अपने तो अपने होते हैं! – वर्षा गर्ग

एक रिश्ता प्यार भरा !

उच्च शिक्षित अच्छी नौकरी कर रही निवेदिता ने अपने सहपाठी नीरज से विवाह की बात कर हम सभी को चौंका दिया।

मेरी बचपन की बहुत प्यारी सहेली गीतांजलि की बेटी है निवेदिता,जिसे हम सभी प्यार से निवी पुकारते हैं।

इकलौती बेटी , जुटजिसके माता पिता दोनों ही क्लास वन गजेटेड ऑफिसर हों,उसके लिए रिश्तों की बाढ़ आना स्वाभाविक ही था।

वही हुआ भी।

 गीतू ,मेरी सखी अक्सर ही फुर्सत में मुझे बुलाकर सभी रिश्ते दिखाती,और फिर उसके पति राजीव भी चर्चा में शामिल हो जाते ।

आज नीरज का जिक्र कर मानो अन्य सभी रिश्तों पर पूर्ण विराम लगा दिया था निवी ने।

“इसको तू ही समझा सकती है,तेरी ही बात मानती है हमेशा।”

कहते हुए गीतू उठकर अंदर दूसरे कमरे में चली गई।

“चलिए आंटी शुरू हो जाइए। “

कहते हुए एक आंख बंद करते हुए शरारत से मुस्कुराती रही वो।

“देखो निवी! नीरज अच्छा लड़का है,पर शादी विवाह बराबरी वालों में ही ठीक से निभते हैं।




तुम्हारी और उनकी स्थिति में बहुत अंतर है।”

“आंटी!मुझे लगा था आप समझ जाएंगी।

आप तो मम्मी जैसे ही बोल रही हैं।”

“और क्या बोलूं?”

“कम से कम पूछिए तो मुझे उसमें क्या नजर आया?”

“ठीक है फिर बताओ।”

“पहले आप मेरी कुछ  बातों का जवाब दीजिए।”

मैं सोच में पड़ गई,शांत और कुछ हद तक घुन्नी सी रहने वाली इस निवी के मन में समुद्र हिलोरें ले रहा है,बात की तह तक जाने के लिए इसकी बात सुना जाना बहुत आवश्यक होगा 

“सुनो निवी!हम दोनों कहीं बाहर चलते हैं ,वहीं बात करेंगे।”

ठीक दो मिनिट बाद जींस टॉप पहने,गले में स्कार्फ लपेटे निवी मेरे सामने थी।

“आंटी मार्वे बीच चलें,बहुत सुंदर हो गया है अब वहां सब।”

“चलो,आज मुझे भी फुर्सत है।”

मार्वे पहुंच कुछ देर डूबते सूरज को निहारा मैंने,मेरा प्रिय शगल है ये।

पास से गुजरते भुट्टे वाले से दो भुट्टे लिए,खाते हुए प्रश्नवाचक निगाहों से देखा निवी को।

“आंटी आप तो सालों से मम्मी को जानती हैं ना।”

“हां तो?”

“क्या मम्मी शुरू से ही इतनी महत्त्वाकांक्षी रही हैं?”

“निवी खुलकर कहो क्या कहना है तुम्हें?”

“आंटी मैंने बचपन से ही मम्मी को बहुत कठोर पाया,हर जगह फर्स्ट आना मेरी नियति थी जो उन्हीं ने तय की थी।”




“बेटा! हर माता पिता बच्चों का भला चाहते हैं,गीतू ने भी वही किया।”

कहते हुए याद आने लगे बीते दिन,जब किसी छोटे से क्लास टेस्ट में भी कम नंबर आना गीतू को परेशान कर देता था।

खेलना है तो जीतना भी है,यह ब्रह्मवाक्य था।

नौकरी हो या शादी,सब परफेक्ट चाहिए।

निवी के जन्म के बाद अपनी सभी अपेक्षाएं उससे जोड़ दीं।

मैंने या उसके पति ने कई बार समझाने की कोशिश भी की,पर कोई हल नहीं निकला।

निवी ने भी आरंभिक विरोध के बाद समर्पण कर दिया।

गीतू जैसा चाहती थी,वही होता भी रहा।

“आंटी!आपको दादी मां याद होंगी ना। कभी मिली थीं आप उनसे?”

