बहु संस्कारी ही क्यों चाहिए? – मुकेश पटेल

“अरे क्या बताऊं तुम्हें बेटा हमारी तो जिंदगी जैसे-तैसे चल रही है| बहुओं के ऊपर बोझ बनकर रह गए हैं |बहुए भी जब मर्जी आती है खाना देकर चली जाती है वरना हमारे कमरे में कोई झांकने वाला भी नहीं|” सुषमा जी अपनी बेटी रिंकी को यह सारी बातें बता रही थी रिंकी भी  मिर्च मसाला लगाकर कहीं गई मां की बातों को बड़े चटकारे लेकर सुन रही थी|

“रिंकी हां माँ मैं तुम्हारी तकलीफ समझ सकती हूं, सास की सेवा करना सब संस्कारों की बात होती है| अब तुम्हारी तरह हर कोई अपनी बेटी को संस्कार तो सिखाता नहीं है| इतना पढ़ा-लखा होने के बावजूद हमने ससुराल में सबका ध्यान रखने के लीए नौकरी करना शुरू नहीं किया, मगर तुम्हारी बहू है की कॉलेज भी पूरी तरह से पास नहीं है मगर लोगों को दिखाने के लिए पार्लर खोले बैठी है| ताकि पार्लर में बैठे-बैठे टाइम पास हो जाए और घर के काम करने की फुर्सत”|

“हां वह तो है हमने तो तुम्हें बचपन से ही घुटी में घोलकर संस्कार दिए थे| ताकी तुम्हारी सास को हमारी तरह परेशान ना होना पडे| “कहते हुए सुषमा जी ने गहरी सांस ली|



सुषमा जी और उनकी बेटी से बातें कर रही थी; उन्हें एहसास ही नहीं हुआ कि उनकी बहू परीधि बाहर उन दोनों की सारी बातें सुन रही थी।

अपनी सास की बातें सुनकर उसे बहुत बुरा लगा।

वह मन ही मन सोचने लगी- मैंने मम्मी जी को ऐसे क्या परेशान कर दिया, जो वह अपनी बेटी से मेरी बुराई कर रही है| घर का पूरा काम करने के बाद पार्लर जाती हूं और वहां से आने के बाद घर का पूरा काम मैं ही करती हूं| कभी मम्मी जी सब्जी तक नहीं सुधार कर रखती| दोनों टाइम का खाना तक उनके कमरे में ले जाकर देती हूं ,उसके बावजूद भी वे परेशान हो रही है| रिंकी घर का कितना काम करती है यह तो मुझे पता है |कल ही पार्लर में उसकी पड़ोसन आई थी, तारीफों के काफी पुल बांधे थे उसने| कैसे उसकी सास सारा दिन घर पर काम करती है, ओर वो अड़ोस पडौस मे उनकी बुराई|

वह तो घर की ईएमआई ओर खर्चा एक जन की कमाई से पूरा नहीं पढ़ पाता इसलिए मजबूरी है जो दोनों जगह मैनेज करना पड़ता है वरना कौन इतनी भागदौड़ करता|

शाम को जब उसका पति मोहित घर पर आया तो परिधि को उदास देख कर बोला-” क्या बात है तुम्हारे चांद से चेहरे पर ग्रहण क्यों लगा हुआ है?”

परिधि- आपको तो कर देते मजाक सूझता है| आपको क्या पता मैं घर पर कितनी परेशान होती हूँ? ऊपर से मम्मी जी लगता है ,कि मैं पार्लर टाइम पास करने के लिए जाती हूं| मगर तुम्हें तो पता है की मेरा पार्लर जाना हमारे घर खर्च के लिए कितना जरूरी है| ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं हू, नहीं तो किसी ऑफिस में नौकरी कर लेती|



परीधि की बात सुनकर मोहित को भी बुरा लगा ,मगर वो उसे समझते हुए बोला- क्या तुम्हारी तकलीफ को मैं समझता नहीं है ,तुम भी ना मां की बातों का बुरा मानती हो| वी बेचारी दिन भर घर में अकेली रहती है| इसलिए परेशान हो जाती है, ओर रिन्की तो बचपन से ही ऐसी है; हर वक्त मां की हां में हां मिलाती है बचपन में इसी बात पर मेरी और उसकी भी लड़ाई होती थी |छोड़ो छोटी बच्ची है वो अभी जब की पूरी जिम्मेदारी आएगी तुम्हारी तकलीफ को समझ पायेगी|

मोहित की बातें सुनकर परिधि का गुस्सा थोड़ा तो शांत हुआ मगर फिर भी उसे कहीं ना कहीं बुरा लग रहा था,की घर और बाहर के काम के बीच भी वह माँ जी का इतना ध्यान रखती है, तो इतनी बातें सुनने को मिल रही है यदि ध्यान नहीं रखती तो क्या होता ?

