‘अपमान’ – पूनम वर्मा

देविका ने अपना सामान धम्म से घर में पटका और दरवाजा अंदर से बंद कर बिस्तर पर निढाल होकर पड़ गई । उसके पति श्यासुन्दर धीरे से बगल में रखी कुर्सी पर बैठ गए । देविका कुछ देर तक छत को निहारती रही फिर उठकर अपने पति पर बरस पड़ी ।

“सब आपकी वजह से होता है ! भगवान न जाने कहाँ से ऐसा नाकारा पति मेरी किस्मत में मढ़ दिया, मरते दम तक दुख और अपमान ही सहना है ।”

श्यामसुंदर जी सदैव की भाँति चुपचाप सहन करते रहे । उनकी चुप्पी पर देविका और भी आग बबूला हो रही थी । उसके गुस्से का कारण था बच्चों द्वारा किया गया अपमान ! जो देविका के रक्त के तापमान को बढ़ाये जा रहा था । आज देविका बेटे-बहू के घर से निकाली गई थी । श्यामसुंदर चुपचाप इस उबलती ज्वालामुखी को देख रहे थे पर उनपर कोई असर नहीं हो रहा था । वे अब बिल्कुल शरीर मात्र रह गए थे, सम्वेदना तो न जाने कब की मर चुकी थी । उन्हें तो जीवन भर अपमान सहने की आदत ही हो गई थी ।

श्यामसुंदर चारों भाइयों में सबसे छोटे, सबसे दुलारे और सबसे शरारती भी थे ! बचपन में माँ को लाख उलाहने मिलते पर उनके दुलार की छाँव ने उनके ऊपर  की धूप नहीं पड़ने दी । तीनों बड़े भाई पढ़ाई में लगे रहते पर श्यामा को कोई फिक्र नहीं होती थी । जैसे-जैसे समय बीतता गया बच्चे बड़े होते गए । तीनों बड़े भाइयों की शहर में नौकरी लग गई । श्यामा अपने माता-पिता के साथ अपनी मनमौजी जीवन का आनन्द ले रहा था । उसे न पढ़ाई की चिंता थी न नौकरी की । क्योंकि उसके पालनहार  ने अभी भी उसे पंखों के छाँव तले घोंसले में बिठा रखा था ।


तीनों बेटों की एक-एक करके शादी हो गई । तीनों बहुएँ कुछ दिन तक आँगन को गुलज़ार कर अपने-अपने पति के साथ अपनी दुनिया बसाने निकल पड़ी । श्यामा के प्रति माता-पिता का अत्यधिक लाड़ भी उनके दूर जाने में सहायक बन रहा था । इधर श्यामा की शरारतें उसे गैरजिम्मेदार बना रहा था । वह नाकारा की तरह दिनभर दोस्तों के साथ मटरगश्ती करता रहता। लोग उसे बुरा-भला कहते पर उसपर कोई असर नहीं होता । माता-पिता परेशान रहने लगे । गाँव के लोगों ने उन्हें सुझाव दिया कि इसकी शादी कर दो तो शायद यह सुधर जाए । पर ऐसे नाकारा को लड़की कौन देता भला । लेकिन   उसकी वामांगी बनकर देविका को आना था सो आ गई । कुछ दिन तक श्यामसुंदर नई-नवेली दुल्हन के प्रेमपाश में उलझा रहा पर धीरे-धीरे बाहरी दुनिया उसे अपनी ओर खींचने लगी । वह फिर से अपने ढर्रे पर लौट आया । देविका को इससे कुछ ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा । वह एक गरीब घर की लड़की थी । उसे तो चाहिए था बस अच्छा खाना-पहनना । वह अपनी दुनिया में मगन रहती ।

समय पंख लगाकर उड़ता जा रहा था । देविका अब दो बेटों की माँ बन चुकी थी । श्यामसुंदर में अभी भी जिम्मेदारी का अहसास नहीं था । जब तक सास-ससुर रहे सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था । उनके गुजरने के बाद परिवार की जिम्मेदारी देविका पर आ गई । जिम्मेदारी के साथ तंगी भी आई औऱ तनाव भी ।

देविका को लगता इस तंगी और तनाव का जिम्मेदार उसका पति है । वह सोचती थी कि यदि वह नाकारा नहीं होता तो हमारा परिवार सुखी होता । अब वह हमेशा अपने पति को भला-बुरा कहती रहती । अब घर में तो श्यामसुंदर की इज़्ज़त तो थी नहीं इसलिए समाज भी उसे दुत्कारता रहता । बच्चे बड़े हो रहे थे । उनपर भी पारिवारिक तनाव का असर पड़ रहा था । हमेशा अपने पिता को अपमानित होते देख कर उन्हें भी लगता था कि वे अपमान के पात्र हैं । माँ के साथ बच्चे भी निरन्तर पिता का अपमान करते रहते । घरेलू वातावरण ने उन्हें बड़ों का आदर करना सीखने ही नहीं दिया । माता-पिता को बुरा-भला कहकर अपमानित करना उनकी आदत हो गई ।

धीरे-धीरे बच्चे बड़े हुए और घर की तंगी और  तनाव से त्रस्त होकर घर छोड़ दिया । अब दोनों पति-पत्नी आर्थिक औऱ शारिरिक रूप से बेहद लाचार हो चुके थे । इस अवस्था में आखिरी उम्मीद बच्चों से थी । पर बोये पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय । सो बच्चों ने पहचानने से भी इनकार कर दिया । देविका अपने अपमान को पोटली समेटे फिर से अपने गाँव आ गई ।

पति पर भड़ास निकालने के बाद वह फूट-फूट कर रोने लगी । शायद उसे यह अहसास हो गया था कि इस अपमान का पेड़ लगाने वाली वह स्वयं थी जिसका कड़वा फल उसे खाना पड़ा था ।

#अपमान

पूनम वर्मा

राँची, झारखण्ड ।

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