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बहूरानी ! जहां सम्मान नहीं वहां कभी जाना नहीं – कीर्ति मेहरोत्रा

” जिसका मुझे था इंतज़ार वो घड़ी आ गई आ गई ! माधुरी गाना गाते हुए जल्दी जल्दी काम निपटाती जा रही है खुशी उसके चेहरे से छलकी पड़ रही है । ” अरे इतनी बावली क्यों हुई जा रही हो किसका इंतज़ार कौन आ गया ,जरा हमें भी तो पता चले ” जगन्नाथ जी हंसते हुए अपनी पत्नी माधुरी जी से बोले आपको नहीं याद अपने वरूण की शादी का दिन बहुत करीब आ रहा है मैं तो पक्का चार दिन पहले से जाऊंगी ” ” आहा हा ! हर जगह जाने के लिए मुंह फैलाए बैठी रहती हो तुम्हें किसी ने बुलाया भी है । पता नहीं किस मिट्टी की बनी हो हर बार अपनी बेइज्जती भूल जाती हो फिर खुशी खुशी जाने को तैयार बैठी रहती हो । अभी पिछली बार अपने बड़े भतीजे की शादी में अपना अपमान भूल ग‌ई हो क्या ,भाभी ने अपने मायके वालों के सामने तुम्हारी कितनी बेइज्जती की थी ”

पति जगन्नाथ जी ने उलाहना दिया । ” हां मुझे सब याद है । किसी का फोन भी नहीं आया है बस कार्ड भेज दिया है लेकिन मेरे भतीजे की शादी है मेरा मन नहीं मान रहा मैं चली जाऊं “। ” देखो माधुरी ! हम फिर तुम्हें समझा रहे हैं जहां मान सम्मान से बुलाया ना जाए वहां कभी नहीं जाना चाहिए फिर चाहे वो मायका ही क्यों ना हो ? हमें जो कहना था वो कह दिया बाकी जैसी तुम्हारी मर्जी तुम जाना चाहो तो जाओ हम और बच्चे नहीं जाएंगे ” कहकर जगन्नाथ जी अपने कमरे में चले गए ।

” मां ! बाबूजी बिल्कुल सही बात तो कह रहे हैं । इतना भी क्या मायके भाई भतीजों का मोह कि अपनी बेइज्जती भी नजर नहीं आती आपको ,हर बार पहुंच जाती हो और बेइज्जती करवाकर वापस चली आती हो । आप भूल ग‌ई होगी लेकिन मुझे याद है आप घर आकर कितना फूट फूटकर रोई थी क्योंकि रंजन भ‌ईया की शादी में बड़े मामा मामी ने हमारे परिवार को पड़ोस के घर में ठहराया था जहां लाइट तक नहीं थी । हम लोगों को किसी ने चाय नाश्ते तक के लिए नहीं बुलाया था वो तो जिनके यहां ठहरे थे उन्होंने हम लोगों को चाय नाश्ता करवाया था । बाबूजी बेचारे कितने लज्जित हो ग‌ए थे लेकिन फिर भी आपकी खुशी के लिए खाने के समय बिन बुलाए पहुंच गए थे वहां जाकर देखा तो बाकी सारे रिश्तेदार खूब अच्छे अच्छे पकवान खा रहे थे हमलोगों को परोसा गया था कामवालों के लिए बनाया गया खाना क्योंकि हम लोग गरीब हैं तो क्या हमारा कोई मान सम्मान नहीं ,मामी का तो समझ में आता है कि वो दूसरे घर से आई हैं लेकिन मामा तो आपका अपना खून हैं ।आपके भाई के लिए तो उनके सब भाई बहन बराबर होने चाहिए लेकिन उन्होंने भी अपने पैसे वाली बहनों के परिवार को मान सम्मान दिया ” बड़ी बेटी निशा मां को मामा के घर हुआ अपमान याद दिलाकर चुप हो गई ।




