अपनों के दिए घाव ( भाग 1)  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : शुभांगी अपने भाई से छोटी थी। मातापिता की आँख का तारा वह अपने भाई  एवं चाचा के दोनों बेटों  की इकलौती दुलारी सी गुडिया थी। सब भाई उसे बहुत प्यार करते थे। जरा सा रुठ जाने पर उसे मनाते तरह तरह के प्रलोभन देकर उसे हँसाने का प्रयास करते ।वह इतनी सुन्दर और प्यारी  थी कि बरबस किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती। उसकी बाल सुलभ बातें खत्म ही नहीं  होतीं।घर में चहकती. खिलखिलाती घूमती रहती।

 चाचा-चाची  जब उनके घर आते उसके लिए सुन्दर सुन्दर ड्रेसेज, खिलौने उपहार स्वरुप लाते। उसे बहुत प्यार करते। उसके प्रश्नों को सुनकर हंसते हंसते लोटपोट हो जाते। उसके माता पिता कभी एक कतरा आंसू  भी उसकी आँखो से  न आने देते।

समय का फेर कोरोना महामारी आई और उसके मम्मी पापा को निगल गई। पीछे रह गए दोनों छोटे बच्चे जो समझ नहीं पा रहे थे अब  क्या करें । वह वक्त ऐसा था कि कोई नाते रिश्तेदार भी उनके पास नहीं पहुँच पाया। जैसे तैसे छः माह  सरकारी तंत्र के सहारे गुजरे, फिर एक दिन उनके नाना-नानी  चाचा-चाची आए और अपना अपना हक जताने लगे कुछ सोचकर चाचा-चाची शुभांगी को अपने साथ ले जाने के लिए यह कहकर तैयार हो गए कि शुभांगी  उनके दिवगंत भाई की धरोहर है

उसकी रक्षा करना  उनकी नैतिक जिम्मेदारी है, वे दो बच्चों का खर्च नहीं उठा सकते इसलिए शुभांगी को वे ले जाते हैं और शुभम को नाना नानी ले जाऐं। जबकि नाना नानी दोनों बच्चों को अलग नहीं करना चाहते थे सो वे दोनों बच्चों को ले जाने को तैयार थे। किन्तु चाचा-चाची ने यह नहीं होने दिया और वे शुभांगी को ले गए। मम्मी-पापा को तो मौत ने दूर कर दिया था, अब भाई-बहन भी बिछुड गए। वे एक दूसरे से अलग होते बहुत रोए, साथ रहने को कहा पर चाचा-चाची नहीं माने।

शुभम नाना नानी के साथ आगया।मामा ने उसका स्कूल में दाखिला अपने बच्चों के साथ ही करा दिया। किन्तु मामी को वह फूटी आंख नहीं सुहाता। वह अपने बच्चों और उसमें भेद भाव करती, पहले तो शुभम विरोध करता, जिद करता फिर धीरे-धीरे उसने परिस्थितीयों से समझौता कर  लिया। नाना-नानी उसके  उदास, कुम्हलाए  मुख को देख कर दुःखी होते किन्तु  वे क्या कर सकते थे, वे तो स्वयं ही बेटे बहू पर निर्भर थे। बच्चे को सीने से लगा अपने बेटी दामाद को याद कर रो लेते।समय गुजर रहा था और उसने हालातों से समझौता करना सीख लिया था।

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अपनों के दिए घाव ( भाग 2 )  : Moral stories in hindi

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