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बहू मेरा घर धर्मशाला थोड़ी है – कनार शर्मा

बहू मेरा नाश्ता और चाय बालकनी में लगा दो ठंड बहुत है थोड़ा धूप सेंक लूंगी…!!

थोड़ी देर बाद देखा तो बहू की छोटी बहन विधि नाश्ते की ट्रे लेकर चली आ रही है उसका यहां रहना उन्हें खटक रहा था, आज उन्हें बोलने का मौका मिल गया।

अरे विधि बेटा तुम यहां कब तक रहोगी निधि ने फिर तुम्हें बुलाया है क्या…वो तो मैं चुप हूं मगर तुम तो जाने का नाम ही नहीं ले रही?

नहीं आंटी दीदी ने नहीं बोला… मेरी यहां कोचिंग स्टार्ट हो रही है इसलिए आई हूं, अगले छः महीना यही रहूंगी…!!

क्या पर वहां तुम्हारी मम्मी अकेले कैसे संभालेंगी तुम अपनी पढ़ाई वहीं रहकर क्यों नहीं करती? मेरा मतलब है वहां पर भी तो अच्छे कॉलेज, कोचिंग हैं फिर जबरदस्ती खर्चा क्यों बढ़ाना और फिर तुम्हारे तो पिताजी और भाई भी नहीं है तुम लोगों को खट्टा सोच समझ कर करना चाहिए!!

विधि सविता जी की बात सुन सकपका गई इतने में उनकी बहू निधि रसोई से आकर बोली “मांजी मैंने तो मना किया था मगर वैभव ने ही इसे यहां रहकर तैयारी करने के लिए कहा है”।

बहू मेरा घर धर्मशाला थोड़ी है जो जिसका मन आएगा वह यहां आकर रहेगा। पहले की बात और थी अब इसे यहां रहने की क्या जरूरत है? घर में तुम सब हो अब मैं भी आ गई हूं… ठीक है इस शहर में तैयारी करनी है तो घर में क्यों ये हॉस्टल में भी तो रह सकती है ना….!!!




मांजी किताबे, कोचिंग की फीस, फिर हॉस्टल की फीस मेरी मां इतना इंतजाम नहीं कर पा रही थी इसलिए….

सविता जी अपने बेटा बहू वैभव निधि के घर कुछ दिनों पहले आई है और विधि निधि की छोटी बहन है जिसको घर में देख सविता जी चिढ़ गई हैं और वे चाहती हैं जल्द से जल्द विधि अपने घर वापस चली जाए।

अरे मेरी भोली बहु यही तो कह रही हूं जब तुम्हारी मां की औकात ही नहीं इतना खर्चा उठाने की तो फिर ये क्यों इतने बड़े दिल्ली शहर में आकर तैयारी कर रही है। सतना में रहकर पढ़े, छोटी-मोटी नौकरी कर सके तो ठीक वरना शादी ब्याह कर जिम्मेदारियों से मुक्ति पाएं समधन जी।

निधि अपनी बात पूरी कर नहीं पाई तभी वैभव अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ा सब बातें सुन चुका था… वो बाहर निकल कर बोला “मां आपको विधि के यहां रहने से क्या परेशानी है? बच्ची सिर्फ पढ़ना ही तो चाहती है उसे पढ़ने दीजिए..!!

ये कोई बच्ची नहीं है… मैं यहां जब से आई हूं देख रही हूं कभी यह तेरे साथ बैठे बातें करती है, तो कभी हंसी ठिठोली कर रही है, तेरे सिर पर मालिश कर रही है, तुझे नाश्ता परस रही है, मुन्नी की देखभाल में लगी है… बहू रिश्तो के बीच की डोर बहुत कच्ची होती है इसलिए सावधानी बरतना भी बहुत जरूरी है। मैं तो तुम लोगों को आगाह कर रही हूं। कहने को विधि वैभव की साली ही है और जीजा-साली का रिश्ता वैसे ही बहुत बदनाम है और अगर तुम्हारी बहन यहां रही तो लोगों को बातें बनाने का मौका मिल जाएगा। जो मैं बिल्कुल नहीं चाहती सविता जी पूरे विश्वास के साथ अपनी बात कहती है।

