बहू खुशियों को वक्त का मोहताज नहीं बनाते ..! – मीनू झा 

मम्मीजी… चलिए ना थोड़े मुरमुरे और तिल के लड्डू बनाते हैं मुझे बहुत पसंद है .. संक्रांति आने वाली है ना??

मम्मीजी ने कान में इयरफोन लगाया था तो सुन नहीं पाई..मंजरी फिर अपनी बात को दोहराने ही वाली थी कि पापाजी ने उसे चुप रहने का इशारा किया।

दो महीने पहले ब्याहकर आई मंजरी समझ नहीं पाई कि आखिर लड्डू बनाने में कौन सी ऐसी बुरी बात है जो पापाजी ने मना कर दिया बोलने से…!

किचन आकर वो टाइमपास के लिए प्लेट में कुछ स्नैक्स निकालने लगी तभी ससुरजी भी वही आ गए…!

बहू….बुरा ना मानना तुम्हें बोलने से रोक दिया उस वक्त मैंने.. दरअसल अगर तुम वो बात बोल देती ना उसके बाद शारदा बोलना बंद कर देती मतलब उनका ऐसा रोना पीटना शुरू जाता जिसे हम सबने बहुत मेहनत से ठीक किया है…!!

रोना पीटना लड्डू बनाने और मकरसंक्रांति के नाम से…वो क्यों पापाजी…

दरअसल दीपा और  हेमंत के बाद हमारा एक और बेटा भी हुआ था…पर अचानक मकरसंक्रांति के दिन ही वो नहीं रहा…तबसे लेकर आज बीस साल से वो मकरसंक्रांति मनाना क्या…नाम तक भी लेना पसंद नहीं करती उसपर से तुम लड्डू की बात करने जा रही थी इसलिए मैंने रोक दिया, अगर उन्हें किसी ने टोक दिया उस बात को लेकर फिर तो पूछो मत…पूरी जनवरी बेकार जाती…हमेशा रोती सुबकती और बेचैन रहतीं…खैर छोड़ो ये सब… तुम फिकर मत करो आसपास के सब लोग हमारे घर का हाल जानते हैं तो सब दे जाते हैं लड्डू वड्डू भर भरके…

पर पापाजी ये तो सही नहीं है ना… मैं उनकी पीड़ा समझ सकती हूं पर जो नहीं है उनका शोक मनाने की जगह जो पास है उसकी खुशी मनानी चाहिए ना..

शारदा जी को कोई नहीं समझा सकता बहू…

पर मैं एक कोशिश करना चाहती हूं पापाजी अगर आप और हेमंत साथ दें तो…

पर बेटा…

सफल ना रही तो जैसे सब चल रहा है वैसे ही चलेगा चिंता ना करें

ओके कहकर सहमति जता दी जमनालाल जी ने।

मकरसंक्रांति आने में चार दिन थे…आजकल मंजरी रोज शाम को जब हेमंत ऑफिस से आ जाता तो निकल जाती शाॅपिंग के लिए…।




बहू की खुब शॉपिंग चल रही है आजकल कोई बात है क्या?–शारदाजी ने बेटे से पूछ ही लिया।

मम्मी…वो नहीं जा रही मैं ही ले जा रहा हूं उसे… दरअसल उसका बर्थडे है ना चौदह तारीख को…तो शॉपिंग वगैरह करवाने ले जाता हूं

अच्छा…चौदह तारीख को..-क्षण भर के लिए शारदा के चेहरे पर मलीनता आई पर फिर वो चुप हो गई।

मंजरी ने पाया कि पापाजी सही कह रहे थे कि उस पुराने समय की याद आते ही शारदा जी बेचैन सी हो जाती है और चुप्पी लगा देती है।

मंजरी को लगा शायद उसका वार उल्टा रहा…उसने हेमंत और ससुरजी से अब इस बात पर चर्चा बंद करने की बात कहकर माफी मांग ली…उसे ज्यादा परेशान देखकर उनदोनो ने समझाया कि शारदा जल्दी ही नार्मल हो जाएगी…पिछले कुछ सालों से तो वो इस समय में सामान्य रहने की खुद कोशिश कर रही है।

दो दिन उसी तरह बीते शारदा जी बिल्कुल चुप तो नहीं थी पर पहले की तरह भी नहीं बोल रही थी।

मकरसंक्रांति के एक दिन पहले जब हेमंत ऑफिस से लौटकर आया तो उन्होंने हेमंत से जब ये पूछा तो वो चौंक उठा—बेटा पार्टी घर में रखी है या फिर होटल में?

कौन सी पार्टी मम्मी…अच्छा वो…असल में मंजरी को वो हमारे घर में हुए हादसे का पता नहीं था…तो पहले तो वो बहुत उत्साहित थी पर बाद में उसने ही मना कर दिया..बोली मंदिर चले जाएंगे और घर पर ही कुछ बना लेंगे या मंगा लेंगे।

अरे ऐसे कैसे?? ससुराल में उसका पहला बर्थडे है… ससुराल तो ऐसे ही बदनाम होता है…और खराब करेगी क्या हमारा नाम—शारदाजी पहले वाले रुप में लौट चुकी थी।

तबतक जमनालाल जी और मंजरी भी आकर वहां खड़े हो गए।

अरे मुझे तो लगा सारा कुछ आपलोग मिलकर कर ही लोगे…पर सब मुझ पर ही छोड़ दिया…चलो कोई नहीं..सबसे पहले तो वो पास वाला रेस्टोरेंट है ना अभी चलकर ही उसका पार्टी हाॅल बुक करना होगा और मेनू डिसाइड करना होगा..

