अपने ही घर से शुरुआत होती है – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi

कुछ औरतें मिलकर शादी के गीत गा रही थी… कुछ ढोल ताशे बजा रही थी… कहीं हंसी ठहाके चल रहे थे… घर पर काफी गहमा गहमी थी और हो भी क्यों ना..? घर की बेटी सपना की शादी जो थी… वह वही बैठी मेहंदी लगवा रही थी.. जहां घर में इतनी रौनक थी… वही निवेदिता (सपना की भाभी) अपने कमरे में बैठी अपने आंसूओं को पोंछ रही थी… कुछ सालों पहले सपना की जगह वह थी…

उसके लिए भी गीत गाए जा रहे थे… भर हाथ वह भी मेहंदी लगवा रही थी… पर आज वह मेहंदी लगवाना तो दूर, वहां शामिल भी नहीं हो सकती थी, क्योंकि डेढ़ साल पहले उसने अपने पति को एक बीमारी में खो दिया था…. उसकी एक 3 साल की बेटी थी, जिसके साथ वह अपने ससुराल में ही रहती थी… बेटे के गुजर जाने के बाद ससुराल वालों ने उसे घर से निकाला नहीं, यही क्या काम बड़ी बात है

हमारे समाज में…? तो क्या हुआ जो विधवा होने के बाद निवेदिता के जीवन में खुशियों की जगह कुछ सख्त नियमों ने ले ली थी… जैसे की कोई शुभ कार्य में शामिल न होना, साज श्रृंगार को त्याग देना, जीवन से लाल और चटक रंगों से रिश्ता तोड़ देना, आलता, मेहंदी, पायल बिछिया से रिश्ता तोड़ देना,

और फिर कई सारे नियम उस पर लागू हो गए थे… ऐसे तो साधारण दिनों में यह सब की कमी नहीं खलती है, दिल तो तब दुखता है, जब कोई शुभ कार्य में विधवाओं को ऐसे अलग किया जाता है, जैसे उसने न जाने कितना बड़ा जुर्म कर दिया हो..? 

खैर निवेदिता अपने कमरे में चुपचाप बैठी थी… तभी उसकी बेटी निशि कमरे में आती है और अपने मासूम हथेलियां को आगे बढ़ाकर अपनी मां से कहती है… देखो मां… बुआ के साथ मैंने भी मेहंदी और आलता लगवाया… देखो मेरे हाथ और पैर कितने सुंदर लग रहे हैं… कल बुआ की शादी में मुझे वह लाल वाली फ्रॉक ही पहनाना जो दादी ने दिया था और मुझे लाल लिपस्टिक भी लगा देना… कल मुझे हुआ जैसा ही तैयार होना है… निशि ने अपनी तोतली आवाज में कहा…

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निशि के इन बातों से निवेदिता को भी अपना बचपन याद आ गया… कैसे वह भी हर तीज त्यौहार में अपनी मां के साथ मेहंदी आलता और श्रृंगार करती थी… उसे पाजेब का बड़ा शौक था, जिस पर उसके पापा ने उसे पाजेब दिलवाया था… वह पूरे दिन बस उसे पाजेब को पहन कर दौड़ती रहती थी… पाजेब की छम छम से वह खुद को महारानी जैसी महसूस करती थी… क्यों करवाई शादी पापा आपने..? मैं आपकी बेटी बनकर ही खुश थी…

आपकी निवेदिता अब ना तो पायल पहन सकती है और ना ही कोई श्रृंगार कर सकती है… अच्छा हुआ जो आप पहले ही दुनिया से चले गए, वरना मुझे ऐसी हाल में नहीं देख पाते… निवेदांता ने मन ही मन यह सब कहा और उसकी तंद्रा निशि के पुकार से टूटी… जहां वह कह रही थी… मां आप भी बाहर चलो ना… आपको भी मैं मेहंदी लगाऊंगी… चलो ना मां 

निवेदिता: नहीं बेटा मेहंदी तो बच्चियों और नई दुल्हन लगाती है… जैसे तुम और बुआ… और मुझे मेहंदी लगवाना पसंद भी नहीं, क्योंकि यह लगाने के बाद मेरे हाथ बंध जाते हैं और मैं तुम्हें ठीक से प्यार भी नहीं कर पाती… तुम जाओ बाहर… बुआ के पास… मुझे इस कमरे की सफाई भी करनी है 

निवेदिता ने निशि को किसी तरह बहला फुसला कर अपने कमरे से जाने को कहा… पर उसका मन तो निशि की तरह बच्चा नहीं था… वह तो रोए चला जा रहा था और अपना दिल बहलाने के लिए वह अपनी शादी का एल्बम देखने लगी… फोटो देखते-देखते अंत में विदाई की फोटो भी आई… जिसमें एक ओर उसका पति रतन खड़ा था और दूसरी ओर वह अपने पापा से लिपटकर रो रही थी… अब इसे इत्तेफाक कहे या भगवान की

बेरहमी..? दोनों ही इंसान आज इस दुनिया में नहीं थे… किसे वह अपना दुख कहती..? मां तो थी पर वह खुद ही भैया भाभी पर आश्रित थी.. उनसे और क्या ही कहती..? सब मेरी किस्मत को दोष देकर, अपनी अपनू दुनिया में व्यस्त हो गए… पर किसी ने यह नहीं सोचा… मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई… 

खैर रोते-रोते निवेदिता की आंख लग गई, तो उसने बाहर कुछ शोर शराबा सुना… पर वह कमरे से निकले या नहीं..? बड़ी असमंजस में थी अब शोर और ज्यादा होने लगा तो उससे रहा नहीं गया और वह कमरे से निकल ही गई… शोर सास के कमरे से आ रही थी तो वह सीधे वही चली गई… उसने देखा उसकी सास कविता जी सपना को मारे जा रही है और दोनों रो भी रही है…

निवेदिता ने दौड़कर अपनी सास के हाथ को थामा और कहा… यह क्या मम्मी जी..? कल इसकी शादी है और आप आज इसे ऐसे मार रही है..? कोई यूं जवान लड़की को मारता है क्या..? 

