बड़े लोगो को सपने देखने की क्या जरूरत है?? – वर्षा गुप्ता
- Betiyan Team
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- on Jan 31, 2023
वाह दादी, आपने तो रानी के महल से भी बहुत बड़ा और सुंदर महल बनाया है•••••••सच दादी आपकी चित्रकला का तो कोई जवाब नहीं.
क्या हुआ दादी ?आप रो क्यों रही हो,मैं तो आपकी तारीफ कर रहा हूं, मासूम सा रजत उमादेवी(दादी)के गले लग गया.
नहीं तो लल्ला ••ऐसी कोई बात नही है, मैं तो बहुत खुश हूं, बस ऐसे ही आज कुछ पुराने दिन याद आ गए, उमादेवी जी ने चश्मे के पीछे अपने आंसू पोंछतें हुए कहा.
मैं सब जानता हूं, अब मैं छोटा बच्चा नहीं रहा. मैं सब समझता हूं कि मम्मी आपके साथ कैसा व्यवहार करती हैं. आप उनका कितना ख्याल रखती हो फिर भी वो आपकी डांट लगाती है,जब मेरी शादी हो जाएगी तब मैं भी उनके साथ ऐसे ही करूंगा.
रजत बड़ों के लिए ऐसे बात नहीं करते, वो तुम्हारे मम्मी पापा हैं. आपको पता है बच्चों को आने वाले जीवन में कभी कोई कमी न हो. इसके लिए माता पिता दिन-रात कितनी मेहनत करते हैं. सिर्फ इस उम्मीद से की बड़े होकर वो बच्चे उनके सपनों को पूरा करेंगे. जीवन में कुछ मुकाम हासिल करेंगे और बदले में उन्हें क्या मिलता है, सिर्फ दुत्कार, नहीं मैने अपने लल्ला को यह तो नहीं सिखाया.
दादी सपने तो बच्चे देखते हैं,रजत ने अचंभे से बोला.
सपने देखने का हक सबका होता है,और सपने पूरे उनके होते हैं जिनमे कुछ कर दिखाने का जज्बा होता है, पर अब इन बूढ़ी हड्डियों में इतनी ताक़त कहां जो अपने अधूरे सपनों को पूरा कर सकें, उमा देवी ने हंसते हुए कहा.
वाह दादी, आप भी सपने देखती हो. आप रोज मुझे जंगल वाली कहानी सुनाती हो. आज मुझे आपके सपनों की कहानी सुननी है. जिद करता हुआ रजत अपनी दादी की गोदी में बैठ गया.
बारह साल की थी जब मेरी शादी तेरे दादाजी से हुई थी, उमा देवी जी ने बोलना शुरू किया.
तब रिश्तों की समझ नहीं होती थी, जैसा बड़ों ने कह दिया वही कर लेते थे. तेरे दादाजी ज्यादातर समय काम के सिलसिले में अक्सर बाहर ही रहते थे. स्वेटर बुनना, कढाई, सिलाई, पाक कला,आदि सब मैने अपने ससुराल आकर ही सीखा था. फिर एक दिन तेरे दादाजी मुझे अपने साथ शहर ले आए. किराए के एक छोटे से घर में ही मैंने अपना सपनों का पूरा संसार बसा लिया था. जब तेरे पिता का जन्म हुआ उस समय मेरी उम्र सोलह साल की थी. दादाजी के कम वेतन और शहर के महंगे खर्चे उठाने के लिए मैने भी लड़कियों को सिलाई ,बुनाई आदि की शिक्षा देना शुरू कर दिया पर तेरे पिता के सपने पूरे करने में तेरे दादाजी और मैंने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी.
बस एक ख्वाब था, जो तेरे दादाजी के जाने से हमारा अधूरा रह गया वो था इस शहर में अपना खुद का आशियाना होने का, अब तो वो ख्वाब भी वक्त के साथ पीछे ही रह गया,,,
तभी अचानक कदमों की आहट से उमा देवी बोलते-बोलते रुक गईं।
मां आप अभी तक जाग रही हो? कम से कम रजत को तो ठीक से सुला लिया होता, आपकी गोदी में ही सो गया है
बेटा मुझे ध्यान नहीं रहा, ये कब सो गया। तुम लोग पार्टी से जल्दी आ जाया करो, मुझे अकेले इस बड़े बंगले में डर लगता है, मन में एक अजीब बेचैनी रहती है।
मुझे थोड़े दिन के लिए किसी तीर्थ पर भेज दें, शायद थोड़ा जी अच्छा हो जाए
तुम दोनों मां बेटे को उस छोटे से किराए के घर से इतने बड़े बंगले में मैं तीर्थयात्रा पर भेजने के लिए नहीं लाई हूं,,,
रजत अभी बहुत छोटा है, उसकी देखभाल कौन करेगा? रजनी गुस्से में राकेश का हाथ पकड़ कर कमरे में खींचते हुए ले गई।
शायद तुम सही कह रहे हो, मुझे अभी रजत की देखभाल करनी चाहिए पर मेरे तो अब कुछ दिन शेष हैं, बहुत जल्दी ही तुम दोनों के भी यही दिन आयेंगे। उमादेवी जी ने मन ही मन सोचा और कम्बल ओढ़ का फिर से अपने सपनों की एक नई दुनिया में खो गईं।
आज कल के बच्चे अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपने मां बाप के सपनों को कुचल देते हैं पर वह यह भूल जाते हैं, आज वो जो वक्त उनका है,,,उनके पास जो कुछ भी है सिर्फ और सिर्फ उनके त्याग और बलिदान की वजह से हैं पर वक्त अपने चक्र की भांति चलता ही जाता है,जो इंसान बोता है एक न एक दिन वापस उसके पास लौट कर जरूर आता है।
दोस्तों, आपको मेरी यह रचना कैसी लगी? कृपया अपनी राय मुझे कॉमेंट बॉक्स में जरूर दीजियेगा,।
#वक्त
स्वरचित
वर्षा गुप्ता