उठो विप्लव जल्दी से तैयार हो जाओ आज ड्राइवर नहीं आया है तो गाड़ी लेकर बुकिंग में तुम्हें ही जाना पड़ेगा बद्री प्रसाद जी ने अपने बेटे विप्लव को उठाते हुए कहा….! अरे पापा यह नौकरों वाला काम मुझे पसंद नहीं है.. कह कर विप्लव करवट बदल कर फिर सो गया…।
देखो विप्लव यह बिजनेस ना ऐसे नहीं चलता है और तुम इसके उत्तराधिकारी हो…. बिजनेस के लिए लाॅयल होना बहुत जरूरी है…! अब जिन्होंने बुकिंग कराई है उनका कुछ इमरजेंसी भी हो सकता है बेटा… कभी-कभी बिजनेस में ऐसे मौकों को हैंडल करना पड़ता है… ऐसा कह कर बद्री प्रसाद जी कमरे से बाहर निकल गए….।
कुछ ही देर में विप्लव तैयार होकर गाड़ी निकाला और चल दिया बुकिंग में गाड़ी लेकर…!
जिस दंपति को अपनी गाड़ी में बैठा कर विप्लव ले जा रहा था… लगभग 50 वर्ष के व्यक्ति थे…जो अपनी पत्नी को शल्य चिकित्सा हेतु महानगर ले जा रहे थे….। सामने वाली सीट पर विप्लव के बगल में… बड़ी नजाकत से उन्होंने अपनी पत्नी को बैठाया और हर थोड़ी थोड़ी देर में ठीक तो हो ना नीना… ऐसा पूछ ही लेते थे..।
बगल में बैठ गाड़ी चलाते हुए विप्लव सोच रहा था… कैसे अंकल है…? अपनी बीवी का कितना ख्याल रखते हैं…. मैं ही अच्छा हूं डांट डपट कर रखता हूं अपनी बीवी को… उसकी क्या मजाल जो मुझसे कोई काम करवा सके… मन ही मन खुश होता रहा विप्लव…।
बेटा आज ड्राइवर नहीं आया क्या…? तुम खुद ही गाड़ी ड्राइव कर रहे हो… अंकल ने मौन तोड़ा ..जी अंकल …पापा ने कहा…. शायद आपका जाना आज ज्यादा जरूरी था..। बस इसीलिए… विप्लव ने कुछ जानने की कोशिश में बातों का सिलसिला शुरू किया…।
हां बेटा बहुत जरूरी था आज जाना… कल नीना का ऑपरेशन है डॉक्टर ने कहा है जल्दी से जल्दी ऑपरेशन करने को हार्ट में दो-दो ब्लॉकेज है बेटा …।
मैंने भी जिंदगी की भाग दौड़ में शायद उतना समय पत्नी को नहीं दिया जितना देना चाहिए नीना को हमेशा शिकायत रही कि आपके पास तो मेरे लिए समय ही नहीं है नीना की छोटी-मोटी परेशानियों को मैंने कभी सीरियस लिया ही नहीं जब भी वह कहती मैं आजकल जल्दी थक जाती हूं… धड़कन तेज होता है….! अच्छे से खाया पिया करो कहकर मैं टाल देता था… कभी जानने की कोशिश नहीं की …कि वास्तव में ऐसी भी समस्या हो सकती है अब जबकि डॉक्टर ने क्रिटिकल कंडीशन बताया.. तब मुझे ऐसा झटका लगा.. मानो मैं तो नीना के लिए कुछ कर ही नहीं पाया …बस एक बार ऑपरेशन सफल हो जाए फिर नीना को कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगा…। कहते कहते अंकल जी ने नीना का हाथ अपने हाथ में ले लिया…।