परिधि थक हार कर पार्लर से लोटी तो देखा, घर पर रिंकी आई हुई थी |लोकल में ससुराल होने पर हर कभी रिंकी अपने मायके आ जाती थी|

बुझे से मन से उसने रिंकी का स्वागत किया और उसके लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करने किचन में चली गई|

चाय लेकर माँ जी के कमरे के दरवाजे पर पहुंची ही थी कि उसके कानों में रिंकी की आवाज आई- “क्या मां कितनी कमजोर लग रही हो! भाभी ठीक तरह से तुम्हारा ध्यान नहीं रखती क्या? और तुम्हारे घुटने का दर्द हो तो पहले से भी ज्यादा बढ़ा हुआ लग रहा है, अब भाभी को तो फुर्सत नहीं है कोई मालिश वाली रख लो आराम मिल जाएगा|”

बेटी कि सांत्वना पाकर सुषमा जी और दर्द से कराह उठी- क्या करूं बेटा मुआ बुढ़ापा ही ऐसा है| पैरों के दर्द के कारण चला फिरा नहीं जाता, इसलिए खाना भी हजम नहीं होता यह दर्द तो लगता है मेरी जान लेकर ही जाएगा|”



“अब मां उम्र है तो दर्द तकलीफ तो लगी रहेगी मगर बेटे बहू को ध्यान तो रखना चाहिए|” कहते हुए रिंकी अपनी मां के घुटनों की मालिश करने लगी|

“अरे तू रहने दे बेटियां मां के पैर नहीं छुती, तू मेरी सेवा करेगी तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगी|” कहते हुए सुषमा जी ने रिंकी का हाथ अपने घुटनों पर से हटा दिया|

परिधि जो बाहर खड़ी होकर उन दोनों की बातें सुन रही थी, कमरे के अंदर चाय नाश्ता लेकर पहुंच गई उसे देखते  से ही रिंकी तनक कर बोली- “क्या भाभी आप से मां की सेवा नहीं हो पाती| पार्लर में तो लोगों के चेहरे की फेशियल करने के लिए आपके हाथ बड़ी जल्दी चलते हैं| जरा मां के घुटनों की मालिश भी कर दिया करो !बेचारी को कितना दर्द है!”

छोटी ननंद के मुंह से यह सारी बातें सुनकर परिधि के सब्र का बांध टूट गया-” रिंकी तुम छोटी हो ज्यादा बड़ों की तरह बातें मत किया करो! मुझे समझाने की जरूरत नहीं है कि क्या सही है और क्या गलत |मुझे और मोहित को अच्छी तरह से पता है ,हमें माँ जी की सेवा किस तरह करनी है|रही घुटने के दर्द की बात तो माँ जी आप बताइए डॉक्टर ने आपको क्या कहा था?”

परिधि की बातें सुनकर सुषमा जी गर्दन नीचे कर कर चुप हो गई|



मगर परिधि ने बोलना चालू रखा- रिंकी तुम्हें क्या लगता है, हम लोग मम्मी जी का ध्यान नहीं रखते रोजाना सुबह-शाम गर्म तेल की मालिश मैं खुद करती हूं |मम्मी जी का खाना -पीना सब कुछ उन के कमरे में लाकर देती हूं ,मगर डॉक्टर ने कहा था कि यदि मम्मी जी चलना फिरना नहीं करेंगे तो उनके घुटनों का दर्द और बढ़ जाएगा| कितनी बार मम्मी जी को कहती हूं कि आप घर के काम मत करिए मगर धीरे-धीरे वॉक जरूर किया कीजिए, मगर मम्मी जी को लगता है यदि वह वॉक करने लगेंगे तो मैं उनसे घर के काम ना कर आने लग जाऊं| इसलिए कमरे से बाहर निकलना ही पसंद नहीं करते| जब तक मम्मी जी खुद अपने घुटने के दर्द को नजरअंदाज कर कर उसमें मूवमेंट नहीं लाएंगे उनके दर्द तकलीफ ऐसी ही बरकरार रहेगी| और हां तुम हमारे घर में इंटरफेयर करने के बजाय अपने घर को सवारने में ध्यान लगाओगी तो ज्यादा बेहतर होगा| सुना है आजकल तुम्हारी सांसों के भी पैरों में दर्द रहने लगा है|

परिधि की बातें सुनकर अब रिन्की के पास भी कोई जवाब नहीं था- भाभी आप सच कह रही हो, मैं ही आपको गलत समझ रही थी| आज आपने मेरी आंखें खोल दी |घर के बुजुर्गों का ध्यान रखना हमारा फर्ज है ,मगर बुजुर्गों को भी चाहिये की घर के कामकाज मे जितना बन पडे बेटे बहू की मदद करनी चाहिये|

लेखिका : विनिता मोहता

डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय betiyan.in के विचारों से मेल करते हों . किसी भी प्रकार की गलती के लिए लेखक ज़िम्मेवार हैं। बेटियाँ की उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं है ।

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