औलाद का सुख – पुष्पा जोशी

औलाद का सुख क्या होता है? ये गिरिराज बाबू से बेहतर और कौन जान सकता है. १०१ वर्ष की आयु पूरी कर वे अनन्त में विलीन हो गए. जाते समय उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं  थी, एक शांति का भाव था. होटो पर मुस्कान और ऑंखों में चमक लिए वे इस दुनियाँ से चले गए. पॉंच औलाद थी उनकी चार बेटियॉं और एक बेटा जो सबसे छोटा था.वे बच्चों से कहते थे, ‘तुम पॉंचो मेरे हाथ की उंगलियों के समान हो, एक मुट्ठी की तरह मेरी ताकत हो, हमेशा प्रेम से रहना.’

आज उनकी तेरहवीं का कार्यक्रम शांति से निपट गया, मेहमान सब जा चुके थे.घर में बस जानकी जी और उनके  पॉंच बच्चे रह गए थे.ये सब बाद के फैले हुए कार्यो को समेटने में लगे थे, और जानकी जी चुपचाप गुमसुम बैठी, अपने बीते दिन याद कर रही थी.उनके मन में अपनी की हुई गलती का पश्चाताप भी था, और अपने बेटे के ऊपर गर्व भी था, जिसने उसे पतन के गर्त में डूबने से बचाया.उसे याद आया कि वह किस तरह इन चार बेटियों की मॉं बनकर घर आई थी.मीनू तो उस समय सिर्फ तीन माह की थी.रीना चार साल की, शुभी आठ साल की और सुधा १३ साल की.जानकी गरीब परिवार की लड़की थी, 

संस्कारी थी.माता-पिता ने अच्छा खाता पीता परिवार देख दूजवर  के साथ बेटी ब्याह दी.वह जानती थी कि गिरिराज बाबू दूसरी शादी करना नहीं चाहते थे, मगर उन्हें अपनी मॉं की जिद के आगे झुकना पढ़ा. यह बात जानकी को स्वयं उसकी सासु जी ने बताई थी. उन्होंने जानकी के आगे परिवार को एक वारिस देने की बात भी कही थी. सुभद्रा जी को एक पोते की आस थी और घर में चार कन्या आ गई.उनकी जिद का ही नतीजा था कि रेवा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.डॉक्टर ने  साफ मना कर दिया था कि अब गर्भ धारण करना जानलेवा हो सकता है 




मगर…….मीनू को जन्म देने के बाद उसकी तबियत सम्हली ही नहीं और वह संसार छोड़ कर चली गई.परिवार पर दु:ख का पहाड़ टूट पड़ा. बिन मॉं की बच्चियों को दादी हमेशा कौसती  रहती, चारों बेटियॉं उनके पापा की लाड़ली थी. बच्चियों की परवरिश और मॉं की जिद को पूरा करने के लिए गिरिराज बाबू ने दूसरी शादी की.वे अपनी मॉं का मन कभी नहीं दुखाते थे.जानकी ने भी बच्चियों को मॉं का प्यार दिया.शादी के दो साल बाद उसकी भी गोद हरी हुई और एक बेटे का जन्म हुआ.घर में आनन्द छा गया.उस बेटे का नाम भी आनन्द रखा.चारों बहनों का चहेता आनन्द माता- पिता और दादी की छत्रछाया में पलकर बड़ा हो रहा था, 

दादी का झुकाव आनन्द की ओर था,वो कई बार आनन्द के पीछे बच्चियों को डाट देती, गिरिराज बाबू को बुरा लगता तो सुधा कहती ‘आप परेशान मत हो पापा.आनन्द हम सभी का लाडला है, दादी उसे ज्यादा प्यार करती है तो कोई बात नहीं, वो है ही इतना प्यारा.पूरा परिवार खुशी से रह रहा था.समय के साथ चारों लड़कियों की शादी हो गई. गिरिराज बाबू को पैसो की कमी तो थी नहीं.जमीन जायदाद के मालिक थे, 

अथाह दौलत थी और अच्छी साख थी.धूमधाम से चारों की शादी की और वे सब अपने परिवार में सुखी थी.मॉं का देहांत हो गया.जब तक मॉं थी, जानकी के परिवार के लोगों की कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई, मगर उनके जाने के बाद उन्होंने बेटी को उल्टी पट्टी पढ़ाना शुरू किया, उन्हें डर था कि कहीं गिरिराज बाबू अपनी धन दौलत बेटियों पर ज्यादा खर्च न कर दे.उन्हें बेटियों पर गिरिराज बाबू का पैसा खर्च करना रास नहीं आ रहा था. दौलत देखकर तो उन्होंने जानकी का इस घर में विवाह किया था.