” और मां ! आप लेन देन के समय भूल ग‌ई आपने अपने लिए साड़ी नहीं खरीदी थी लेकिन आप कितने प्यार से दुल्हन की मुंह दिखाई के लिए इतनी सुन्दर सी साड़ी लेकर ग‌ई थी । पहले तो मामी ने आपको हर काम में सबसे पीछे रखा जब आपने उनकी अनुपस्थिति में भाभी को साड़ी दी तो मामी को जैसे ही पता चला तो उन्होंने ने तुरंत न्योछावर करके अपनी नाउन को दे दी थी और बोली थी ” जब है नहीं तो ये सब फालतू चीजें लेकर क्यों आ जाती हैं हमारे यहां तो हम ये सब भिखारियों को भी नहीं देते । पता नहीं ये लोग मुंह उठाकर चले क्यों आते हैं कितनी बार इनसे मना किया है इन लोगों की मान मुनौवल करने की जरूरत नहीं है एक बार जरा सा कहा जाएगा और पूरा खानदान मुंह उठाए चला आएगा । ना ढंग के पहनने ओढ़ने के कपड़े होंगे ना ही लेन देन अच्छा करेंगे ।

दूसरे बेटे की शादी में सिर्फ कार्ड भेज दूंगी ,आने के लिए तो झूठे मुंह भी ना कहूंगी । जब कहूंगी नहीं तो आने का भी सवाल ही नहीं उठता ” ये सब मैंने खुद अपने कानों से सुना था आपको बताया इसलिए नहीं कि आपको दुख होगा ” तो बिटिया गरिमा आंखों में आंसू लिए हुए बोली । ” हम गरीब हैं तो क्या हुआ हमारी कोई इज्जत नहीं है । बड़ी मामी ने सारे रिश्तेदारों को अच्छे अच्छे तोहफे दिए टीके लगाकर लिफाफे दिए मिठाईयां दीं विदाई में चलते समय लेकिन हमारे चलने के समय वो सामने से गायब हो गई । उन्होंने हर जगह तो हमारा अपमान किया । मामा ने सारे रिश्तेदारों को गाड़ी से स्टेशन छुड़वाया लेकिन हमें तो कोई बाहर तक छोड़ने नहीं आया और तो और चलते समय न‌ई दुल्हन से आपके और बाबूजी के पैर तक नहीं छुआए । खाना पीना लेन देन हम सब भूल जाते लेकिन अपने मां बाबूजी का अपमान कभी नहीं भूलेंगे । हम इज्जत से अपने घर ही भले चाहें नोन रोटी खाएंगे लेकिन ऐसी जगह कभी नहीं जाएंगे जहां मान सम्मान ना हो ” इस बार सबसे छोटा बेटा माधव बोला । ” बहू ! तीनों बच्चे और जगन बिल्कुल सही कह रहे हैं ” जहां सम्मान नहीं वहां जाना नहीं , अपने गरीब खानें में इज्जत की नमक रोटी ही भली है दूसरे के महल में अपमान से मिले पकवान और हीरे जवाहरात भी बेकार हैं ।




अब समझाना हम सबका काम था बाकी जैसी तुम्हारी मर्जी , अपने स्वाभिमान की रक्षा करना अब तुम्हारा काम है ” माधुरी की बुढ़ी सासूमां जो अब तक सबकी बातचीत सुन रही थी वो भी बोल पड़ी । ” मां जी ! हमारी खुशी तो आप सबके साथ है । आज बच्चों की बातों ने मेरी आंखें खोल दी । हम तो मायके भाई भाभी भतीजों के मोह में अंधे भागे चले जाते थे कभी इतना मान सम्मान के बारे में सोचा ही नहीं लेकिन अब सुनकर लग रहा है बिल्कुल सही कह रहे हैं आप सब वो लोग हमारे और हमारे परिवार के साथ हमेशा ऐसा ही करते हैं क्योंकि हम गरीब हैं तो अब हम अपने घर में ही भले अब हम भी नहीं जा रहे कहीं हमारे लिए भी अपने पति के सम्मान से बढ़कर कुछ नहीं है ” माधुरी जी दृढनिश्चय के साथ बोली ।

माधुरी जी की बातें सुनकर जगन्नाथ जी , तीनों बच्चों निशा ,गरिमा ,माधव और उनकी सासूमां सबके चेहरे पर खुशी से खिल ग‌ए आखिर माधुरी जी को समझ आ ही गया जहां सम्मान नहीं वहां जाना नहीं फिर चाहे हमारा मायका ही क्यों ना हो आखिर अपना स्वाभिमान भी होता है “। दोस्तों आपको मेरी ये स्वरचित और मौलिक रचना कैसी लगी कृपया पढ़कर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया जरूर दें आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है मुझे फॉलो भी जरूर करें । जल्दी ही मिलती हूं आपसे अपने न‌ए ब्लाग के साथ तब तक के लिए राम राम 🙏

आपकी दोस्त कीर्ति मेहरोत्रा

धन्यवाद 🙏

# स्वाभिमान

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