रश्मि जब से शादी करके ससुराल आई थी, तब से उसने एक बात समझ ली थी कि इस घर में पत्ता भी उसकी ननद आशी की मर्जी से हिलता था, आशी की शादी हुए अभी दो साल हो गये थे, पर एक ही शहर में रहने के कारण वो कभी भी आ धमकती थी, और यही कहती थी कि मेरा मायका है मै कभी भी आऊं, मै किसी न्यौते का इंतजार नहीं करूंगी, जब मन किया तब आ जाऊंगी।
आशी के ससुराल में विधवा सास थी जो पूरी तरह आशी और उसके पति उमेश पर निर्भर थी, आशी की ये देखकर भी हिम्मत बढ़ गई थी कि उसके पति की कमाई से ही घर चलता है तो वो अपनी मनमर्जी करती थी।
इधर रश्मि अपने सास-ससुर के साथ रहती थी, रश्मि के ससुर एक कोचिंग सेंटर में पढ़ाने का काम करते थे, वहां से उन्हें अच्छी-खासी आमदनी हो जाती थी और उसके पति शोभित भी इंजीनियर थे, घर में किसी बात की कोई कमी नहीं थी। रश्मि के साथ सबका व्यवहार प्यार भरा था, लेकिन एक बात रश्मि को हमेशा खटकती थी कि जो भी सामान या खाने-पीने की चीज घर में आती थी, वो हमेशा दो आती थी, और उनमें से एक आशी के ससुराल भिजवा दी जाती थी, या वो आती थी जब ले जाती थी।
एक बार उसने अपने पति शोभित से बात की तो वो बोला कि कोई बात नहीं, आशी भी इसी घर की है और मेरी बहन है तो इतना तो उसका हक बनता है, फिर एक ही ननद है तो तुम अपना बड़ा दिल रखो, तुम्हें तो जीवन भर देना ही है।
हां, शोभित देना तो है, पर वो भी हिसाब से अच्छा लगता है, अब हर चीज आशी के घर पहुंचाना और उसके बिना कुछ नहीं खाना, ये सब मुझे कुछ ज्यादा ही लगता है, रश्मि ने जवाब दिया।
कोई ना तुम्हें धीरे-धीरे आदत हो जायेगी और शोभित अपने काम में लग गया।
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एक दिन आशी घर आई और कहने लगी कि मम्मी आज खाना बनाने का मन नहीं है, मै तो यहां खाना खाकर चली जाऊंगी आप मेरी सास और अपने दामाद के लिए भी खाना पैक कर देना, मै ले जाऊंगी।
रश्मि और उसकी सास दोनों खाना बनाने में लग गई, अब बेटी के ससुराल खाना भेजना था तो एक सब्जी से तो काम नहीं चलता, अच्छी तरह दो-चार तरह की सब्जियां, पूडियां पैक कर दी, आशी अपने साथ ले गई।
ऐसा एक बार नहीं कई बार हो चुका था, जिस दिन रश्मि सोचती थी कि आज काम निपट गया, उसी दिन उसकी ननद आशी आ धमकती थी।
सर्दियां आने लगी थी, रश्मि को गोंद के लड्डू खानें थे तो उसने मेवों की लिस्ट बनाकर शोभित को दे दी और आदत के मुताबिक शोभित हर चीज दोगुनी ले आया और हर चीज के दो तरह के पैकेट बनकर आ गये।
रश्मि हैरान थी, मम्मी जी देखिए ये कितना ज्यादा सामान ले आये है, एक तो मेवा इतना महंगा है, अब आप ही कुछ बोलिए।
कोई बात नहीं बहू, शोभित ने कुछ गलत नहीं किया, वैसे भी ये मेवा आशी के ससुराल भिजवाना है, तू अपना बड़ा दिल रख, एक ही बहन है शोभित की, और ये उसपर जान लुटाता है।
रश्मि चुप रही और दूसरे दिन वो लड्डू बनाने की तैयारी में लग गई, लड्डू बनाकर वो डिब्बे में भर ही रही थी कि सासू मां ने एक डिब्बा और निकालकर रख दिया कि आधे लड्डू आशी के लिए इस डिब्बे में भर दें, वो जब आयेगी तब ले जायेगी।
रश्मि मन ही मन सोच रही थी कि जब लड्डू भिजवाने थे, तो मेवा भिजवाने की क्या जरूरत थी? बहन-बेटियों को भी हिसाब से दिया जाता है, पर वो चुप रही।
अगली सुबह उसके पापा का फोन आया कि सुमन को देखने वाले तेरे ही शहर से आ रहे हैं, अच्छा होगा अगर ये सगाई हो जायेगी, तो दोनों बहनें एक ही शहर में रहोगी, आपस में मिलती रहोगी।
रश्मि ने अपने हिसाब से लड़के और उसके घरवालों के बारे में पता कर लिया, कुछ ही दिनों में सुमन की सगाई हो गई और चंद महीनों के बाद सुमन शादी करके रश्मि के ही शहर आ गई। रश्मि और उसके ससुराल में ज्यादा दूरी नहीं थी। अब रश्मि को ही अपनी छोटी बहन को देखना था।
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शादी के बाद हर पहले त्योहार पर रश्मि के पापा उसे पैसे भेज देते थे, और वो सामान खरीदकर उसके ससुराल पहुंचा देती थी। रश्मि की सास को लगता था कि बहू अपनी बहन पर कुछ ज्यादा ही खर्च कर रही है।
एक दिन उन्होंने अपने बेटे शोभित को ये बात बताई तो उसने रश्मि से कहा, क्या बात है? तुम अपनी बहन पर कुछ ज्यादा ही मेहरबानी कर रही हो, पैसे क्या पेड़ पर उगते है?