वे जानकी से कहते कि ‘बेटियों की शादी हो गई तेरा फर्ज पूरा हो गया अब गिरिराज बाबू से कहकर उनकी सारी दौलत आनन्द के नाम लिखवा ले.इस तरह बेटियों पर पैसे खर्च करना ठीक नहीं, कुछ अपना और अपने बेटे का भविष्य सोच.’ जानकी ने पहले बहुत बार इस बात का विरोध किया, कहा उसके पॉंचो बच्चे बराबर है, माता-पिता को समझाया भी.मगर जब कोई बार-बार कोई बात कहता है तो न चाहते हुए भी मन में विकृति आ जाती है.राम की प्रिय माता रानी कैकई भी जब मंथरा के सिखाने में आ गई तो जानकी तो एक साधारण स्त्री थी, उसके मन में विकार आ गया, उसने गिरिराज बाबू के सामने हट पकड़ ली कि वो अपनी जायदाद आनन्द के नाम कर दे, उन्होंने बहुत समझाया कि आखिर सबकुछ आनन्द का ही तो है, बेकार लिखा पढ़ी करके बेटियों का मन क्यों दु:खाएं, वे उनके घर में मस्त है, उन्हें कुछ नहीं चाहिए, मगर त्रिया हट के आगे वे परेशान हो गए  रोज-रोज की झक-झक से बचने के लिए उन्होंने वकील को बुलाकर वसीयत बनवाई.जब आनन्द ने घर पर वकील सा.




 को देखा तो पूछा-‘ पापा यह सब क्या है?’तो वे  भारी मन से बोले बेटा मै ९५ साल का हो गया हूँ, पता नहीं कब चला जाऊं, तुम्हारी मॉं चाहती है कि मैं अपनी सम्पत्ति तुम्हारे नाम लिखवा दूं.’ आनन्द ने हंसते हुए कहा-‘ अभी आप कहीं नहीं जाने वाले पापा आपको सेंचुरी मारनी है, और आपने कैसे सोच लिया कि मैं अकेला संपत्ति का मालिक बन जाऊँगा, मेरी बहने मेरी जान है, इस तरह तो आप मुझे उनसे दूर कर देंगे.फिर माँ से बोला ‘माँ आज के बाद इस बारे में कभी बात मत करना, वरना मैं आपसे बहुत दूर चला जाऊंगा.’ उसने वसीयत को फाड़कर फैक दिया.गिरीश बाबू और आनन्द ने वकील सा. से क्षमा मांगी.वे चले गए. बेटियों तक इस बात की भनकार भी नहीं हुई.

जानकी के पास  मन मारकर चुप रहने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.मगर उसके मन में कुछ कड़वाहट भर गई थी, जब भी कोई बहने आती उसका व्यवहार रूखा रहता, बहनें कुछ नहीं कहती मगर आनन्द को यह बात हमेशा अखरती थी, एकदिन उसने उसके पापा से कहा-‘पापा माँ मेरी बहनों के साथ ऐसा व्यवहार करती है मुझे अच्छा नहीं लगता, पहले तो ऐसी नहीं थी, माँ को क्या हो गया है?’ गिरिराज बाबू ने कहा-‘ बेटा समय के साथ सब ठीक हो जाएगा, तुम्हारी माँ मन की खराब नहीं है किसी ने उसकी ऑंख में किरकिरी डाल दी है, जिससे उसे सब गलत नजर आ रहा है’.

समय बलवान है प्रभु पर भरोसा रखो, उससे प्रार्थना करो सब ठीक हो जाएगा.’

