“बाबुल की दुआऐं लेता जा – कुमुद मोहन 

“सुनो सुनो राधा कहां हो भाई! कहते हुए महेश जी घर में घुसे” “क्यों चिल्ला रहे हो” पीछे से घर में घुसते हुए ताला खोलती राधा ने कहा! “कहां निकल गई थी?तुम्हें पता है ना कि मैं घर आऊं तो तुम मुझे घर में मिलनी चाहिए ,मुझे ये घर में ताला नहीं तुम चाहिए “!बताओ कहां गई थी? राधा- “गुस्सा क्यों हो रहे हो ,बराबर वाली रमा जी ने बुलाया था उनके मेहमान आने वाले हैं थोड़ा-बहुत रसोई में काम करवाने को!कह रही थी खाली बैठे घर में क्या करती रहती हो बच्चों और महेश के जाने के बाद जरा बहुत हाथ बटा दिया करो!चार पैसे ही आऐंगे!उन्होंने दो घंटे के दो सौ रुपए भी दिये!देखो?” महेश जी गुस्से से तमतमाऐ और रूपये उठाकर पटक दिये, बोले अब ये दिन दिखाओगी कि दूसरों के घर काम करके पैसे कमाने निकलोगी!माना मेरी तनख्वाह कुल दस हजार ही है पर जैसे तैसे गुजारा तो हो ही रहा है बच्चे भी पढ़ाई कर ही रहे हैं!घर दो कमरे का ही सही सर पर छत तो है,भगवानने चाहा तो अपना न सही सौम्य का तो कभी घर होगा ही ना! खबरदार जो मेरे जीते जी किसी के आगे हाथ फैलाने या घरों में काम करने की सोची भी!मैं अभी जिन्दा हूं हाथ पैर भी सही सलामत हैं तुम लोगों का बोझ उठा सकता हूं!जरूरत पड़ी तो ओवरटाइम मैं करूंगा

पर तुम्हे किसी के घर काम करने की इजाज़त कभी नहीं दूंगा!समझी!” अपने सीमित संसाधनों के होते हुए भी महेश जी राधा और बच्चों की हर फरमाइश पूरी करने का प्रयत्न करते! ऑफिस से लौटकर वे यथासंभव सुधा का घर के कामों में हाथ बंटाते! सुधा कभी मना भी करती कि औरतों वाले काम न किया करें तो वे सुधा पर लाड़ उड़ेलते हुए जवाब देते कि सुधा का ख्याल रखना और उसे आराम देना उन्हें अच्छा लगता है इसी बहाने से उनकी ऐक्सरसाइज़ भी हो जाती है वे चुस्त-दुरूस्त रहते हैं! राधा उनके प्यार और परवाह को समझ रही थी! वैसे दोनों पति पत्नी अपनी सीमित और छोटी सी गृहस्थी में खुश और संतुष्ट थे! बेटा सौम्य इंजिनियरिंग के दूसरे साल में और बेटी सुमन दसवीं में पढ़ रहे थे! दोनो बच्चे सिर्फ पढ़ाई से मतलब रखते!उन्हें इस बात का पूरा अहसास था

कि उनके पिता कितनी परेशानी उठाकर उन्हें पढ़ा-लिखा रहे हैं !अपने पिता की तरह वे भी स्वाभिमानी निकले!अपने आत्मसम्मान से समझौता किसी कीमत पर करना गवारा नहीं था! सुधा और महेश जी का बस एक ही सपना था किसी तरह सौम्य इंजीनियर बन जाए तभी उनकी तपस्या सफल होगी!जो मकाम वे अपनी जिंन्दगी में हासिल नहीं कर पाए थे वह सौम्य पा ले! सौम्य के इम्तिहान होते तो वे अपने लिए कटौती करके उसके लिए दूध,फल की व्यव्स्था करते!रात में सौम्य जबतक पढ़ाई करता महेश जी भी उसके पास को किताब या गीता लेकर बैठ जाते यह सोचकर कि सबके सो जाने पर कहीं सौम्य को भी नींद न आ जाए! सुधा कभी कहती भी कि वो सौम्य के पास बैठकर बुनाई कर लेगी पर महेश जी उसे चुप करा देते कि वह दिनभर घर के काम में जुटी रहती है उसे रात में आराम की जरूरत है!सुधा के कहने पर कि आप भी तो दिन रात खटते हो आपको भी आराम की जरूरत है तो वे हंसकर कहते बस!सौम्य नौकरी पर लग जाए उसके बाद मैं रिटायर्मेंट लेकर आराम करूंगा!अपने बेटे के राज में मुझे काम की जरूरत ही कहां रहेगी!और सबके चेहरे खुशी से चमक उठते!




