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बहू अपने पुराने दर्द से कब निकलेगी-  निधि शर्मा 

अभी भी वो बहुत याद आता है.! लोगों का क्या है बड़ी आसानी से लोग कहते हैं जो चला गया उसे भूल जाओ, जिस पर गुजरती वही जानता है। मैं कैसे भूल जाऊं उसे जिसने मेरी कोख में सबसे पहला स्थान पाया और मुझे उन एहसासों से परिचित करवाया।” अनुकृति अपने पति विहान से कहती है। विहान बोला “तुम समझती क्यों नहीं हमारा पहला बच्चा जो जन्म से पहले ही इस दुनिया से चला गया वो मात्र 3 महीने का था! अभी तुम्हारी कोख में जो है वो 6 महीने का हो चुका है मैं तुम्हें जानता हूं, तुम पुरानी यादों के कारण अपने आने वाले बच्चे को कष्ट नहीं देना चाहोगी फिर उन यादों में रहने से क्या फायदा.?” अनुकृति बोली “शुभ शुभ बोलिए ईश्वर मेरे सभी अच्छे कर्मों का फल मेरे इस बच्चे को दें और इसे स्वस्थ और दीर्घायु बनाएं। जब भी मैं उसे याद करके कुछ भी बोलती हूं, मांजी बहुत नाराज हो जाती है और मुझे कितना कुछ सुनाती हैं।” कुछ रोज अनुकृति ठीक से रही फिर एक रोज शाम में न जाने वो किन ख्यालों में खोई थी और बागान में जहां पानी इकट्ठा हो रहा था वहां पांव रखने वाली थी। तभी उसकी सास कल्पना जी ने उसे रोक लिया वरना न जाने क्या अनर्थ हो जाता!

उस वक्त तो कल्पना जी ने अनुकृति से कुछ नहीं बोलीं। शाम में जब बिहान घर आया कल्पना जी बोलीं “बेटा मुझे बहू का यूं हर वक्त दुखी चेहरा देखना बिल्कुल पसंद नहीं है। मैं समझा समझा कर थक गई हूं, अगर कोई औरत खुद नहीं समझना चाहे तो उसे कोई कितना समझा सकता है। बेहतर होगा तुम अपनी सास को यहां बुला लो, हो सकता है वो मेरे साथ खुश ना रहे शायद अपनी मां के साथ खुश रहेगी।” बिहान बोला “मां ये कैसी बातें कर रही हैं आपसे अच्छा उसका ख्याल कोई नहीं रह सकता। आप भी तो एक मां है उसके दर्द को समझिए, वो अपने पहले बच्चे के खोने के गम को अभी तक भूल नहीं पाई है।” कल्पना जी बोलीं “मां हूं इसीलिए तो कह रही हूं ऐसा ना हो कि गुजरे हुए बच्चे के दर्द में वो आने वाले बच्चे को भी खो बैठे। उसे तो मैं समझा कर थक गई हूं, बेहतर होगा जितनी जल्दी तुम लोग ये बात समझ लो इतना अच्छा है।” हर वक्त खोई खोई अनुकृति को देखकर कल्पना जी ने एक रोज उसकी मां को फोन किया और सारी बात बताई। अनुकृति के पिता की तबीयत ठीक नहीं थी जिसके कारण उसकी मां वहां आ नहीं पा रही थी।

उन्होंने एक रोज बेटी को फोन किया और बोलीं “बेटा इतना करने वाले सास मिली है फिर भी तुम बेवकूफी क्यों करती है.? पुरानी बातों को जितना याद करोगी उतना मानसिक तनाव बढ़ेगा, जो तुम्हारे आने वाले बच्चे के लिए बुरा है ये बात तुम्हें समझ में नहीं आ रही है।” अनुकृति बोली “मां आप मुझे समझा रही हैं या डांट रही हैं!” मां बोली “समझाने का काम तो तुम्हारी सास कितने महीनों से कर रही है क्या तुम्हारे समझ में आया? नहीं तो अब तुम्हें मेरी ऐसी ही भाषा समझ में आएगी।” अनुकृति रोने लगी तो मां बोली “बेटा तुम्हारी सास तुम्हारे भले के लिए कह रही है पर तुम समझने के लिए तैयार नहीं हो..! ऐसा ना हो कि कुछ महीनों का दुख जो तुम आज याद कर रही हो, जीवन भर का दर्द बन जाए आगे तुम खुद समझदार हो इससे ज्यादा मैं कुछ कहना नहीं चाहती। मेरी मजबूरी है कि मैं तुम्हारे पास अभी आ नहीं सकती, तुम भी मां बनने वाली हो तुम्हारे बच्चे के प्रति तुम्हारी भी कुछ जिम्मेदारी है, उसका भला बुरा सब तुम्हें समझना होगा।” अनुकृति उदास अपने कमरे में बैठी थी विहान जब दफ्तर से लौटकर आया तो उसे लगा फिर मां ने उसे कुछ कहा है तो उसने कहा



