बहू मुझे जाने के लिए मत कहना… – रश्मि प्रकाश

“ नमस्ते मम्मी जी , आप कब आ रही है..?” कृतिका ने सासु माँ रत्ना जी से पूछा.

“ बहू अभी तो मेरी तबियत ठीक नहीं चल रही है… ठीक होते ही खबर करूँगी फिर रितेश से कह कर टिकट करवा देना..।” कराहती सी आवाज़ में रत्ना जी ने कहा.

“ ओहह…. सोच रही थी जल्दी आ जाती तो अच्छा रहता वैसे हुआ क्या है….आ जाइए यहाँ ही दिखलवा देंगे ।” कृतिका ने कहा.

“ यहाँ मेहुल ने दिखला दिया है … कुछ दिन दवाई खा कर देखती हूँ आराम मिलते खबर करूँगी ।” रत्ना जी ने कहा

दूर कमरे में बहू गरिमा सास की बात सुन मंद मंद मुस्कुरा रही थी….

“ मुझे नहीं जाना वहाँ…. समझती क्यों नहीं है…. बेटा खुद कभी फ़ोन ना करेगा… बीवी से करवाता रहता है….मुझे नहीं जाना।” मन ही मन बुदबुदाती रत्ना जी धीरे-धीरे चलकर बहू गरिमा के कमरे में आ गईं.

“ बहू एक कप चाय तो बना दे…. मैं बस जरा सांझ दिखा कर आती हूँ ।” कह रत्ना जी हाथ पैर धो आरती करने चल दी

“ क्या हुआ माँ जी आप किस बात के लिए मना कर रही थी…..क्या कह रही थी कृतिका….।” अंजान बनते हुए गरिमा ने चाय पकड़ाते हुए कहा

“ क्या ही कहती है वो तुम भी तो जानती ही हो…. अब क्या मेरी उम्र है जो बच्चे सँभालने जाऊँ….पक्का उसकी माँ जाने को कह रही होगी तभी हर दिन मुझे फ़ोन कर बुला रही है … नहीं तो क्या मजाल जो फोन कर दें… सास बीमार हो जाए तो दो घड़ी सेवा ना कर सकती पर उसके बेटे को सँभालने मैं जाऊँ…. नहीं जाना मुझे … और तू भी अपनी देवरानी की तरफ़दारी तो क़तई ना करना ।” ग़ुस्से में रत्ना जी ने कहा

“ मैं क्यों ही कुछ कहूँगी माँ जी…… ये दोनों घर आपके हैं जब मर्ज़ी जहाँ मर्ज़ी रहिए… पर इस बार जब आप देवर जी के घर से आई हैं बहुत नाराज़ लग रही हैं उन लोगों ने कुछ कहा है क्या?” भेद लेने और सास के साथ शुरू से रहने के कारण गरिमा सास की थोड़ी चहेती तो ज़रूर हो गई थी.




“ बहू दुखती रग पर हाथ ना रख… ।” टालते हुए रत्ना जी ने कहा।

पता नहीं क्यों गरिमा को लग रहा था ज़रूर कोई बात हुई है तभी माँ जी जाने से मना कर रही हैं नहीं तो उन्हें घूमना फिरना तो बहुत पसंद है ।

गरिमा ने जब थोड़ी ज़िद्द की तो रत्ना जी दुखी हो बोलीं…,“ सुन मेहुल से कभी कुछ ना कहना बहू…. मैं नहीं चाहती भाइयों में इस बात पर कोई अनबन हो…वादा कर तू मुँह ना खोलेगी ।”