दोनों अक्सर कहा करते जब सौम्य इंजीनियर हो जाऐगा तो उसके पास अपना घर होगा ,अपनी गाड़ी होगी!सुधा छोटे बच्चे की तरह आँखों मे चमक भर कहती “मेरे बेटे की गाड़ी में सबसे पहले मैं बैठूंगी वो भी आगे की सीट पर” !महेश जी उसे चिढ़ाते हुए कहते “देख लेना मेरा बेटा पहले मुझे ही आगे बैठाऐगा अपनी कार में,तुम पीछे बैठना”! ऐसी छोटी छोटी खट्टी मीठी नोकझोंक से दोनों अपनी छोटी सी दुनिया में मस्त ,बेफिक्र रहते! पर शायद किस्मत को उनकी ये छोटी सी खुशियां भी रास नहीं आई!

एक शाम महेश जी को दफ़्तर से जल्दी आया देख राधा ने घबराकर पूछा”क्या हुआ?ठीक तो हो और जब तक राधा कुछ कहती सुनती महेश जी ने सुधा के हाथ ऐसे कसकर पकड़कर आर्त और दयनीय, असहाय नजरों से देखा और देखते देखते वे उन तीनों को बेसहारा छोड़कर इस दुनिया से जा चुके थे! उन्हें जबरदस्त हार्ट अटैक हुआ था!अस्पताल तक ले जाने का टाइम भी नहीं दिया! सुधा तो हक्की बक्की सी बस अपने हाथों से फिसलती अपनी दुनिया देखती रह गई! उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था जो शख़्स उसके जरा बहुत आँख से ओझल होने पर पूरा घर छान मारता था वो बिना कुछ कहे सुने ऐसे उसे अकेला छोड़कर कैसे चला गया! सुधा की आँख के आंसू सूख गए! उसका जी चाह रहा था चिल्लाकर दहाड़ मार कर रोए पर बच्चों पर क्या बीतेगी सोचकर दोनों को छाती से लगाकर बैठी रही!

एक आदमी के जाते ही तीन तीन लोगों की ज़िन्दगी ही जैसे पलट गई! महेश जी उनके छोटे से आशियाने की सबसे मज़बूत दीवार से!दीवार ढही तो घर कहां बचेगा! महेश जी के दोनों भाई दूसरे शहर में रहते थे उनका कारोबार अच्छा था!तीसरा भाई कितनी तंगी में गुजारा कर रहा था इससे उन्हें कोई लेना देना नहीं था!अलबत्ता खानदान में किसी के शादी-ब्याह में सुधा की जेठानियां अपने गहने कपड़ों की नुमाईश कर सुधा को नीचा दिखाने की कोशिश करती!सुधा तब भी चेहरे पर शिकन न लाती! जब अपने ही पराऐ हों तो बाहर वालों से कैसी उम्मीद?यही सोचकर सुधा ने मन को समझा लिया! महेश जी की तेरहवीं के बाद उनके बड़े भाई बोले “सौम्य की पढ़ाई तो अब पूरी होने से रही, महेश की पेंशन जो सुधा को मिलेगी उसमें जैसे तैसे घर का खर्च ही निकल सकेगा समझो!मेरी बात मानो तो इसे मेरे साथ भेज दो वहाँ इसे चार पांच हज़ार पर किसी गल्ले की दुकान पर लगवा दूंगा”मेरे घर का थोड़ा-बहुत काम कर लेगा खाना पीना खा लिया करेगा”।




