अतीत, वर्तमान और भविष्य की जुगलबंदी – भाविनी केतन उपाध्याय 

” शैली बहू, ये मैं क्या सुन रही हूॅं, तुम ने मुझे बिजनेस में मदद करने की बजाय दूसरी जगह नौकरी ढूंढ ली है ? मैं तो सोच रही थी कि तुम्हारी MBA की पढ़ाई पूरी होते ही तुम मेरे साथ मेरा बिजनेस जोइन करोगी पर तुम ने तो मुझे कुछ बताना जरूरी नहीं समझा….” हेतल ने अपनी बहू से कहा।

” मम्मी जी, ये आप जो अपना बिजनेस कहती हैं ना वो हर गली,हर मोहल्ले में घर में जो औरतें रहती है ना आप की तरह अनपढ़ और गंवार वो करती हैं इसलिए कृपया करके उसे बिजनेस मत कहिए। दूसरा मेरी मर्जी और मेरी काबिलियत पर मुझे नौकरी मिल रही हैं तो मैं क्यों घर में बैठ कर अपना वक्त और मन ख़राब करु ?

रही बात आप को बताने की तो मेरे हाथ में मेरा जॉइनिंग लैटर आते ही बताने वाली थी क्योंकि इस खुशी की सच्ची हकदार तो आप ही हैं ना….. मुझे मेरी अधूरी पढ़ाई पूरी करवाने में आप ने जो मेरा सहयोग और साथ दिया है उसे कैसे भूल सकती हूॅं मैं….. आप प्लीज़ बुरा मत मानिएगा पर मेरा सपना, मेरी आशाएं कुछ ओर ही है मम्मी जी…. जो आप के साथ रह कर ये घरेलू टाइप बिजनेस में पूरी नहीं हो सकती…” शैली ने कहा।

” कोई बात नहीं बहू, मैं ही ज्यादा उम्मीद लगाए बैठी थी….. सब के अपने अपने सपनों और आशाओं को पूरा करने का अधिकार है ,बहुत बहुत बधाई हो तुम्हें….” आंखों में लुढ़कते हुए आंसूओं को बड़ी मुश्किल से रोकते हुए हेतल ने कहा।

हेतल चुपचाप अपने कमरे में चली गई….. उसके आंखों से आसूं अब रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं…. वो कितनी देर तक यूं ही अपने आसूं बहाते हुए वो सो गई उसे पता भी नहीं चला। संध्या होने वाली है तो दिया बती करने हेतल को ढूंढते हुए उसकी सास विमला जी उसके कमरे में आई। उन्होंने देखा तो कभी शाम के समय नहीं सोने वाली हेतल सो रही है पर उसके आंखों से बहे आसूं की धारा सूख कर उसका मन आहत होने की गवाही दे रहा है।

विमला जी को अपनी बहू की बड़ी चिंता हुई, उन्होंने प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए हेतल को उठाया। विमला जी को अपने पास देखकर हेतल थोड़ी देर के लिए सकपका गई फिर अपने आप को संभालते हुए कहा,” क्या हुआ मांजी ? आप मुझे इस तरह क्यों देख रही है..?”

” वहीं तो मैं तुम्हें पूछना चाहती हूॅं कि क्या हुआ तुम्हें ? क्यों इस वक्त सो गई ? तबियत ठीक नहीं है क्या ? और ये आसूं ?” विमला जी ने जैसे सवालों की बौछार लगा दी।




” कुछ नहीं मांजी,बस किसी से कुछ उम्मीदें ही ज्यादा लगा ली थी…. खैर छोड़िए इस सब बातों को, आप इस वक्त यहां ?” हेतल ने उसकी और अपनी बहू शैली की बात को विमला जी से छिपाते हुए कहा।

” मैं तो तुम्हें दिया बती के लिए ढूंढ रही थी,चल भगवान के सामने अपनी हाजरी तो लगवा ले…” कहते हुए विमला जी उठ खड़ी हुई…. हेतल को अकेले रहने का मन कर रहा है फिर भी विमला जी के कहने पर उठ खड़ी हुई….. वैसे भी डिनर बनाने का समय भी हो रहा था। शैली भी आ गई, सास बहू दोनों ने मिलकर डिनर की तैयारियां शुरू की पर दोनों के बीच की बातें को लेकर एक दूसरे से दोनों बात नहीं कर रहे थे सिर्फ काम की ही जरूरत के हिसाब से बात कर रहे हैं। विमला जी को बात समझने में देर नहीं लगी कि सास बहू के बीच कुछ ऐसा हुआ है जिससे रसोई में शांति छाई हुई है नहीं तो हररोज सास बहू दोनों एक दूसरे से हंसी मजाक करते हुए खाना पकाते थे जिससे खाना भी बहुत स्वाद बनता था।