चौंक गई मैं ये सुनकर। ये तो वो छुपे पन्ने थे जो गीतू ने सप्रयास बंद कर रखे थे,इस मजबूती से की चाहकर भी फड़फड़ा ना सकें।

“क्यों पूछ रही हो?”

“क्योंकि सब जानती हूं।”

विधवा मां के इकलौते बेटे थे गीतू के पति।

जिन्होंने मुश्किलों से उन्हें पढ़ाया,पर गीतू के स्वभाव में कुछ भी बांट लेना शामिल ही नहीं था। पति को भी मां के साथ कैसे बांट लेती।

मां समझदार थीं,चुपचाप गांव चलीं गईं,और वहीं अंतिम सांस भी ली।

“आंटी पिछली बार जब मम्मी कांफ्रेंस में सिंगापुर गईं थीं ना

तभी एक दिन पापा मुझे दादी मां के बारे में बताया।

मम्मी का विरोध न कर पाने के दुख ने ही तो उन्हें दो साल पहले हार्ट अटैक दिया था।”

“एक बात बताइए आंटी,अपने ऐसे होते हैं क्या?

अपने तो हर स्थिति में साथ देते हैं,फिर मम्मी ने पापा को दादी से अलग क्यों किया?”

ध्यान से निवी की आंखों में झांकते हुए मैंने कहना शुरू किया,” ये सब गुजरा अतीत है, गढ़े मुर्दे उखाड़ने से क्या मिलेगा?”




“गीतू का अभिमान हो तुम,बहुत मेहनत की है उसने तुम्हारे लिए।

फिर इन सब बातों और नीरज से तुम्हारी शादी का क्या संबंध है?”

“संबंध है आंटी… मैं कई बार नीरज के घर गई हूं, पता है उसकी दादी और नानी दोनों ही उनके घर में रहती थीं।

उसकी मम्मी भी इकलौती हैं,उसकी दादी की पिछले वर्ष ही डेथ हुई है,नानी भी तभी से गुमसुम रहती हैं,क्योंकि वे दोनों खास सहेली थीं।”

“जितनी देखभाल नीरज का परिवार उसकी नानी की करता है,वो सब मेरे लिए एक अजूबा ही था।”

“और जब मैंने नीरज से पूछा कि अगर मेरे मम्मी पापा में से कोई अकेला रहा तो?

तब उसने कहा हमारे रहते वो कभी अकेले नहीं होंगे।”

“इसी बात ने मेरा मन जीत लिया,झुकाव तो शुरू से ही था।

आंटी मैं जानती हूं मम्मी का बदलना मुश्किल है,पर मैं उन्हें या पापा को यहां अकेले छोड़ किसी एन आर आई से सिर्फ अपने सुरक्षित भविष्य के लिए शादी नहीं कर सकती।

शादी होगी तो नीरज से अन्यथा कोई नहीं।”

“मुझे पता है मम्मी के लिए खुद को बदलना संभव नहीं होगा,पर उन्हें अकेला छोड़ना भी मुझे मंजूर नहीं।अपनों के होते हुए मम्मी कभी अकेली नहीं रहेंगी।”

आंखे भर आईं मेरी,कितनी बदनसीब है गीतू,जो इस अनमोल हीरे को अब तक नहीं पहचान पाई।

“”कितने ही तूफान आएं,या बरसे बरसात,अपने वही हैं जो कभी न छोड़ें अपनों का हाथ।””

कहीं पढ़ी हुई पंक्तियां याद आईं और” मुझे नीरज से कब मिलवा रही हो,”कहते हुए मैंने निवी को गले से लगा लिया।

मौलिक/वर्षा गर्ग

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