छोटा भाई बोला सुमन को भी पढ़ा लिखाकर क्या करोगी ?महेश होता तो और बात थी अब इसे भी कहीं छोटे मोटे काम पर भेज दो,तुम तो कहीं बाहर निकल कर जाओगी नहीं” जेठ और देवर दोनों की बात सुनकर सुधा धक् से रह गई! महेश के जाते ही इन लोगों ने मेरे बच्चों के लिए ऐसी घटिया बातें सोच ली उसे बहुत दुख हुआ! अपने गुस्से पर काबू रखकर संयम से उसने दोनों को कह दिया वह सोचकर बताऐगी! सब खानापूरी का दिखावा कर वापस चले गए! पूरी रात सुधा यादों के भंवर में डूबती उतराती रही!आंख बंद करती तो महेश जी का चेहरा उसके सामने आ जाता जो कभी उसे दुलराता कभी ढांढस बंधाता! सुधा सोच सोचकर परेशान थी महेश जी के बिना वह क्या करेगी,कैसे बच्चों को पालेगी,कैसे सौम्य को इंजीनियर बनाने का महेश जी का सपना साकार करेगी? इस दुख की घड़ी में जब अपने सब पराऐ हो गए थे तब पडोसिन रमा ने सुधा को सहारा दिया! महेश जी के दफ़्तर के लोगों ने सुधा के हिस्से की महेश जी की पेंशन के कागजात बनवा दिये!पर पेंशन इतनी कम थी कि गुजारा होना बहुत मुश्किल था! महेश जी के जाने के महीने भर बाद रमा जी ने देखा सुधा के घर का खर्च बहुत मुश्किल से चल रहा है!तीनों जने कितनी भी कटौती करते पूरा नहीं पड़ रहा था!

एक दिन रमाजी ने डरते डरते सुधा से कहा”मैं जानती हं महेश भैया को तुम्हारा बाहर काम करना बिल्कुल पसंद नहीं था!पर हालात की विवशता देखते हुए अगर तुम चाहो तो मेरी एक जानने वाली को घर में खाना बनाने वाली की जरूरत है!पगार बहुत अच्छी है महीने के पांच हजार! तुम बच्चों के जाने के बाद दस बजे चली जाया करना!तीन बजे लौट आना !बच्चों को पता भी नहीं चलेगा! सुधा मन के झंझावात में डूबी बहुत सोचती रही!उसकी रात की नींद और दिन का चैन उड़ गया! वह बार-बार महेश जी की फोटो के आगे खड़ी हो उनसे रो रो कर बाहर काम करने की इजाज़त मांगती रही! दिल दिमाग के बीच ऊहापोह चलता रहा!

सुबह जब रमा जी ने फिर काम की बात पूछी तो सुधा ने बहुत सोचकर हां कर दी!बच्चों के जाते ही रमा ने अपने साथ सुधा को अपने साथ शीला जी की कोठी पर ले जाकर उनसे मिला दिया! शीला जी थोड़ी कड़क स्वभाव की लगी पर सुधा को काम की बहुत जरूरत थी इसलिए वह तैयार हो गई यह सोचकर कि उसे तो अपने काम से काम रखना है,वह निभा लेगी! सुधा बच्चों का खाना बना,घर का काम कर निकल लेती और उनके आने से पहले लौट आती!महेश जी के जाने के दर्द को अपने में समेटे सुधा जैसे मशीन बन गई थी! सौम्य के अधिकांश दोस्त पैसे वाले थे!सौम्य उनके घर जाते कतराता था क्योंकि वहां जाकर उसे तुच्छता का एहसास होता था!एक-आध बार वह समीर के घर गया तो उसके घर की भव्यता देख वापस आकर उसका दिमाग अपनी गरीबी को कोसता और पढ़ाई से मन उचाट हो जाता! एक दिन समीर अपने घर से खाना लाया उसने सौम्य को भी खिलाया!एक कौर खाते ही सौम्य के मुँह से निकला खाने का स्वाद मेरी मां के बनाए खाने जैसा है!तब समीर ने कहा “कुछ दिन पहले हमारी नयी कुक आई है ऐसा लाजवाब खाना बनाती हैं क्या बताऊं?” सौम्य ने ध्यान नहीं दिया! अगले दिन समीर सौम्य को अपनी बर्थ डे मनाने अपने घर ले गया!सौम्य का मन तो नहीं था पर वह समीर को मना नहीं कर पाया! घर के दरवाजे पर पहुंचते ही उसने देखा दूसरे कमरे से समीर की मां शीला की गुस्से से चिल्लाती आवाज आ रही थी”हमारा इतना महंगा पाॅट तोड़कर रख दिया ,अंधी हो क्या ?काम करने में मन नहीं बस पैसा चाहिए! कितनी बार कहा है अपनी परेशानियाँ अपने घर छोड़कर आया करो!अब इसकी भरपाई कौन करेगा?तुम्हारे महीने भर की पगार से भी नुकसान पूरा नहीं होगा” हवा से जरा पर्दा हटा तो सौम्य ने देखा उसकी मां सुधा थर थर काँपती हाथ जोड़े शीला जी के आगे गिड़गिड़ा रही थी!




