…”तू यह कंबल झोले में डाल… मैं अभी आया… उस चौक पर कोई फिर कंबल बांटने आया है…!”
” जल्दी जाओ बाबा…!”
” हां… तू यहीं बैठी रहना… मैं अभी आया…!”
लगभग घंटे भर में बैसाखी टेकता वह लौट आया… हाथ में एक कंबल गोल कर… अपनी फटी कंबल में घुसाए हुए था…
” वाह… मिल गई…!”
” हां… ले… इसे भी उस झोले में घुसा दे… आज के मिलाकर पूरे पांच हो गए…!”
” अब चलें…!”
“हां आज का हो गया…!”
दोनों अपने-अपने कंधे का झोला संभाल कर… झुग्गियों के झुंड में घुस गए…
रात के सन्नाटे में… चार-पांच भिखारी… कुछ सूखी पत्तियों की आग सुलगा कर… उसके चारों तरफ चुपचाप बैठे हुए थे… सभी के शरीर पर फटे पुराने कपड़े जतन से लिपटे हुए थे… ऊपर से सालों पुराना कंबल…
एक बोला…” इस साल तो सर्दी का जोड़ है… लगता है खूब माल कमाएंगे…!”
” वह तो ठीक है… पर तेरा कंबल तो बुरी तरह फट गया है… एक नया कंबल ओढ़ता क्यों नहीं…!”
” पागल है क्या…( दांत निकाल कर हंसते हुए बोला) नया कंबल ओढ़ूंगा… तो कौन देगा फिर…!”
” हां वो तो है…!”
” कितना मिल जाएगा.…!”
” पिछले साल तो कुल चार ही हुए थे… उसमें दो महीने का खर्चा निकल गया था…!”
” तुम क्या करोगे मंगू…?”
‘ इस बार सोचा है… लड़की का ब्याह करूंगा… अगर कुछ दिन और मौसम ने साथ दिया… तो दस कंबल में तो लगता है आराम से निपट जाऊंगा… पांच तो हो गया… दो-चार दिन में और देखता हूं…!”
” हां… ठंड में बड़े दिल वालों की कमी थोड़े है… इससे उनका क्या घट जाता है…!”
” कहीं राजा महाराजा करोगे क्या…(एक भिखारी हंसते हुए बोला)…!
“मेरी पुरानी पहचान वाले हैं… वो लोग भीख नहीं मांगते… काम करते हैं… अगर वहां ब्याह हो गई तो भीख नहीं मांगेगी मेरी तरह… कहीं कोई काम सिखा देगा…!”
एक कांखते हुए बोला…” ए मंगुआ ज्यादा दिमाग मत लगा… एक भिखारी की बेटी है… हममें ही जाएगी… फालतू कंबल बर्बाद मत कर… पैसे से कुछ दिन अच्छा खा पी ले…!”
मंगू चिढ़ गया… वहां से उठकर अपनी बैसाखी टेकता झोपड़ी में चला गया…
टाट के तीन टुकड़ों पर टिकी… एक प्लास्टिक की सीट के अंदर… उसकी दुनिया… उसकी प्यारी बेटी… उसकी आंखों का तारा… चंदा सो रही थी…
मंगू के जाने के बाद एक बोला…
” देखो तो ऐंठ कर चला गया…!”
उनमें एक बूढ़ा भिखारी भी था… वह बोला…
” तुम लोग क्या जानो… वह जन्म से भिखारी नहीं है ना… अभी दस साल पहले तक मजदूरी करता था… वह और उसकी बीवी दोनों मिलकर कमाते थे… चंदा को पांचवी तक पढ़ाया भी है उसने…
एक एक्सीडेंट में पत्नी और टांगे दोनों खोकर… भीख मांगने को मजबूर हो गया… अब नहीं चाहता की बेटी भीख मांगे… तो इसमें उसकी क्या गलती…!”
सब चुप हो गए… एक बोला…” क्यों ना हम भी उसकी मदद करें… लड़की अगर कमाने वाले के घर चली गई… तो सच में बेचारी भिखारण की जिंदगी से तो निकल जाएगी…!”
सब ने एक दूसरे को देख मौन स्वीकृति दे दी…
मंगू और दो कंबल ही जोड़ पाया… सभी अपने पहचान के ठेके पर कंबल बेचने गए… बहुत मोल भाव कर सात कंबल का 3000 पाकर… मंगू बहुत खुश तो नहीं था… पर आंखों में एक चमक जरूर थी… की बात आगे बढ़ सकती है…
तभी उसके बाकी के साथी… अपना अपना कंबल बेच… हजार हजार रुपया उसकी तरफ बढ़ा दिए… मंगू आश्चर्य से उनकी तरफ देख रहा था…
बूढ़ा भिखारी बोला…” ले मंगू… इन्हें मिलाकर तेरे पास दस हजार हो जाएंगे… इतने में बेटी को अच्छे से विदा कर…!”
मंगू को भरोसा नहीं हो रहा था… पर यह सच था… उसकी आंखें छलक पड़ी…
गरीबों से बड़ा दिल आखिर किसका होता है… जो अपनी पूरी कमाई किसी को देने से पहले… उतना नहीं सोचते… जितना… हम अपनी कमाई का सौवां हिस्सा देने से पहले सोचते हैं…
रश्मि झा मिश्रा
VM