कविता जी:   शादी..? अब क्या शादी होगी इस करमजाली की..? इसकी हालत भी अब तेरी जैसी ही हो गई समझो 

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निवेदिता:   यह सब क्या कह रही हैं आप मम्मी जी..? 

कविता जी:   अरे दामाद जी अपने दोस्तों के साथ कहीं जा रहे थे.. सभी ने नशा किया था शायद, इसलिए उनके कार का एक्सीडेंट हो गया और सभी के सभी ने सड़क पर ही दम तोड़ दिया… अभी-अभी खबर आई.. अब हल्दी मेहंदी लगने के बाद ऐसा अपशगुन हो जाए तो कौन इसे अफशगुनी नहीं कहेगा..? पूरी उम्र अब यह कुंवारी ही रह जाएगी..? हमारे तो किस्मत ही फूट गए  

निवेदिता:  बस मम्मी जी बस… अपने लिए काफी अपशब्द सुन चुकी हूं….  पर सपना के खिलाफ अब एक शब्द नहीं सुनूंगी… मम्मी जी शादी के बाद या पहले अगर कोई दुर्घटना घट जाती है उसमें सिर्फ दोष लड़कियों का ही क्यों होता है..? कोई जानबूझकर विधवा तो नहीं बनती ना..? यह तो भगवान का ही लेख है…

हम आते भी अकेले हैं और जाते भी अकेले हैं… यह ही जीवन का सबसे बड़ा सच है… जीवनसाथी तो बस सफर के दौरान साथ देता है… पर मरने के वक्त कोई आगे तो कोई बाद में ही जाएगा… ना आने वाले को कोई रोक सका है और ना ही जाने वाले को कोई रोक पायेगा…. साथ में कोई नहीं जाएगा…

पर लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि जो चला गया वह अब कभी वापस नहीं आएगा…  उसके पीछे किसी की जीवन से सारी खुशियां छीन लेते हैं… अरे वह तो जिंदा है उसे क्यों जिंदा लाश बना रहे हो..? वह बचपन से ही पायल, मेहंदी, आलता रंग-बिरंगे कपड़े पहनती आई है, पर शादी के बाद इसे पति और सुहाग से जोड़ दिया जाएगा और

अगर कभी कोई अनहोनी हो गई तो, जो सारी चीज़े वह बचपन से करती आई है, उन्हें ही त्याग देना पड़ेगा… पर सिर्फ औरतों के लिए इतना कठोर नियम क्यों..? कभी सुना है किसी की पत्नी गुजर गई हो तो उसके पति को शुभ कार्य में आने से रोका गया हो..? नहीं ना..? और मम्मी जी आपको पता है यह हमारे खुद के घर से ही शुरू होता है और दुख की बात यह भी है कि इसमें औरतों का ही सबसे बड़ा योगदान होता है..

वरना पुरुष के पास इतना समय कहां जो वह देख सके कौन से नियम पालन हो रहे हैं कौन से नहीं..? सच कहूं जो औरतें ही औरतों की दुश्मन ना होती, तो यह कुप्रथाएं कब के इस दुनिया से विदा ले चुकी होती… रही बात सपना की… उसकी शादी होगी और बड़े धूमधाम से होगी.. पर इस घर में कोई भी उसके लिए अपशब्द नहीं कहेगा… बाहर वाले हमारे बोलने के बाद ही बोलते हैं.. पर जो हम उनकी बातों को तूल ना दे तो एक दिन यही ताने मिशाले बन जाती है… 

कविता जी अवाक होकर निवेदिता को देखती रहती है और फिर उन्होंने सोचा… इस दृष्टि से कभी वह क्यों नहीं देख पाई..? क्यों नहीं समझ पाई कभी उसका दुख..? शायद वह भी तो इसी समाज का ही हिस्सा है जहां विधवाओं को तो इंसान समझा ही नहीं जाता 

इस घटना को 2 साल बित जाते हैं और आज सपना भी एक अच्छे घर की बहू बनकर अपनी गृहस्थी संभाल रही थी और इधर निवेदिता ने भी घर को बड़े अच्छे तरीके से संभाला हुआ था… उसे भी दूसरी शादी करने के लिए कहा गया, पर वह अब एक मां और बहू के रूप में ही खुश थी… हां कुछ बदलाव हुए थे,

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उसे अब कोई नियम सख्ती से नहीं मानने थे… वह लाल रंग की साड़ी पहनती तो दो लोग बातें भी बनाते थे, पर आज उसका परिवार दुनिया वालों के बातों को नजर अंदाज कर अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीता था… इससे दुनिया की सोच इतनी जल्दी तो नहीं बदलेगी, पर शुक्र है शुरुआत कहीं से तो हुआ और कौन जाने वह शुरुआत निवेदिता से ही हुआ हो..? 

धन्यवाद 

#ये जीवन का सच 

रोनिता कुंडु

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