मां की ऐसी हालत देख सौम्य की मुट्ठियां गुस्से से बंध गई! उसे एकदम ध्यान आ गया समीर का लाया खाना मेरी मां के ही हाथ का था!मेरी मां और समीर की नयी कुक उसकी नौकरानी? एक बार तो उसने सोचा मां को हाथ पकड़कर ले जाए! पर दूसरे पल उसे ध्यान आया मां बेटे के सामने शर्मिन्दा हो जाऐगी! इससे पहले कि वह वहीं बेहोश होकर गिर जाए सौम्य भागता हुआ हांफते हांफते सीधा घर पहुंचा और घर में पडे ताले के आगे बैठकर रोते रोते सोचता रहा कि उसके पिता ने मां को कितने सम्मान से रखा आज सौम्य को पढ़ाने के लिए उसकी मां को लोगों की गालियां सुननी पड़ रही हैं! उसका मन स्वयं को बार-बार धिक्कार रहा था! थोड़ी देर बाद सुधा घर लौटी!सौम्य ने कुछ नहीं पूछा!अंदर आकर सौम्य मां की गोद में सर रखकर लेट गया! उसने कहा वह आगे नहीं पढ़ेगा!

सुधा के बार-बार पूछने पर अपनी कसम देने पर सौम्य ने पूरी बात बताई! सौम्य ने कह दिया अब सुधा घर से बाहर पैर नहीं रखेगी,सौम्य अपने पापा की आत्मा को कभी दुखी नहीं होने देगा! सौम्य सुबह सुबह सौ घरों में अखबार की डिलेवरी करेगा और शाम को एक दफ़्तर में काम! वह अपना खर्च खुद उठाएगा पर मां को किसी के घर काम नहीं करने देगा!मां बेटा दोनों दर्द के समन्दर में घंटों डूबते उतराते रहे! दो बरस जैसे तैसे बीत गए! सौम्य की मेहनत और उसकी लगन काम आई!उसने अपने कॉलेज में टॉप किया!कैम्पस इंटरव्यू में उसे बहुत बड़ी कंपनी से जाॅब का ऑफर मिला!उसकी कंपनी विदेश की थी जो भाग्यवश उसी के शहर में अपना ऑफिस खोल रही थी!उन्होंने सौम्य को उसका इंचार्ज बना कर तैनाती दी!उसका नया ऑफिस नयी कार भी! सौम्य के ऑफिस का इनॉगरेशन था सौम्य अपनी कार लेकर आया सुधा को तैयार कर उसने आगे का दरवाजा खोल सुधा को बैठने को कहा!सुधा”एक मिनट रूको “कहकर घर के अंदर गई और उसने महेश जी की फोटो लाकर आगे की सीट पर रख दी और खुद पीछे बैठ गई! “आज तेरे पापा का सपना पूरा हुआ सबसे पहला हक उनका है, बेटे के राज का सुख तो भोग नहीं सके!पर वो आज ऊपर से देख कर बहुत खुश होंगे आशीर्वाद दे रहे होंगे” ऑफिस पहुंच कर सौम्य ने सहारा देकर सुधा जी को उतारा! वहाँ शहर की नामी गिरामी हस्तियाँ मौजूद थीं!सबका ख्याल था कि सौम्य ऑफिस का उद्घाटन कोई मंत्री या बड़ा अफसर करेगा!पर लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब सौम्य ने सुधाजी के हाथ कैंची पकड़ा कर फीता काटने को कहा! अंदर जाने पर सुधा ने देखा ऑफिस की कुर्सी के पीछे महेश जी की आदमकद तस्वीर लगी थी!सौम्य ने मां को हाथ पकड़कर अपनी कुर्सी पर बैठाया सबको बताया कैसे उसके मां-बाप के त्याग और तपस्या से वह यहां तक पहुंचा है!तालियों की गड़गड़ाहट से वातावरण गूंज उठा!
कुमुद मोहन
#दर्द

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