बड़ा भाई पिता जैसा ही होता है। – गीतांजलि गुप्ता

“ओ छोरे ठीक से काम कर वर्ना निकाल दूंगा नौकरी से। आलसी कहीं का जल्दी जल्दी हाथ चला कर टेबलें साफ़ कर फिर बर्तन भी धो पोंछ कर लगा सारे।” रोज डयूटी पर आते ही नवीन लाल की यही आवाज़ चौदह वर्ष के कांशी के कानों को चीरती और बेचारा भूखा बच्चा जल्दी जल्दी काम निपटाने लगता।

कांशी का बाप कच्ची शराब पी कर दो साल पहले संसार से विदा हो गया था। काशी की माँ, चार बच्चों के साथ दुनिया में बेसहारा रह गई। कांशी ने छोटे से होटल में काम पकड़ लिया और माँ ने घरों में चौके बर्तन का काम शुरू कर दिया। वैसे तो कांशी का बाप एक फैक्टरी में काम करता था और अच्छे खासे गुजारे लायक पैसा कमा लेता था पर शराब की बुरी आदत के कारण मौत का शिकार हो गया।

नवीन लाल खास अच्छा आदमी नहीं था। कांशी को लताडता ही रहता। राजू भी नवीन लाल की इस आदत से परेशान था पर राजू भी कांशी की तरह मजबूर था। दोनों में दोस्ती हो गई यह बात भी नवीन लाल को पसंद नहीं थीं।

कांशी  दस बीस रुपये पगार के अलावा बख्शीश में कमा लेता ग्राहकों के साथ अच्छा व्यवहार जो करता था। छोटी बहनें घर पर रहती थी। स्कूल भी नहीं जा पाती थीं। जैसे तैसे गुजारा चल रहा था अपनी बहनों को वह कभी किसे के घर काम पर नहीं जाने देता माँ तो कोशिश करती परन्तु कांशी माँ को माना कर देता।

एक दिन कांशी के हाथ से भारी पेटी गिर पड़ी और लाला ने जो कांच के नए बर्तन मंगाए थे चकना चूर हो गए। छोटा सा बच्चा सीढ़ी पर चढ़ रहा था पेटी लेकर ये उम्र थी क्या इतना वज़न उठाने की। पैर फिसल गया और धड़ाम से गिर पड़ा वो तो भगवान का शुक्र है कि पैर नहीं टूटा।

नवीन लाल का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। ख़ूब गरजा और कांशी को काम से निकाल दिया। काशी के रोने और गिड़गिड़ाने का उस पर कोई असर नहीं पड़ा। काशी को जो दो हजार मिलते थे वह भी गए और नौकरी भी।

कई दिनों तक कांशी मारा मारा फिरता रहा नई नौकरी नहीं ढूंढ पाया। घर में पैसे की किल्लत पहले से ही थी। दस पंद्रह दिन रोज की मजदूरी करके सौ पचास काम लेता कभी दिहाड़ी काम मिलता कभी नहीं मिलता। दाल चावल भी पूरे नहीं पड़ते खाने वाले पांच और कमाने वाली बस माँ ही थी।

चार दिन बाद कांशी को नवीन लाल रास्ते पर मिल गये। कांशी को दुकान पर आने को बोला। कांशी ने माँ को बताया पूछा कि दुबारा उस सेठ की दुकान पर जाना चाहिये या नहीं। माँ के कहने पर कांशी नवीन लाल की दुकान पर पहुंचा।

लाला जानता था कि कांशी की एक बहन कांशी से साल भर छोटी ही है। सेठ ने शर्त रखी कि कल से तू और तेरी बहन साथ में काम करने आओ तो दोनों को नौकरी दे दूंगा। अकेले तेरे से सारा काम हो नहीं पाता।

कांशी जानता था कि सेठ सारा दिन  मोबाइल पर बुरी बुरी वीडियो देखता रहता था। कांशी को न जाने क्यों लाला की इस दरियादिल पर शक हो आया और वो वापस घर चला गया। सेठ की बदनीयती बहन का नाम लेते ही कांशी समझ गया। वह अपने बड़े भाई के फर्ज को जनता था। सेठ की चाल कामयाब नहीं हो पाई। कांशी ने सारी बात माँ को बताई माँ की आंखों में पानी आ गया उसे लगा जैसे कांशी ही तीनों बेटियों का पिता सा रखवाला है। कांशी फिर से नौकरी की तलाश में घूमने लगा।

गीतांजलि गुप्ता

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