अपना आकाश – अनुज सारस्वत

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“बाईक क्यों रोक दी ? तू हमेशा आफिस से लौटते वक्त इसी जगह क्यों रोकता है ?आज तू बता कर ही रहेगाआखिर हुआ क्या है तुझे?”

गुड़गांव से दिल्ली जाते वक्त फ्लाईओवर पर इंदिरागांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निकट जहाँ से रनवे साफ दिखता है, प्रफुल्ल ने बाईक रोकी थी तब पीछे  बैठे अंकित ने उससे पूछा।

प्रफुल्ल बोला

“कुछ नहीं यार बस ऐसे ही”

तभी एक फ्लाईट टेकआफ हुई और उन दोनों के सर के ऊपर से भयंकर गर्जना करती हुई निकल गई,उसके उपरांत प्रफुल्ल ने बाईक स्टार्ट की और चल दिया ,पूरे रास्ते अंकित उससे पूछता रहा लेकिन प्रफुल्ल मुस्कराता रहा कोई उत्तर नही दिया।

“ले तेरा रूम आ गया “

लक्ष्मी नगर पहुंचते ही प्रफुल्ल ने अंकित से कहा ,अंकित की आँखो में बहुत सारे प्रश्न थे पर प्रफुल्ल उनको नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाता।

“अरे उठो कब तक सोते रहोगे”

प्रफुल्ल की पत्नी ने कहा।

“अरे क्या मैं सपना देख रहा था ?”

“हाँ जी वो आपका भूला हुआ ख्वाब ही होगा और क्या, 60 साल के हो चुके हो सेहत का ध्यान दीजिये ,अब भूले सपने सच नही होते भूलिये,आपका नाश्ता तैयार है ..कर लेना नहाकर “

इतना कहकर प्रफुल्ल की पत्नी चली गई।



अपने बूढ़े हाथों से चश्मा टटोलते हुऐ,अपनी सिकुड़ी हुई त्वचा पर चढ़ाया और दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर नाश्ता करने की टेबल पर पहुंचकर अखबार पढ़ने लगा ,अखबार के पहले पन्ने पर एक परिवार का फोटो था जो कि एक विज्ञापन से संबंधित था जिसमें माँ बाप उसके लड़के ,लड़की सब साथ में थे,प्रफुल्ल के आँखो में आँसू थे क्योंकि उसके कोई संतान नही थी,फिर अखबार रख दिया और लोन में जाकर आराम कुर्सी पर बैठ गया,आँख लग चुकी थी उसकी तभी दरवाजे की घंटी बजी ,वह हड़बड़ाहट में उठा चश्मा संभालते हुए गेट खोला तो सामने उसके बचपन का यार अंकित था ..वह खुशी से फूला ना समाया अंकित को गले लगाकर चिपक गया और उसके आँखो से झर झर आँसू वह निकले  जैसे उसके  दिल के दर्द को हल्का कर रहे हों,दोनों दोस्त खुशी के आंसुओ में सरोबार थे।

“अरे ओ बुडडे रोता ही रहेगा या अंदर भी बुलाएगा “

अंकित ने प्रफुल्ल से कहा।

“अबे बुडडा होगा तू चल अंदर”



बैठकर सारी बातें की फिर अंकित बोला

“सुन मैं अब इसी शहर में शिफ्ट हो गया हूँ और सुन परसों 26 जनवरी के पास हैं मेरे पास हम सब लोग चलेंगे, 26 जनवरी वाले दिन सब लोग पहुंचें परेड और ऐयर शो देखा ,ऐयर शो देखकर प्रफुल्ल बहुत प्रसन्न था ,तभी प्राइज सेरेमनी की बारी आयी एक नौजवान वायुसेना  की कैप पहने अवार्ड लेने पहुंचा और उसने माईक पर कहा..

“यह अवार्ड मैं अपने बड़े पापा प्रफुल्ल उपाध्याय जी को डेडिकेट करना चाहता हूँ और उन्हें यहाँ बुलाना चाहता हूँ”

अंकित ने खड़े होकर प्रफुल्ल और उसकी पत्नी को उठाया और कहा

“प्रफुल्ल यह है तेरा भूला हुआ ख्वाब का पूर्ण रूप,जो तेरा बचपन से सपना था ,ऐयर फोर्स में पायलट बनने का ,और यह मेरा बेटा है ,लेकिन तेरा बेटा पहले है”

प्रफुल्ल और उसकी पत्नी के आँखो से आँसू निकल पढ़े क्योंकि दोनों के सपनों ने साकार रूप ले लिया था।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित एवं मौलिक)

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