गरिमा के हाँ कहते रत्ना जी कहने लगीं,“ बहू कृतिका बहू को बाहर घूमना इतना पसंद है कि वो अपनी दोस्तों के साथ दो साल के बेटे को मेरे भरोसे छोड़ कर चली जाती है…. घंटों बाहर घूम फिर कर आती है….बहुत बार तो खाना भी नहीं बनाकर रखती…. सुबह रितेश के लिए जो नाश्ता टिफ़िन बनाती बस वही मुझे भी थोड़ा दे देती… बहू भूख लगने पर कृतिका को कहूँगी कुछ बना दे तो कहती है… ज़्यादा खाएगी तो पेट ख़राब हो जाएगा…. बहू कोई इंसान ऐसे में कैसे रह सकता है…. रात को रितेश आता तो खाना बनता वो भी गिनती की दो रोटी देती खाने को…भूखे पेट नहीं रहा जाता बहू…ऊपर से चाय भी बस एक बार सुबह रितेश के साथ ही देती हैं…. कई बार दिल करता रितेश से कहूँ पर सोचती ज़िन्दगी इन दोनों को साथ रहकर आपस में बितानी है तो क्यों बोल कर तकरार करवाऊँ…अच्छा है रितेश को विश्वास है मेरी बीबी माँ को प्यार और अपनेपन से रखती …. सच कहूँ कृतिका बहू दिखावा बहुत करती हैं….और मेरा भोला बेटा बीबी के दिखावे को सच मान बैठता….वो मेरे ही बेटा बहू और पोते हैं फिर भी उस घर जाकर मैं कैदी हो जाती हूँ…. मेरी मर्ज़ी से ना कुछ कर सकती ना खा सकती…. तेरे पास तो जो कहती तुम प्यार से बना कर देती हो….इसलिए यहाँ से जाने का दिल नहीं करता है …. देख ये भूल से भी मेहुल से ना कहना….मैं कोई बहाना कर लूँगी पर वहाँ नहीं जाऊँगी ।” रत्ना जी धीमे से बोलीं

सुनकर गरिमा को जरा भी अच्छा नहीं लगा…. वो सोच रही थी पहले जब सासु माँ वहाँ जाती थीं तो कितनी ख़ुशी ख़ुशी सामान बाँधतीं थीं….हाथ के बने आचार… मसाले चिप्स लेकर जाती थीं….. जब आती तो कृतिका ये बनाकर खिलाई वो बनाकर खिलाई… ये दी वो दी कहती थकती नहीं थीं….कितनी बार कह देती थीं कृतिका बहू कढ़ी तुमसे अच्छा बनाती तो कभी किसी और चीज़ की तारीफ़ कर देती थीं…. गरिमा बस एक झूठी मुस्कान चेहरे पर ला सब सुना करती थी…. पर आज उसी कृतिका के घर जाने के लिए सासु माँ बहाने बना रही हैं…. पता नहीं मुझे इस बात के लिए खुश होना चाहिए और दुःखी…..गरिमा सोच रही थी।

“ माँ आपका मन नहीं है जाने का तो साफ़ साफ़ रितेश से सब बात कह क्यों नहीं देतीं…. मैं ये नहीं कह रही आप वहाँ जाइए ही पर रितेश को भी तो पता चले ना माँ वहाँ आना क्यों नहीं चाहतीं…. ?” गरिमा रत्ना जी के मन की थाह लेने के लिए बोली.

“बहू बाद की बाद में देखेंगे…. फ़िलहाल मेरा मन उचाट हो रखा है कुछ दिन यही रहने दे फिर सोचूँगी…।“ कह रत्ना जी चाय का कप ट्रे में रख वही सोफे पर सो गई..

गरिमा सोच रही थी पता नहीं लोग ऐसा कैसे करते हैं….. खुद बाहर घूम कर आ जाती मस्ती कर लेती पर जो सासु माँ घर पर रहतीं उसके ही बेटे को देखती उसके लिए जरा सा नहीं सोचती…. ना जाने क्यों उसके मन में कृतिका के लिए थोड़ा ग़ुस्सा आने लगा।

उस रात तो वो मन में उथल-पुथल लिए सो गई…. पर दूसरे दिन सुबह ना जाने क्या सोच कर सारा काम ख़त्म कर कृतिका को फ़ोन कर दी..,“ हैलो कृतिका कैसी हो…. और हमारा अंश कैसा है…?”




“ नमस्ते भाभी… हम दोनों ठीक हैं आप बताइए…और मम्मी जी की तबियत कैसी है…?” कृतिका ने कहा

“हाँ हम तो ठीक है…. माँ कीं उम्र हो रही है ना अब जब तब बीमार पड़ती रहती हैं…. ये बता तू कढ़ी कैसे बनाती है और वो भेज बिरयानी… माँ तो तारीफ़ के पुल बाँधे रहती है कृतिका के हाथों में तो कमाल का हुनर है… ना मुझसे बनता ना तेरे से वो बस कृतिका बहू ही बना पाती हैं…. दो दिन पहले कह रही थी बनाने को तबियत नासाज़ है तो ज़्यादा तो खा नहीं पाती पर बिना खाए रहेंगी तो और बीमार हो जाएगी यही सोचकर उनकी पसंद का खाना बनाने का सोच रही थी…. तू मुझे रेसिपी बता दे तो बना दूँगी….. पता है ये उम्र ही ऐसी उनकी…उपर से डॉक्टर ने सख़्त हिदायत दे दी है जो खाने में जरा समय का उलट फेर हुआ पेट में तकलीफ़ बढ़ जाएगी…. इसलिए वक्त पर खाना खाना ज़रूरी है….।” गरिमा ने अपनी तरफ़ से माँ के लिए बात कह दी और रेसिपी पूछ फ़ोन रख दिया।

