटे मोटे कपड़ों को उसी वक्त अगर तुम तह लगा कर रख दो तो उसमें आयरन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, इन्हीं छोटी-छोटी चीजों से तुम बिजली का खर्चा बचा सकती हो।”



सुनैना की जागरूकता बढ़ती जा रही थी वो बोली “मम्मी जी बिजली और गैस का तो हो गया राशन का क्या करूं..?” ललिता जी बोलीं “बहू सबसे पहले जितना खाना हो उतना ही बनाया करो। इससे हम ताजा खाना खाएंगे और चीजें बर्बाद भी नहीं होगी और जब तुम अगले महीने का राशन की लिस्ट बनाओ तो पहले देख लो कि कौन-कौन सा सामान तुम्हारे पास बचा हुआ है तो अगली बार वो सामान थोड़ा कम मंगाओ।”

सुनैना बोली “अब मैं सब समझ गई इस बार ऐसा ही करके देखती हूं।” ललिता जी बोलीं “और हां बहू ये जो कहीं जाना होता है और तुम झट से ओला बुक कर लेती हो, उसकी जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल किया करो और जब भी मॉल जाओ तो लिस्ट के हिसाब से ही सामान लिया करो वरना इतनी मेहनत करने का कोई फायदा नहीं होगा।” इतना कहकर ललिता जी चली गईं।

    शाम मे जैसे ही सुमित दफ्तर से लौटकर आया सुनैना उसे चाय देते हुए बोली “देखिए मैं आपकी नाराजगी समझती हूं आज पहली बार विपक्ष में जाकर और कड़वा घूंट पीकर रसोई के बजट के बारे में सुनी और सोची हूं। अगले महीने से आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी तो इस महीने के लिए माफी की याचिका पेश कर रही हूं।” 

सुनैना की बातें सुनकर ललिता जी मुस्कुराने लगी और बोली “बेटा मेरी भी सहमति है। इसे 2 महीने का वक्त दे दो अगर ये अगला बजट समय पर पेश करती है तो हम मिलजुलकर सरकार बनाएंगे, अन्यथा जो तुम कहोगे इसे मानना होगा।”

दोनों की बातें सुनकर सुमित ने कहा “आप दोनों की बातें सुनकर मेरा तो सर घूमने लगा है। मैं कंजूसी करने नहीं कह रहा बस ये कह रहा हूं कि कुछ फालतू के खर्चों को हमें रोकना होगा। क्योंकि पिछले दो-तीन साल से हर चीज महंगी हो गई है ये मैं भी जानता हूं, बस बेफिजूल की खर्ची अगर हुई तो त्योहारों में कटौती करनी पड़ जाएगी याद रखना।” और हंसते हुए सुमित कमरे में चला गया।

सुनैना खुशी से उछल पड़ी और ललिता जी के गले लग गई और बोली “मम्मी जी आपके अनुभवों ने तो कमाल कर दिया वरना ये इतनी जल्दी मानने वाले नहीं थे..!” ललिता जी सुनैना को खुद से अलग करते हुए बोलीं “बहू भूलो मत कि मैं तुम्हारी सास हूं।” सुनैना बोली “मम्मी जी एक पल नहीं लगता आपको मेरी खुशी पर पानी फेरते हुए! आप तो हमेशा मेरे विपक्ष में ही रहेंगी पर क्या करूं घर मैं शांति चाहिए तो ये भी चलेगा।” इतना कहकर सुनैना हंसकर वहां से चली गई और ललिता जी मुस्कुराने लगी।

    सखियों हमारे बुजुर्गों के पास उम्र और तजुर्बे का बहुत अनुभव होता है। कई बार अगर उनकी कुछ बातों को सुनकर भी हमें कुछ सुझाव मिल सकता है तो लेने में कोई बुराई नहीं है, आखिर हमारा घर आगे चलकर हमें ही संभालना है तो क्यों न मिलजुलकर सरकार चलाएं आप क्या कहती हैं..?

आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें। कहानी को मनोरंजन एवं सीख समझकर पढ़े कृपया अन्यथा ना लें बहुत-बहुत आभार

#वक्त 

निधि शर्मा 

 

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