“मां की बातों का गलत मतलब मत निकालो वो बस तुम्हारी चिंता करती हैं। पुरानी यादों से बाहर निकलो वरना उन बातों का असर तुम्हारे स्वास्थ्य पर होगा, देखो तुम्हारा चेहरा कैसे उतर गया है। हमारे आंगन में नया फूल खिलने वाला है यही सोचकर पुरानी बातों को भूल जाओ और नए मेहमान के आने की तैयारी करो तुम्हें अच्छा लगेगा।” तभी उसकी सास हाथ में जूस का ग्लास लेकर आई और बोली “यही बात में कई महीनों से बहू को समझा रही हूं पर मैं सास हूं अच्छा बोलूंगी तभी इसे उल्टा ही समझ में आता है! बहू मैं कोई तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं इसलिए कह रही हूं, पुरानी यादों से बाहर निकलो और आने वाले का स्वागत करो।” अनुकृति मुंह लटकाए बस सुन रही थी तो कल्पना जी बोलीं “बहू रानी यादव से कब निकलेगी..? जो यादें दर्द दे उसे सहेजने से कोई फायदा नहीं है। ऐसा ना हो कि आने वाली खुशियों को भी उस दर्द का एहसास हो, तो दर्द भरे बीते हुए कल को भूल जाना ही समझदारी है।”

उसकी आंखों में आंसू थे कल्पना जी आंसुओं को पोछते हुए बोलीं “बहू एक सास होने से पहले मैं एक औरत हूं अपने बच्चे को खोने का दर्द मैं समझ सकती हूं। जो चला गया उसके दर्द का हिस्सेदार क्या तुम आने वाले बच्चे को बनाना चाहोगी? कभी नहीं.. इसलिए कहती हूं कि पुरानी यादों से बाहर निकलो और आने वाले का स्वागत करो।” इतना कहकर वो वहां से चली गईं। विहान बोला “देखो मैं ये नहीं कहता कि उसकी यादों को अपने दिल से मिटा दो पर जो आ रहा है उसके लिए भी तो नयी यादें बनाओ। वरना आने के बाद वो पूछेगा या पूछेगी कि मां जब मैं आने वाला था या आने वाली थी, तो आप कैसा महसूस कर रही थीं तो क्या बोलोगी?

इसलिए आंसू पोछो और खुश रहो।” अनुकृति बोली “शायद आप सब सही कह रहे हैं मुझे पुरानी यादों को एक सुंदर से बक्से में बंद करके अपने मन के किसी कोने में ताला लगाना होगा तभी मैं दूसरी यादों को बना पाऊंगी। शायद इतने दिनों तक मैं अपने आने वाले बच्चे के साथ नाइंसाफी कर रही थी जो अब नहीं करूंगी।” उसे खुश देखकर विहान भी खुश हुआ। धीरे-धीरे अनुकृति अच्छे एहसासों को समेटने लगी और 3 महीने बीत गए। हंसता खेलता नन्हा सा बच्चा जब उसकी गोद में आया तो वो पुरानी यादों को ताला लगा दी। इस 9 महीने में उसने काफी उतार-चढ़ाव देखे और उसने ये सबक सिखा कि दर्द भरी पुरानी यादों को बक्से में बंद करना ही सही है, वरना नयी यादें प्रवेश नहीं कर पाती हैं। दोस्तों जाने वाले चले जाते हैं पर उनकी यादें हमेशा हमारे दिल में रहती है। उन यादों को कभी भी नासूर ना बनने दें, यादें तब तक अच्छी लगती है जब तक वो खूबसूरत हो। पुरानी यादों से बाहर निकलकर नयी यादों का स्वागत कीजिए और अपनी जिंदगी को खुल कर जीना सीखिए तभी जाने वाले भी खुश रहते हैं। आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें बहुत-बहुत आभार

# दर्द

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