अपनी पहचान – मीनाक्षी सिंह 

हमारे विद्यालय की आंगनवाड़ी की मैडम आज सुबह आयी ! और ये निमंत्रण पत्र देते हुए बोली ! मैडम बेटे की शादी हैँ ! आईयेगा ज़रूर पूरे परिवार के साथ !

घर के बुजूर्गों के नाम से तो हजारों  निमंत्रण देखें हैँ उनका नाम तो सदियों से समाज में प्रतिष्ठित होता हैँ !! बात तो तब हैँ जब  जब खुद के नाम से निमंत्रण पत्र आता हैँ ! मन खुश हो जाता हैँ ! और मैडम जैसा सम्मानसूचक शब्द उसमें चार चाँद लगा देता हैँ ! अपनी पहचान सिर्फ और सिर्फ मेहनत का परिणाम होती हैँ ! कहने को छोटी चीज हैँ पर इसे पाने में दिन रात एक करने पड़ते हैँ ! अब तो गिनती भी मुश्किल हो जाती हैँ ऐसे आमंत्रण की ! मेहनत करिये परिणाम अवश्य मिलेगा ! आज नहीं तो कल मिलेगा ! इस सम्मान को पाने के लिए मैने कम मेहनत नहीं की ! एम .एस .सी बायोटेक से करने के बाद पिता जी ने कहा ,बी .एड कर ले बेटा ! सरकारी अध्यापिका बन जायेगी ! मेरा मन पी.एच .डी करने का था ! एक साल शोध कार्य भी किया !  पर कुछ सोचकर पिता जी की बात मान ली ! बी.एड कर ली ! उसी दौरान 2014 में पिता जी का अकस्मात देहांत हो गया !

हम सब बहुत टूट गए थे पिताजी के जाने से ! पिता जी शादी की तैयारी कारकेगये थे इसलिये कुछ दिन बाद मेरा विवाह हो गया ! उसके बाद डी.पी.एस स्कूल में पढ़ाया एक साल ! फिर केन्द्रिय विद्यालय में 5 साल पढ़ाया ! पर मन में कसक रहती थी ! हर बार 1-2 नंबर से रह जाती थी ! एक बार तो लिखित हो गया क्लीयर ! पर साक्षात्कार में रह गयी ! बहुत हताश हो गयी ! पतिदेव से कहा अब मेरे बस का नहीं ! तुम नौकरी करते ही हो ! मुझे क्या ज़रूरत ! दो बच्चें हैँ ,उन्ही को संभालूँगी ! पतिदेव का हमेशा से वही कहना – इसी दिन के लिए तुम्हे एम .एस .सी ,बी.एड करवाया था तुम्हारे पिता जी ने ! थ्रो आउट प्रथम श्रेणी से पास हो ! क्या बताओगी अपने बच्चों को कि तुम्हारी माँ इतनी पढ़ी लिखी थी फिर भी कुछ नहीं कर पायी ! इन मार्कशीटों को शोकेस में सजाओगी !

अपने स्वाभिमान के लिए एक बार फिर प्रयास करो ! पता नहीं फिर किन किन लोगों के उदाहरण् देते और मुझ में जोश पैदा कर देते ! मैने सैनिक स्कूल की परिक्षा पास कर ली ! सी टेट ,यू पी टेट के  तो 8-10 प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिए ! फिर आयी सुपर टेट की परिक्षा ! बेटा बिमार हो गया उसी समय ! फिर भी रात में पढ़ती ! परिक्षा देकर आयी 6 जनवरी 2018 को ! लिखित में 108 नंबर आयें ! कट ऑफ़ गयी जनरल की 97 ! पर अभी भी बहुत कुछ बाकी था ! एकेडेमिक के भी 40% नंबर लगने थे , कॉउंसलिंग होनी थी ! पहली लिस्ट आयी बहन का नंबर आ गया ! वो पहले से सरकारी नौकरी में थी !



घर में सब मेरा  नंबर ना आने का दुख ज्यादा मना रहे थे ! उसकी ख़ुशी तो किसी ने मनाई ही नहीं ! माँ कहती बहन से -तू तो पहले से सरकारी नौकरी में हैँ ,उसे नौकरी नहीं मिल सकती तेरी ! माँ बेचारी मासूम ! इतना कहाँ समझती थी ! कहती लिखकर दे दो कि मैं तो पहले से नौकरी में हूँ ,मेरी जगह उसे नौकरी दे दिजिये ! बहन कहती ऐसा हो जाता तो क्या बात थी ! कोई बेरोजगार नहीं रहता मम्मी ! उस दिन मेरे स्वाभिमान को बहुत ठेस पहुँची !

उसी दौरान मेरी  बीटिया का जन्म हुआ ! मैं फिर तैयारी में लग  गयी ! बस बंशी वाले का ध्यान करती तैयारी में लगी रहती !

ईश्वर ने साथ दिया ! दूसरी लिस्ट में मेरा नाम आ गया ! मेरी ,मेरे पतिदेव की ,और परिवार वालों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा !

मेरी नौकरी मेरे होम टाउन आगरा में ही लग  गयी !

बस दुख इस बात का है कि मेरे दोनों पिताजी ससुर जी और मेरे पिताजी मेरी ये ख़ुशी देख नहीं पायें !

दोनों के ही अरमान  थे मुझे सरकारी नौकरी में देखने के !

ये पोस्ट मैने अपनी वाहवाही के लिये नहीं की विषय स्वाभिमान देखकर खुद ही कलम लिखने को मजबूर हो गयी ! बस मकसद ये हैँ कि अगर संभव हो तो एक बार अपने स्वाभिमान के लिए कुछ कीजिये ज़रूरी नहीं सरकारी नौकरी ,कुछ भी ज़िसमें आप पारंगत हो ! मनुष्य योनी एक बार मिलती हैँ कुछ तो ऐसा करो कि आपके जाने के बाद लोग आपको याद करें !!

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

आगरा

मीनाक्षी सिंह 

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