औलाद –  देखा जो ख्वाब – मोहिनी गुप्ता

“बहू ! अब और इंतज़ार मत करवाओ , कहीं ऐसा न हो कि पोते का मुंह देखे बिना ही इस संसार से चली जाऊं !” एक साल ही हुए थे कशिश और अमन की शादी को मगर कशिश को रोज़ इसी तरह के ताने सुनने को मिलते । 

     कोशिश तो कर रहे हैं ना हम दोनों !  झुंझला उठी थी कशिश खुद पर।

घर वाले तो सभी उसके साथ थे लेकिन जब तक आस – पास वाले दूसरों की ज़िंदगी में तांका झांकी ना करें तो उनका जीना भी क्या जीना? दूसरों को ज्यादा चिंता लगी रहती हैं दुनियां की…. मानों अगर उन्होनें टांग ना अड़ाई तो पता नहीं भूचाल आ जाएगा लोगों की जिंदगी में।

पड़ोस – मोहल्ले में खूब तरह -तरह की बातें होती ,”अरे अमन की मां! बेटे -बहू की शादी को एक साल हो गए ,अब तो दादी बनने की खुशखबरी सुना दो। और हां, शहर के प्रसिद्ध घेवर – लड्डू ज़रूर बंटवाना।”

इतने में दूसरा तैयार रहता कहने को ,”अभी तक बहू के पैर भारी नहीं हुए , शालिनी जी आप किसी अच्छे बाबा को दिखवा लो, एक बार अपनी बहू कशिश को ! वो अपनी संतो हैं ना … दस साल के बाद अब मां बनी हैं बाबा की कृपा से।”

फिर एक दिन भगवान ने खुद कशिश की सुन ली। उसे अचानक से उल्टियां और चक्कर आने लगे तो मां के कहने पर अमन कशिश को एक अच्छे लेडी डॉक्टर के पास दिखाने ले गया।




डॉक्टर ने कशिश का चेकअप किया और बाहर आकर दोनों को खुशखबरी दी कि ,”मांजी आप दादी  बनने वाली हो ।”

दोनों एक दूसरे को देख रहे थे मानों मन ही मन कह रहे हो,”बधाई हो ! भगवान ने हमारी सुन ली ।”

अब तो हर पल नन्हें मेहमान के बारे में सोचा जाने लगा।

सास शालिनी जी भी कशिश का बहुत ध्यान रखती।

हर महीने अमन भी कशिश को डॉक्टर के पास दिखाने ले जाता। अब कशिश की डिलीवरी में कुछ ही दिन बाकी थे तो डॉक्टर ने कशिश की सोनोग्राफी की।

रिपोर्ट भी नॉर्मल आई। डॉक्टर ने उन्हें कहा कि ,”जब भी कशिश को दर्द आने लगे तो तुरंत हॉस्पिटल ले आना।”

पर कहते हैं ना, कभी – कभी अच्छे पढ़े लिखे इंसान की भी मति मारी जाती हैं। कशिश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

जब कशिश  को दर्द आने शुरू हुए तो अमन कशिश को नज़दीक की ही एक अप्रशिक्षित दाईं के पास ले गया ,यह सोचकर कि अस्पताल में बहुत समय लगेगा। मां ने बहुत समझाया कि, “ऐसा करने पर जच्चा – बच्चा दोनों की जान को खतरा हो सकता है ,पर अमन ने एक ना सुनी। अनुभव न होने के कारण दाईं बच्चे को नहीं बचा पाई, बाहर आकर दाईं ने उल्टा कशिश पर ही इल्ज़ाम लगाकर कह दिया कि ,”इसने अच्छे से ज़ोर नहीं लगाया जिससे बच्ची पेट में ही मर गई।”




ये ख़बर सुनकर दोनों सुन्न रह गए। कशिश  को तो दाईं की बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था जबकि उसी की लापरवाही से यह सब हुआ।

घर आकर कशिश तो जैसे अपने होशोहवास ही खो बैठी। दिन रात अपनी बच्ची के सपने बुनने वाली कशिश ये मानने को तैयार नहीं थी कि वो अब नहीं हैं।

एक रात जब कशिश अपनी बेटी के बारे में सोचते – सोचते निंदिया रानी की गोद में सो गई तो  उसने एक सपना देखा, सपने में उसकी नन्हीं बेटी मां कशिश को बड़े प्यार से निहार रही थी मानों कह रही हो, “रोती क्यों हो मां? मैं तो तेरी गोदी में कबसे बैठी हुई हूं,तुम पता नहीं कहां खो रही हो? मां ! तुम यूं उदास मत हो, मैं वापस तेरी गोदी में ही खेलने बहुत जल्दी आऊंगी मां, बस तू मेरे आने की तैयारी कर । वो बच्ची बार बार कशिश  की गोदी में बैठ कर उसकी छाती से चिपक जाती। तू रो मत मां , मैं जल्दी आऊंगी।”

अचानक कशिश  की आंखें खुल गई देखा तो सुबह हो चुकी थी। उसे रात का स्वप्न याद था और याद थी उस मासूम की  बातें कि,” मां मैं जल्दी आऊंगी ।”

कशिश  को लगा कि वो नन्ही सी जान अपनी गोल मटोल आंखों से अब भी उसे प्यार भरी नजरों से देख रही हैं।

कशिश ने यह सब अमन  को बताया । दोनों अब एक नई सुबह का  बेसब्री से इंतजार करने लगे। दुःख के बादल अब छंट जो चुके थे।

कशिश  ने भी अब बीता हादसा भूलने की ठान ली और अपनी बेटी के आने के स्वागत में एक बार फिर से जुट गई।




एक महीना ही बीता था कि कशिश  ने अमन  को बताया ,” वो मां बनने वाली हैं।” दोनों बहुत खुश हुए ।

अमन ने भी अब कसम खा ली कि,” वो एक प्रशिक्षित डॉक्टर की निगरानी में ही कशिश की डिलीवरी करवाएगा।”

अब कशिश भी सपने में आई इस बच्ची को हकीकत में अपनी गोद में लेने के सपनों में खोने लगी थी।

नौ महीने के इंतजार के बाद कशिश ने एक नन्हीं सी परी को जन्म दिया। जब नर्स ने कशिश  की गोद में बच्ची को थमाया तो वह चौंक गई क्योंकि इसकी सूरत बिल्कुल उस बच्ची की तरह थी जो उसके सपने में आई थी।

मां – बेटी दोनों एक – दूसरे को ऐसे देख रहे थे मानों जन्मों से मिलने को तरस रहे हो और वो नन्हीं सी जान कह रही हो,” मां देख, मैंने कहा था ना! ” आख़िर मां बनने का उसका ख्वाब पूरा हो ही गया था।

©® मोहिनी गुप्ता मध्य प्रदेश

स्वरचित और मौलिक

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