दूसरी तरफ़ कृतिका मन ही मन सोच रही थी…. मैं तो मम्मी जी को अब ना खाने को कुछ अच्छा देती ना वक्त पर खाना ही देती फिर भी मम्मी जी मेरी ज़रा बुराई नहीं की…. इस बार जब आएगी सच में मैं उनका पूरा ध्यान रखूँगी…. बीमार हो जाती हैं तो तकलीफ़ भी हमें ही होती हैं तो क्यों ना बीमार पड़ने की वजह ही ख़त्म कर दे….

कुछ दिनों बाद रितेश ने माँ को ज़बरदस्ती टिकट कटवा कर अपने पास बुला लिया…. रत्ना जी अब कोई बहाना भी नहीं कर पाईं क्योंकि मेहुल ने भी कह दिया माँ कुछ दिन के लिए चली जाओ… नहीं तो रितेश को लगेगा माँ उसे प्यार ही नहीं करती…. रत्ना जी बहुत बुझे मन से यहाँ आई थीं।

पर इस बार कृतिका बहू के बदले अंदाज़ से वो आश्चर्यचकित रह गईं…. कुछ दिनों बाद जब कृतिका दोस्तों के साथ बाहर जा रही थी तो रत्ना जी के लिए खाना बनाकर रख गई…और बेटे को भी सुला दी थी…. जो अब तीन चार घंटे आराम से सोता रहता ….. कृतिका के जाते रत्ना जी गरिमा को फोन कर दी…,“ बहू इस बार तो चमत्कार हो गया… कृतिका बहू तो बहुत बदल गई है … मेरे खाने पीने के साथ आराम का भी पूरा ध्यान रख रही है….पहले जैसे अपनापन दे रही है और प्यार भी …. सच कहूँ मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है…. ये चमत्कार कैसे हो गया?” आश्चर्य और ख़ुशी मिश्रित लहजे में रत्ना जी बोलीं।




“ अब आप ख़ुश हैं ना माँ…. बस यही तो चाहिए था…. देखिए कहीं कृतिका के पास जाकर अपनी इस बहू को भूल मत जाइएगा….।” गरिमा ने हँसते हुए कहा

“ तू तो मेरी पहली बहू है सास का रुतबा तो तुमसे ही पाया है ऐसे कैसे भूल जाऊँगी…. वैसे मेरे मन में खटक रहा तुने ही कुछ जादू चलाया है क्या….?” रत्ना जी शंकित हो पूछी

“ आपसे कुछ छिप नहीं सकता है ना माँ…. बस मैं चाहती थी आपके दिल में हम दोनों की छवि ख़राब ना हो… हम एक जैसे तो नहीं हो सकते पर बहू तो आपकी ही है ना… कल को कुछ ऐसा गलती से मुझसे कुछ हो गया और आप कृतिका से कहे.. फिर मन ही मन हमारे बीच खटास हो उससे बेहतर लगा की कमी को बिना शिकायत किए दूर कर दिया जाए।” गरिमा ने कहा

“ जीती रह मेरी सुघड़ बहू … अच्छा किया मुझे भी बिना कुछ कहे समझा दिया…. एक दूसरे का शिकायत से सच में तुम दोनों के बीच भी अविश्वास आ जाता… चल अब रखती हूँ खाना बना कर गई है खा कर थोड़ी देर अंश के साथ सो जाती हूँ ।” कह रत्ना जी ने फोन रख दिया

दोस्तों क्या आपने भी महसूस किया है जब सास की दो से ज़्यादा बहुएँ होती हैं तो वो एक दूसरे की शिकायत करती रहती हैं…इससे आपसी मनमुटाव और दूरियों का संचार होता है…. कोशिश यही करनी चाहिए जैसी गरिमा ने की….इस बारे में आप क्या सोचते हैं ज़रूर बताएँ ।

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

 

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