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अपने लोग – कंचन श्रीवास्तव

आज बेटे की बात सोच मैं भीतर से टूट गई,और सोचने लगी। यकीनन आज के बच्चे ‘ जहां हम आज भी भावनाओं में उलझे हुए हैं जो भी दो शब्द प्यार से बोल दे, उसी के हो जाते हैं ।चाहे वो अपना हो या पराए’  बहुत प्रैक्टिकल है।

और सही भी है आज में जीते हैं कम से कम हमारी तरह चुप चुप के रोते और दुखी तो नहीं होते।

संभवतः फोन उधर से कट गया था,पर मैं उधर के उत्तर से इतना हतप्रभ थी कि यकीन नहीं कर पा रही थी कि ऐसा भी जवाब मिल सकता है।

हुआ यूं कि वैसे तो हर रोज मां ही फोन करती ,  मुझे फोन करने की इजाजत जो नहीं । वो इसलिए कि वर्षों साथ खेले खाएं भाई बहनों के बीच और लोगों के साथ जुड़ने से कुछ गलतफहमियां आ गई थी , और वो बैठकर सुलझाना नहीं चाहते थे बल्कि रिश्तें को खत्म करना चाहते थे।

और ऐसे में जब कोई रखना ही न चाहे तो भला अकेला चना कब तक भाड़ फोड़ेगा वाली कहानी हो गई

इसलिए बहुत दिनों तक ये न चल सका,और एक दिन सब कुछ खत्म हो गया,हालांकि वर्षों तक मां भी शामिल थी।  पर जब सच्चाई का पता चला तो उनके कान खड़े हो गए।

और जैसे तैसे करके बेटी दामाद से रिश्ता ‘ लोगों के लाख विरोध के बाद ‘ बना लिया।अब वो पहले जैसी बात तो नहीं रही ,पर कहीं न कहीं मां का ममत्व जब जागा तो बेटी भी पिघल गई।




और हर रोज उन्ही के द्वारा किए फोन से बतियाने लगी।

इस तरह पहले से खराब माहौल कुछ सुधरने लगा और वो खुश रहने लगी।

पर जब भी मां का फोन आता तो बच्चे यही कहते।

तुम तो उनका टाइम पास हो कोई नहीं है तो तुमसे बात कर लेती है।अभी कोई हो तब बात करें तो जानों।

इस पर मैं कभी ध्यान न देकर उनसे सारे काम छोड़कर बात करती।

एक रोज उनका फोन नही आया,तो मैंने ही रात में ये सोचकर मिला दिया कि अब तो अकेली होगी चलो बात हो जाएगी।

बस यही सोचकर फोन मिलाया ही था कि मेरी आवाज़ सुनकर वो बोली।ऐसा है अभी रखो बाद में बात करना अभी सब लोग बैठे है।

फिर मैं  इयर फोन लगाए लगाए बिना फोन काटे ही खूब रोई और सोचने लगी।

मैं तो बाहर वाली हूं और रिश्ते खत्म होने के बाद तो और भी महत्व नहीं रहा ।आज अहसास हुआ कि बेटी का ब्याह  करके कैसे मां बाप का खून सफेद हो जाता है।

बस यही ख्याल बार बार मन में टीसता रहा।” बड़ी सी बड़ी ग़लती बेटे बहू  के बीच हो तो मां बाप भुला देते है पर ब्याहता लड़की के साथ गलतफहमी भी आ जाए तो लोग मांफ करने की जगह।  मुंह फेर लेते हैं ।

और बच्चों की कही बात बार बार दीमाग में कौंधने लगी उनकी कही बात सामने जो आ गई।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव आरजू

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