अपनी छोटी बहन के बारे में इतना सब कुछ सुन निधि की आंखों में आंसू आ गए…. जिसे देख वैभव ने कहा “मां कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना” पर यह सच्चाई तो हम ही जानते हैं ना कि हमारी नियत में कोई खोट नहीं… मेरे लिए तो जैसे मेरी बहन नीता है वैसे ही विधि है। मैंने कभी भी इन दोनों में कभी फर्क नहीं ना करूंगा..!!




वैभव बेटा कहने और होने में जमीन आसमान का फर्क होता है बहन और साली दो अलग बातें हैं… तुम ये बात आसानी से किसी को समझा नहीं सकते और मैं नहीं चाहती ये लड़की यहां रहे… इसे इसी वक्त यहां से जाना होगा। यह मेरा फैसला है जिसे कोई नहीं टालेगा..!!

आंटी जी आप बिल्कुल सही कहती है मैं आज ही वापस चली जाऊंगी (वह अपनी दीदी की ससुराल में हंगामा खड़ा नहीं करना चाहती थी) कहते हुए विधि अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगी….

रुको विधि!! तुम कहीं नहीं जा रही हो…. मां जिस वक्त हमें जरूरत थी तब आप और नीता में से कोई भी हमारे पास नहीं आया। तब ये लड़की विधि ही थी जो अपनी दीदी की डिलीवरी करवाने यहां पहुंची और छः महीने तक अपनी बहन और मुन्नी की सेवा ही नहीं कि आपके बेटे को भी समय पर नाश्ता खाना बनाकर दिया जिस बीमारी, लॉकडाउन का बहाना बनाकर आप लोग हमारी मदद के लिए नहीं आए।

वहां यह लड़की बिना कुछ सोचे समझे हमारे पास दौड़ पड़ी… तब आपको कोई आपत्ति नहीं थी जब तक कोई हमारे काम आ रहा है तब तक ठीक है जैसे ही हम किसी के काम आने लगे तो हमें पल्ला झाड़ लेना चाहिए.. ये बेचारी तो एमकॉम करने वाली थी। मगर मैंने ही इसे एमबीए करने की सलाह दी ताकि भविष्य में इसे अच्छी नौकरी मिल सके, आत्मनिर्भर बनकर अपने पैरों पर खड़ी हो सके… जिसने मेरा बुरे वक्त में साथ दिया उसका साथ में हर वक्त देने तैयार हूं… इसीलिए विधि की पूरी जिम्मेदारी मैंने अपने कंधों पर ली है इसका बड़ा भाई होने के नाते और इतना ही नहीं मैंने निधि के साथ मिलकर ये फैसला किया है… विधि का कन्यादान हम दोनों लेंगे ताकि कोई भूलकर भी हमारे पवित्र रिश्ते पर उंगली ना उठा सके। मां रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है जिसे हमें विश्वास से ही मजबूत करना पड़ता है। और सही कहा ये घर है हमेशा अपनों के लिए खुला कोई धर्मशाला नहीं जहां आने जाने के लिए किसी को सोचना पड़ेगा।

आज सविता जी को अपने कथन पर बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। पहला तो वे अपने बहू बेटे के कठिन वक्त पर साथ ना दे सकी, दूसरा छोटी सोच के कारण रिश्तों पर भी उंगली उठा रही थी।इसलिए छोटी सोच से उठकर भी देखना होगा आजकल के बच्चे कितने समझदार हैं जिन्हें सही और गलत समझाने की जरूरत नहीं सोच सविता जी चुपचाप अपने कमरे में चली गई।

आशा करती हूं आपको मेरी रचना आपको जरूर पसंद आएगी  धन्यवाद!!

कनार शर्मा

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

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