पर मम्मी चार जनो के लिए हाॅल बुक करने की क्या जरूरत है?




किसने कहा चार है…अरे आसपास हमारे इतने सारे रिश्तेदार हैं पड़ोसी हैं दोस्त हैं…बहू के मायके से भी तो आएंगे ना लोग…

उतना करने की क्या जरूरत है… मम्मी मकरसंक्रांति का सामान लेकर भेजने वाली थी पापा को पर मैंने ही मना कर दिया कि हमारे घर में उसी दिन हुए उस हादसे के बाद ये पर्व नहीं होता है…तो वो भी नहीं आ रहे अब…

हां…सच कहते हैं लोग…बहू आ गई तो अब मैं तो मालकिन रही नहीं…तुम्ही लोग सारे डिसीजन लेने लगे…मुझसे कुछ पूछने की क्या जरूरत किसी को…

ये बात नहीं है….हमलोग आपको दुखी नहीं करना चाहते थे शारदा जी

देखिए मेरा दुख बहुत बड़ा है और इसकी पीड़ा इसका अफसोस तो मेरे साथ ही जाएगा…पर दुख की चर्चा बार बार होने से ये और बढ़ता है ये मैंने भी महसूस किया है…कहते हैं किसी पर्व त्योहार पर ऐसी घटना हो जाए तो जबतक उस दिन घर में किसी का जन्म ना हो वो पर्व नहीं मानता…अब हमारी बहू का इस घर में नए सदस्य के रूप में एक तरह से जन्म ही हुआ है ना तो अब हमारे घर में बर्थडे भी मनेगा और मकरसंक्रांति का पर्व भी…

पर मम्मीजी…

पर वर कुछ नहीं…अभी हमलोग रेस्टोरेंट जाकर मेनू डिसाइड करेंगे फिर सबको खबर करेंगे,कल दिन में तिल मुरमुरे के लड्डू बनाएंगे,छत पर पतंगबाजी भी करेंगे और शाम को पार्टी में एक डिश खिचड़ी भी होगी मतलब जन्मदिन भी मकरसंक्रांति भी एकदम प्राॅपर टाइप…और हां तुम अपने पापा मम्मी भाई को भी बुला लो और फोन जब करोगी तो मुझे देना मैं भी कह दूंगी उन सबको आने…आखिर वो भी तो देखें कितनी अच्छी तरह हम मना रहे अपनी बहू का जन्मदिन…

पर मम्मीजी…

तुम्हारी सुई “पर मम्मीजी” पे क्यों अटक गई है बहू …”पर” छोड़ो…”कर” पर ध्यान दो बहुत सारे काम करने हैं हमें कम समय में ही…

मम्मीजी साॅरी… मैंने सबके साथ मिलकर आपसे झूठ बोला कि मेरा जन्मदिन चौदह जनवरी को है…वो तो जून में आता है…साॅरी…मुझे लगा कि आपको दुख से निकालना जरूरी है… मुझे पता है बड़ी ग़लती हुई है मुझसे पर मैं मजबूर थी…।

शारदा जी फिर थोड़ी देर शांत हो गई…।

चलो कोई बात नहीं… खुशियों को वक्त या तारीखों का मोहताज नहीं बनाना चाहिए,खुशियां तो कभी भी कैसे भी आ सकती है लाने की सच्ची भावना होनी चाहिए मन में …तुम्हारा जन्मदिन भले ही अपने मां बाप के घर में जून में हुआ हो…हमलोग अपने घर पर तुम्हारा जन्मदिन इसी दिन मनाएंगे..बेटा खोया पर बेटी तो मिली की सोच से खुश और व्यस्त होने का कारण तो मिलेगा… मैं भी तकलीफ़ से बाहर आना चाहती थी पर कारण ही नहीं मिलता था…

थैंक्स मम्मी जी

थैंक्स तो मुझे तुम्हें करना चाहिए बहू… मुझे पीड़ा से बाहर आने का कारण देने के लिए…!

झूठा ही सही—हेमंत ने मुस्कुराते हुए कहा

हां पर बहू का उद्देश्य तो सच्चा और अच्छा था ना… इसलिए तो मैंने भी ना नहीं कहा —जमनालालजी बोले

चलो चलो बातें बहुत हुई…अब सब अपना अपना काम बांटो और लग जाओ.. बातें बहुत हुई अब वक्त नहीं है बातों के लिए –शारदा जी ने पेन पेपर उठाकर लिस्ट बनाना शुरू किया और सब मन में संतोष और खुशी लिये अपने अपने कामों में जुट गए…!!

 #वक्त 

मीनू झा 

 

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