कुछ दूर जाते ही नीना ने सांस लेने में तकलीफ होने की शिकायत की.. आनन-फानन में पास के ही अस्पताल में ले गए एक इंजेक्शन भी लगा पर शायद नीना के जिंदगी के लिए यह काफी नहीं था अंततः नीना ने दम तोड़ दिया …दहाड़े मार-मार कर रोते रहे अंकल… रोते रोते ही विप्लव से कहा ..तुम कभी ऐसी गलती मत करना जीते जी अर्धांगिनी के खासियत को पहचानना और उसको अहमियत भी देना अब देखो ना मैं तुम्हारी आंटी के लिए कुछ नहीं कर पाया कहकर अंकल फिर फुट – फुट कर रोने लगे..।
बड़ी मुश्किल से विप्लव ने अंकल को शांत कराया..। अंकल की यथार्थता देखकर पहली बार उसे एहसास हो रहा था ठीक अंकल की तरह तो वह भी है या कहें उससे भी ज्यादा… वह भी तो अपनी पत्नी आकृति की बिल्कुल भी नहीं सुनता था दोस्तों के सामने आकृति का मजाक बनाना अपनी शान समझता था… दोस्तों के बीच में अपनी इमेज जो बनेगी.. कि अपनी बीवी से नहीं डरता… । अपनी झूठी शान की खातिर अपनी अर्धांगिनी का मजाक बनाना कहां तक उचित है…? अभी पिछले हफ्ते की तो बात है दोस्तों के सामने आकृति के मोटापे का मजाक बनाया था जब दोस्तों ने पूछा वैलेंटाइन डे पर भाभी को गुलाब का फूल गिफ्ट किया या नहीं तो तपाक से विप्लव ने जवाब दिया था तेरी भाभी की काया के अनुसार गुलाब का फूल तो नहीं हां गोभी का फूल जरूर दिया था और सभी दोस्त हंस पड़े थे आकृति का चेहरा रुआँसू हो गया था…।
विप्लव को अपनी गलती का एहसास हो गया था वह जल्दी से अंकल और नीना के पार्थिव शरीर को उनके घर तक छोड़ अपने घर की ओर बढ़ा घर पहुंचते ही आकृति- आकृति आवाज देकर पत्नी को बुलाया सभी को आश्चर्य ..क्या बात है…? बद्री प्रसाद जी ने पूछा ..विप्लव बेटा सब ठीक तो है ना ….जी पापा आज आपने मुझे कार ड्राइव कर ले जाने को कह कर मेरी आंखें खोल दी …परिवार के सभी सदस्यों के समक्ष आपबीती वाक्या विप्लव ने सुनाया …सभी की आंखें नम हो गई…।
देखिए विप्लव मैं भी चाहती थी आप में थोड़ा बदलाव हो कम से कम अपनी अर्धांगिनी की भावनाओ को समझ कर उसकी कद्र कर सकें ..पर उसके लिए इतनी बड़ी घटना हो ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए और जानते हैं विप्लव… कभी-कभी आपके मनमानी से तंग आकर मैं भी सोचती थी जब मैं नहीं रहूंगी तब पता चलेगा…। नहीं आकृति नहीं… प्लीज ऐसा मत बोलो विप्लव की आंखों में भी आंसू थे…।
सच में दोस्तों कभी कभी पति अपनी अर्धांगिनी की बातों या भावनाओं को उतना ध्यान नहीं देते या ध्यान देना ही नहीं चाहते जितना उन्हें देना चाहिए और उनकी भावनाओं की कद्र करना पतियों का कर्तव्य ही नहीं दायित्व भी होना चाहिए…। उन्हें उनका सम्मान मिलना ही चाहिए आखिर वह हाउसवाइफ नहीं होममेकर जो है…।
कहीं ऐसा ना हो कि यह कहावत चरितार्थ हो जाए … “अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत ” इसलिए समय रहते सजग रहें ..और अपनी अर्धांगिनी का उतना ही ध्यान रखें जितना स्वयं का….!!
( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
संध्या त्रिपाठी
Nice story
प्रेरणादायी
कथानक बहुत ही अच्छा चुना
हृदयस्पर्शी