अपनो पर विश्वास – नताशा हर्ष गुरनानी

खेती करके सबका पेट पालने वाले घनश्याम बाबू अब बूढ़े हो चुके थे।

बेटा अपनी दुनियां में खुश था।

बड़े शहर में बड़ी कंपनी में बड़े पद पर था।

पोता उनका कॉन्वेंट में पढ़ता था।

बेटा हमेशा अपने पिता को अपने पास रहने के लिए कहता पर वो हमेशा मना कर देते थे।

क्योंकि गांव से जिनके भी बच्चे शहर गए वो शहर के होकर रह गए।

सुखिया का बेटा जब उसे अपने साथ ले गया तो वहां नौकर बनकर रखा उसे, यहां का खेत भी बिकवा दिया उसने।

यहीं हाल रामू का भी रहा।

पर इस बार  बेटे ने टिकट ही भेज दी की बापूजी आपको आना ही है।

वो बिचारे डर डर के गए बेटे के यहां मन में हजारों आशंकाएं लिए

स्टेशन पर बेटा लेने आया पहली बार इतने बड़े शहर में आए थे वो

बेटे से गले लगे और चले घर की तरफ

बहु और पोते ने स्वागत किया।

वो और डरने लगे

पर कुछ दिन में ही उनका डर दूर होने लगा जब बहु ने उन्हें पिता की तरह सम्मान दिया, पोते ने दोस्त की तरह हर बात साझा की, बेटे ने ये अहसास दिलाया कि आप है तो हम है।

तब उनका ज़मीर ही उनको उल्हाना देने लगा कि बिना किसी को पहचाने उसके लिए कभी राय नहीं बनानी चाहिए और लोगो कि कही बातों को हमेशा सत्य नहीं मानना चाहिए।

अपने संस्कारो और परवरिश पर भी भरोसा करना चाहिए।

नताशा हर्ष गुरनानी

भोपाल

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