आनन्द रोज प्रभु से प्रार्थना करता,प्रभु ने प्रार्थना सुनी.मगर जानकी को समझाने के लिए ऐसा क्रूर तरीका भी हो सकता है किसी ने सोचा भी नहीं था.एक दिन आनन्द और उसके मित्र सौरभ के साथ मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था, सामने से किसी डम्पर ने टक्कर मारी, भयंकर एक्सिडेंट हो गया, सौरभ पीछे बैठा था उसे ज्यादा चोट नहीं आई,उसने आनन्द के घर फोन लगाया और लोगों की मदद से आनन्द को अस्पताल में भर्ती कराया.जानकी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करे, पति की उम्र ९८ साल की हो गई थी अस्पताल की दौड़ धूप उनके बस की बात नहीं थी,

और उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था.उसने अपने व्यवहार से बेटियों से भी दूरी बना ली थी, वह ज्यादा पढ़ी लिखी भी नहीं थी कि कुछ कर सके.वह सोच ही रही थी कि सुधा का फोन आया.मॉं आप घबराना मत मैं और चेतन अस्पताल पहुँच गए है, मुझे सौरभ का फोन आया था.आप पापा का ध्यान रखना.मैंने सबको फोन लगा दिया है.थोड़ी देर में मीनू घर पर आ जाएगी आप और पापा उसके साथ आ जाना.घबराना बिल्कुल नहीं मैं हूँ यहाँ.जानकी के मन को राहत मिली एक घंटे बाद मीनू और राकेश जी आए और उनके साथ जानकी और गिरिराज जी अस्पताल आ गए. 

आनन्द के सिर पर चोट आई थी, बहुत रक्त बह गया था, उसके ग्रुप का रक्त मिल नहीं रहा था, रीना का रक्त मेच कर गया और तुरन्त उसने अपने भाई के लिए रक्त दे दिया.रक्त चढ़ाने से खतरा टल गया था.मगर हालत अभी भी नाजुक थी. वह आई.सी.यू. में भर्ती था. शुभी का ससुराल कुछ दूर था , वह दूसरे दिन सुबह आ पाई पूरे रास्ते भाई के स्वास्थ के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती रही.गिरिराज जी की बेटियों और जमाइयों ने जानकी जी और गिरिराज जी को भी हिम्मत दी.

उन्हें अस्पताल में परेशानी नहीं हो इसलिए उन्हें घर भेजा और वे घबराऐंं नही इसलिए मीनू को उनके साथ भेजा. वे दिन में मीनू के साथ आकर आनन्द को देख जाते.बहिनों का प्यार, विश्वास, प्रार्थना, मॉं की ममता और पिता के आशीष से जैसे आनन्द को नया जीवन मिल गया.अस्पताल से १५  दिन बाद छुट्टी हुई और आनन्द को लेकर घर आऐ. मीनू और सुधा एक महिने तक घर पर रूकी और आनन्द का पूरा ध्यान रखा.जब आनन्द पूरी तरह स्वस्थ हो गया तो वे अपने ससुराल गई उनके जाते समय जानकी उनको सीने से लगाकर बहुत रोई, 

मन का सारा मैल धुल गया था और जो किरकिरी ऑंख में चुभ रही थी निकल गई.जानकी इन खयालों में डूबी थी, उसे ध्यान ही नहीं रहा कि कब उसके पॉंचो बच्चे उसे घेर कर बैठ गए है. 

रीना ने कहा -‘यह क्या माँ, हमने इतना काम किया है,हमें लाड़ नहीं करोगी क्या? शुभी बोली  भूख भी लगी है माँ, भोजन कब दोगी?

जानकी ने अपने ऑंसुओं को पोछा, पॉंचो बच्चों को सीने से लगाया और कहॉ- ‘तुम्हारे बाबा चले गए, वे हमेशा कहते थे ,कि तुम मेरी पॉंच उंगलियाँ हो.मेरी मुट्ठी, मेरी ताकत हो.आज मैं यही  बात तुमसे कह रही हूँ ‘तुम मेरी पॉंच उंगलियाँ हो’….. और फिर पूरा वाक्य सबने संवेत स्वर में पूरा किया ‘मेरी मुट्ठी हो, मेरी ताकत हो.हमेशा प्यार से रहना.’ फिर सबने एक साथ भोजन किया.

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित

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