रश्मि तो जैसे इसी मौके का इंतजार कर रही थी, आप भी कैसी बात कर रहे हो? मेरे एक ही तो बहन है, जैसे आपका दिल करता है अपनी बहन आशी को देने का, वैसे ही मेरा भी दिल करता है, मै भी अपनी बहन सुमन को बहुत कुछ दे दूं।
फिर मैंने ये सब आप से और मम्मी जी से ही सीखा है, आप दोनों यही तो कहते हो कि बड़ा दिल रखो, तो मैंने भी अपना दिल बड़ा कर लिया, जितना मै आपकी बहन के लिए करती हूं, उतना ही अपनी बहन के लिए करती हूं, रश्मि का जवाब सुनकर शोभित की बोलती बंद हो गई।
संडे को रश्मि जल्दी उठ गई और रसोई में खटपट की आवाज से उसकी सास की नींद खुल गई, अरे! बहू इतनी सुबह क्या कर रही हो? और ये इतना पनीर और मावा क्यों मंगवाया है? उन्होंने सवाल किया।
मम्मी जी, सात लोगों के लिए खाना बनाकर भिजवाना है, तो समय लगेगा, और इतना सामान भी लगेगा।
लेकिन आशी के घर में तो तीन ही लोग हैं, फिर??
मम्मी जी, आशी के घर नहीं मेरी बहन के ससुराल खाना भिजवाना है, आज संडे है तो उसका खाना बनाने का मन नहीं है, रात को ही मैसेज आ गया था, पुलाव, मटर-पनीर की सब्जी, मिक्स वेज, बूंदी का रायता और दो तरह की पूडियां बनाकर भेजनी है, रश्मि ने जवाब दिया।
बहू, तेरी बहन का दिमाग खराब हो गया है क्या? तुम पहले ही उस पर अनाप-शनाप खर्चा करती हो, मैंने शोभित को भी बोला था कि वो तुम्हें समझायें, वो और तेरे ससुर जी की मेहनत की कमाई तुम ऐसे ही लुटा रही हो, ये क्या कारण हुआ कि खाना बनाने का मन नहीं है, शादी के बाद हर लड़की को अपना घर संभालना चाहिए ये नहीं कि दूसरों पर बोझ डाल दें।
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रश्मि ने पलटकर जवाब दिया, “मम्मी जी एक बार को मेरे मन में यही बात आई थी, फिर मुझे आपका ध्यान आया कि आप ही तो हमेशा कहती हो बहू बड़ा दिल रखना चाहिए, जब मै अपनी ननद के लिए बड़ा दिल रखती हूं तो अपनी छोटी बहन के लिए भी रखूंगी।
आखिर जिस तरह शोभित के एक बहन है, उसी तरह मेरे भी तो एक ही बहन है।”
रश्मि की बातें सुनकर उसकी सास की आंखें खुल गईं, उन्हें महसूस हुआ कि वो आशी पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो रही थी, घर की बेटी को देना चाहिए, पर हर चीज मर्यादा में ही अच्छी लगती है, बेटी का घर भरती रही और अपने ही घर की लक्ष्मी का मन दुखाती रही।
बहू, मुझे सब समझ आ गया है, अब से ये घर तेरा है, तू कहेगी वैसा ही होगा, मुझे पूरा भरोसा है तू मेरी बेटी का कभी अनादर नहीं करेगी, और जहां जो रिवाज है लेन-देन है, वो पूरा करेगी।
हां, मम्मी जी मुझे आशी दीदी का आना और खाना बुरा नहीं लगता है, आशी की तबीयत खराब हो तो हमें मदद करनी चाहिए पर मन नहीं है, ये तो कोई बात नहीं हुई, और हां मै ये खाना अपनी बहन के ससुराल नहीं भेज रही हूं, बल्कि आज शोभित ने सुमन और उसके परिवार वालों को दोपहर के खाने पर आमंत्रित किया है, उसी की तैयारी कर रही हूं, इस बात से सास-बहू दोनों मुस्कराने लगी।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
# बड़ा दिल