दूसरे ही दिन शैली का जॉइनिंग लैटर आ गया और उसने खुशी के मारे रात में पार्टी का इंतजाम कर लिया। हेतल का मन ना होते हुए भी घर में खुशियां बनी रहे इसलिए पार्टी में शामिल हो गई….. विमला जी को पता चल गया कि आखिर मांजरा क्या है उन्होंने अपनी बहू हेतल में आत्मविश्वास जगाने में ठान लिया।

शैली के नौकरी पर जाते ही विमला जी ने कहा,” हेतल, मैं तो तुम्हें बड़ी सयानी और समझदार समझती थी पर तुम तो अपनी बहू से ही हार मान गई। देख, मैं नहीं जानती कि तुम दोनों के बीच तुम्हारे बिजनेस को लेकर क्या बात हुई है ? पर इतना तो जानती हूॅं कि जो इंसान अपनी बहू के सपने और आशाओं को पूरा करने में मदद कर सकती हैं तो क्या वो खुद के सपनों और आशाओं को पूरा नहीं करेगी ? तुम में थोड़े से आत्मविश्वास की कमी हो गई है…. पर बेटी जब काम पूरी लगन और मेहनत से करते हैं ना तो उसे पूरा करने में कोई हमें रोक भी नहीं सकता…. और एक बात आज से और अभी से ही ठान लो कि ये घर में बैठ कर तुम ने अपनी शाख और बिजनेस जमाया है ना उसे आगे आने वाले नए साल में नई ऊंचाईयों तक पहुंचाएगी। तुम्हारे हर क़दम और हर फैसले में मैं तुम्हारे साथ हूॅं क्योंकि जो सपना मैंने देखा था आत्मनिर्भर बनने का वो तुम ने घर बैठे ही ये साड़ियां, ड्रेस मेटिरियल, पेटीकोट, ब्लाउज मैचिंग,फोल पीको और ना जाने क्या क्या करते हुए पूरा किया है।

एक तुम ही थी जो तुम्हारे ससुर जी के अचानक चले जाने से जतिन के साथ धोखा कर के हमारे बिजनेस में घाटा दिखाकर जतिन को निकाल दिया था तब तुम ने ही पूरे आत्मविश्वास से घर, जतिन, मुझे और ये बिजनेस को संभालने की शुरुआत की थी। आज की आई वो लड़की को क्या पता कि तुम जो कर सकती हैं वो और कोई नहीं कर सकता। चल आज उस दरवाजे को तो खोल दे जिससे घर के साथ साथ तेरे जीवन में भी रोशनी आ जाए…।”




हेतल ने बिना कुछ कहे दरवाजे को खोलने के लिए क़दम उठाए पूरे आत्मविश्वास के साथ….. विमला जी की बात ने उसमें फिर से आत्मविश्वास जगा दिया था। थोड़े दिन के मेहनत के बाद हेतल का बिजनेस फिर से चल पड़ा…. इधर शैली कुछ हद से ज्यादा ही ओवर कोन्फिडंट है तो अपनी ग़लती को मानने को तैयार ही नहीं है। बॉस ने एक दो बार नोटिस देकर मामला रफा दफा किया पर एक दिन उसको नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

अपना छोटा सा मुंह लेकर शैली वापस आ गई, इधर हेतल ने विमला जी की मदद से अपने बिजनेस का ओर विस्तार कर दिया था घर के पीछे के कमरे के अलावा अब उन्होंने आंगन में भी बड़ा सा टैंट लगवा कर त्योहार के अनुसार सेल शुरू कर दिया था। घर बैठे बैठे शैली अपनी सासूमां और दादी सास को इस तरह अपना बिजनेस का विकास करते हुए देख रही थी एक दिन उससे रहा नहीं गया तो उसने हेतल से कहा,” मम्मी जी, मुझे माफ़ कर दिजिए । जिस बिजनेस को मैं बहुत मामूली और साधारण समझ रही थी उस में भी आप बहुत आगे बढ़ गई है। मैं भी आप के साथ काम करना चाहती हूॅं…. आप जो भी और जैसा भी काम देंगे मुझे मंजूर है।”

हंसते हुए हेतल ने उसे गले लगाते हुए कहा,” मैंने तो उसी दिन तुम्हें माफ़ कर दिया था क्योंकि मुझे पता था कि तुम्हारा ये ज़रुरत से ज्यादा ओवर कोन्फिडंट ही तुम्हें ले डूबेगा। बेटी, अपनी काबिलियत पर विश्वास करो पर इतना भी नहीं की हमारे आगे दूसरे को हम देखे ही नहीं… और दूसरी बात कोई बिजनेस छोटा या बड़ा नही होता….. उसे चलाने वाले पर निर्भर करता है कि वह उसे आगे बढ़ाएगा या पीछे ले जाएगा। हमारे घरेलू बिजनेस में आप का स्वागत है…”

जब साड़ियां दिखाने गद्दियों पर तीनों पीढ़ियों साथ में बैठी तो मतलब की अतीत, वर्तमान और भविष्य की जुगलबंदी देख साड़ियां देखने वाले भी अचंभित रह गए ।

#स्वाभिमान 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद,

आप की सखी 

भाविनी केतन उपाध्याय 

 

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