औरत की जीवन व्यथा – अनुपमा

इस चित्र के माध्यम से मैं आपको एक स्त्री होना क्या होता है कुछ शब्दों के माध्यम से बतलाना चाहती हू ,जो भी मैं लिखूंगी और जो औरतें महसूस करती है या यूं कहे की अपने जीवनकाल में वो सबकुछ भोगती है क्योंकि वो एक स्त्री है , शब्दों मैं शायद कुछ कमी रह जाए पर कोशिश करूंगी आप वो एहसास को महसूस ज़रूर कर पाए । 

मैं शुरू से शुरू करती हूं जब एक स्त्री स्त्री होती भी नही है ।

एक लड़की का गर्भवती होना जिसमे उसे पता भी नही है की उसकी कोख मैं लड़का है या लड़की हालांकि लड़का या लड़की होने मैं उसका कोई योगदान भी नही है फिर भी ।

साजिशे देखती है वो भ्रूण मैं से ही की कितने लोग चाहते ही नही वो जन्म ले , और सामना करती है उस भय का की कहीं लोग उसके पैदा होने से पहले ही उसे मार ना दे और उसको कोई नही चाहता इस एहसास का ।

स्त्री रूप मैं पैदा होने पर जिस प्रकार उसको उसके होने के लिए त्रिस्कृत किया जाता है , उसको एहसास कराया जाता है की वो लड़की है और वो है ही क्यों , कोई भी नही चाहता है की वो हो , और वो अगर है भी तो उसे अधिकारों से वंचित रखा जाता है , उसे बाहर जाने से , पढ़ने से , अपने मन का खाने पहनने से , घर के काम करने के लिए हर चीज को उस पर थोपा जाता है सिर्फ इसलिए क्योंकि वो लड़की है । हर पल उसको जताया जाता है की ये समाज पुरषों का है और स्त्री यहां हर रूप मैं कमतर है । 

इतना तो ठीक था पर एक स्त्री होने की वजह से वो जिस दैहिक शोषण से गुजरती है अपनी जिंदगी मैं हर पल , बलात्कार सिर्फ किसी की इज्जत लूटने को ही नही कहते मेरी नजरों मैं , बलात्कार तो स्त्री का हर पल समाज कर रहा होता है अपनी नजरों से ।



बच्ची रूप मैं ही जब कोई उसे खिलाने को उठाता है तो जाने कोनसा चाचा , मामा , पड़ोसी , रिश्तेदार , नौकर , जान पहचान वाला या कोई चचेरा भाई अपनी दैहिक ज्वाला की पूर्ति करता है उसे सिर्फ महसूस करके , दिन भर मैं जाने कितने लोगो की नजरों से एक स्त्री रूपी बच्ची जब निकलती है जाने किसकी नजर मैं वो सिर्फ एक स्त्री शरीर है , और जाने पुरषों को भी कैसी लालसा है जो देखकर छू कर ही उनकी इंद्रिय उत्तेजित हो जाती है और सारे नियम संस्कार की बलि चढ़ जाती है , जानते ही होगे आप सभी ,गलत तरीके से छुए जाने का अनुभव एक बच्ची/स्त्री/लड़की अपने आसपास के लोगो द्वारा ही करती है ,यकीन नही तो आंकड़े देख लीजिए ।

संघर्ष तो उसका गर्भ मैं ही शुरू हो गया था फिर भी स्त्री जीवन हर पल संघर्ष है , साबित करना होता है खुद को हर रिश्ते मैं , परीक्षाएं देनी पड़ती है हर पल , ओर फिर भी कभी भी सम्मान नही पा पाती , लोग कहने को तो कह देंगे की सम्मान करते है पर हसीं आती है ये सुनकर की आखिर सम्मान की परिभाषा है क्या , जब भी बात भी करते है तो बिना गाली के आधे से ज्यादा हिंदुस्तान बात नही करता और गाली किसकी ? सारी स्त्री जाति पर ,एक गाली भी मर्द की नही बना पाए ? इसको कहते हो सम्मान ,कितना ढकोसला है। 

स्त्री उम्र के किसी भी पड़ाव पर हो पर हर पड़ाव पर वो बिना किसी लाग लपेट के एक काम की तो होती ही है उपभोग के , है ना ? 

आज 13 जून के अखबार मैं ही निकला है एक वृद्धा के साथ किया तीन लोगो ने बलात्कार !

पत्नी बन कर मां बन कर वो ही त्याग करे , वो ही जिम्मेदारी निभाएं ,और अगर बच्चे कुछ गलत कर दे तो जिम्मेदारी सारी मां की , पति खराब है तो स्त्री मैं गुण नहीं होंगे की वो पति को वश मैं रख पाए , पति के सौ गुनाह भी माफ होते है और स्त्री को हर पल अंगार पर चल कर खुद को पवित्र साबित करना होता है , स्त्री अगर बदचलन है तो बदचलनी के लिए भी उसे पुरुष ही लगता है जनाब तो दोषी सिर्फ स्त्री क्यों ?



शहर की गंदी गलियों मैं स्त्री इंतजार करती है ग्राहक का जिससे उसका पेट भर सके पर जाते तो इज्जतदार पुरुष ही है वहां भी ,वो दोषी क्यों नही होते ।

अपने पैदा होने से अपनी मृत्यु तक जो एक दैहिक शोषण की नजर होती है वो लेकर चलती है स्त्री जिंदगी भर उसका  दोषी कौन होता है  ।

पति को सुखी रखने का दायित्व निभाना है हमे स्त्री होना क्या होता है ये दूसरों से पहले खुद को भी समझाना है  ,कल ही कुछ कमेंट्स पढ़े थे समूह मैं मैने स्त्री को सब निभाना पड़ता है इत्यादि जब मन न हो तो आपको तब भी आप खाना खाते हो क्या ? फिर पति को खुश रखने को सबकुछ करने की भावना आती कहां से है ? क्यों जब आपका या दोनो का मन हो तभी एकदुस्रे को खुश करे सिर्फ एक की संतुष्टि के लिए दूसरा भी शामिल हो ये किस हिसाब से सही होता है ।

पर स्त्री को तो यही समझा पढ़ा कर बढ़ा किया गया है की स्त्री होना सिर्फ पुरुष की आवश्यकता की पूर्ति करना है । 

लिखने को तो बहुत कुछ है पर कितना तो लिखा गया है और मैं भी कितना ही लिख लूंगी , पर होगा क्या उससे ?

कुछ लोग कहेंगे अब समय बदल रहा है , हां सच है पर मैं नही मानती की स्त्री की स्तिथि कहीं भी बदली है जब समाचारों मैं खबर पढ़ते है बड़े बड़े मशहूर लोग जो स्त्री जाति का प्रतिनिधित्व कर रहे है उनके पिटने की ओर फिर दूसरी तीसरी शादी मैं भी वही स्तिथि …

फिर आम घरों की तो बात ही क्या है और जहां कुछ बदल भी रहा है ,उसके मुकाबले बहुत कम है जहां हो रहा है तो आप क्या कहेंगे ?

ये चित्र है जिसमे देख / महसूस कर पाए अगर आप की औरत होना क्या है , कितने निशान है आत्मा पर उसकी , चीखना चाहती है वो अंदर से पर नही, वो रहती है आपके साथ आपकी मां ,बहन , पत्नी , बेटी , दोस्त बनकर और निभाती है हर रिश्ता दिल से खुद जख्मी होकर भी ।

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