• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

” अपशकुन ” –   माधुरी भट्ट

पूरे घर में ख़ुशी का माहौल है। आज घर की लाडली पुनीता की हल्दी की रस्म अदायगी है। घर की महिलाएँ और लड़कियाँ सजधजकर तैयार हैं।उन्हें देखकर लग रहा है मानो स्वर्ग की अप्सराएँ धरा पर उतर आई हों। ख़ूब चुहलबाजियों का दौर चल रहा है।पुनीता की बुआ रश्मि , जो पिछले साल ही अपने मेजर पति अतुल को देश सेवा में  भेंट चढ़ा चुकी है,  अपने कमरे में उदास बैठी है। पुनीता ने कमरे में प्रवेश करते ही बुआ की उदासी को तोड़ते हुए कहा   “अरे बुआ आप तो अभी तक ऐसे ही बैठी हुई हैं। हल्दी की सारी तैयारियाँ हो चुकी हैं। “

                         “मेरी प्यारी पुन्नी! तुम तो जानती हो न,मेरा वहाँ क्या काम? मुझे यहीं रहने दो अपनी स्मृतियों के साथ। “

” नहीं बुआ,मैं आपके बिना हल्दी नहीं लगवाऊँगी।मेरी पहली हल्दी आप लगाएँगी।”  ” ऐसा  नहीं  कहते पुन्नी,  अपशगुन होता है, हमारे समाज में विधवाओं को ये सब  रस्म अदायगी का अधिकार नहीं है ।”  ” क्या बुआ आप भी ..  , ये सब बातें  अंधविश्वास से जुड़ी हुई हैं बुआ , ऐसा कुछ भी नहीं होता है।आप देखना , मैं इस अपशगुन को  शगुन में बदल कर दिखाऊँगी। आप चलिए मेरे साथ…।” आख़िर पुनीता  बुआ को तैयार कर मण्डप तक ले ही आई। पण्डित जी ने हल्दी की रस्म शुरू करते हुए पुनीता की माँ को हल्दी के दौने पकड़ाए ही थे कि पुनीता बोल पड़ी  “सबसे पहले मेरी बुआ हल्दी लगाएगी।” यह सुनते ही सब भौंचक्के से एक -दूसरे को देखने  लगे।पुनीता की माँ ने इशारे से उसे चुप रहने के लिए कहा लेकिन पुनीता चौकी से उठकर रश्मि के हाथ में हल्दी का दौना  पकड़ाने लगी।

          पण्डितजी ने कठोर स्वर में पुनीता की माँ को रस्म अदायगी करने के लिए कहा।इसी बीच पुनीता की दादी माँ और दादाजी ने ,जो किसी कारणवश गाँव से समय पर नहीं पहुँच पाए थे, मण्डप की ओर प्रवेश करते ही हँसते हुए कहा  ” मेरी पोती को हल्दी लगाने का पहला हक़ तो दादी का ही बनता है लेकिन पुन्नी की इच्छा के मुताबिक़ पहली हल्दी हमारी रश्मि ही लगाएगी क्योंकि आज से वर्षों पहले मेरी शादी में पहली हल्दी मेरी बुआ ने लगाई थी, यह भी एक सुखद संयोग ही है कि उस समय ठीक ढाई महीने पहले बुआ के पति, सीमा पर देश की रक्षा करते हुए  शहीद हो गए थे। मुझे भी अपनी बुआ अतिप्रिय थी और मैंने सबकी नज़रें चुराकर चुपके से पहली हल्दी उनसे ही लगवाई थी। तनिक देखो,मेरे बुढ़ऊ तो इस उम्र में भी क़ातिल लगते हैं।”

          दादी की बात सुनते ही पण्डितजी भी बगलें झाँकने लगे और रश्मि के साथ- साथ सबके चेहरों पर आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी  छा गई।

  माधुरी भट्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!