अपंग हूं असहाय नहीं – प्रीति सक्सेना
- Betiyan Team
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- on Jan 24, 2023
” मैं तन से कमजोर सही रमन, मन से मुझे अशक्त समझने की भूल न करना, मैं आज की नारी हूं.. स्वयं सिद्धा.. किसी के भी रहमो करम पर आश्रित नहीं…. एक औरत को सिर्फ भोग्या समझने की गलती कदापि न करना.. तुम्हें क्या लगा.. तुम मुझे परख रहे हो? तुम्हारी निम्न सोच और गिरी हुई ओछी हरकतों को तो मैं बहुत पहले ही भांप चुकी थी.. बस प्रतीक्षा थी.. कि तुम अपने मन की कलुषता को कब बाहर निकालो और मैं तुम्हें तुम्हारा पतित, गिरा हुआ व्यक्तित्व और काला मन तुम्हें दिखा सकूं” .. कहते कहते राधिका क्रोध और उत्तेजना के अतिरेक में कांपने लगी!! राधिका एक सर्वगुण संपन्न, पढ़ी लिखी साधारण रंग रुप की पर बहुत खूबसूरत मन की लड़की है, एक पैर में जन्मजात विकृति होने के कारण एक पैर में लचक थी, पर उसके जीवन में उस कमी से कोई व्यवधान बिल्कुल नहीं था!! विकलांग कोटे में उसे शासकीय विद्यालय में नौकरी मिली जिसे पूर्ण कुशलता से अपने छात्रों की पसंदीदा मैडम बनकर वो निभा रही थी !!
विवाह में उसका दिव्यांग होना सबसे बड़ा रोड़ा था पर उसकी सरकारी नौकरी का होना लोगों के लालच का एक बड़ा कारण था, कई रिश्ते आए गए… इस वजह से आज राधिका तीस वर्ष की उम्र पार कर गई !! एक रिश्ता आया, रमन ..प्राइवेट स्कूल में टीचर था, सारी बातें तय हो गईं और शगुन देकर” रोका”कर दिया गया”…. फ़ोन पर बातें शुरु हुई, मिलने जुलने भी लगे, शुरु में तो पसन्द नापसंद की बातें हुईं, धीरे धीरे उसकी आय के बारे में जानकारी ली जाने लगी…
कितनी बचत होती है, खाते में कितने रुपए हैं…. और आज तो हद ही कर दी… राधिका के ये बताने पर कि वो अपने छोटे भाई की इंजीनियरिंग की फीस खुद भरती है….. वो भड़क गया, आपे से बाहर हो गया… बोला ये सब मेरे घर नहीं चलेगा, ये तुम्हारे पिता की जिम्मेदारी है, मैं एक पैसा किसी को नहीं देने दूंगा, उन पैसों से मुझे अपना घर बनाना है, अपनी छोटी बहन की शादी करना है, वो मेरा पैसा है.. उसे मैं खर्च करूंगा अपनी मर्जी से”…. तुम्हारी नौकरी देखकर तुम्हें पसन्द किया वरना तुममें है ही क्या? राधिका को ये एहसास तो हो गया था , ये आदमी सिर्फ उसके पैसों पर नज़र रखे है… प्रेम तो उसकी आंखों में नज़र ही नहीं आया उसे कभी… पर आज सारा संशय दूर हो गया.. सारी कलई खुल ही गई!! राधिका की खरी खरी बातें सुनने के बाद रमन को अपनी गलती का अहसास हुआ… बातें बदलने की पूरी कोशिश की उसने पर अब सारी स्थिति साफ हो चुकी थी.. राधिका ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया!!
माता पिता दुखी हुए पर उन्हें अपनी बेटी की समझदारी और दूरदर्शिता पर पूरा भरोसा था… जानते थे उनकी बेटी एक समझदार लड़की है , अपने स्वाभिमान से समझौता कभी नहीं करेगी!! दो साल और बीत गए… राधिका ने एक अनाथ बालिका को गोद लेकर अपने जीवन को एक बदलाव दिया.. उस बच्ची के भविष्य को संवारने में अपना समय बिताने लगी… विवाह की उम्मीद अब छोड़ सी दी उसने.. पर उसके जीवन में खुशियां आना बाकी थीं और वो आई भी!! उसके साथी अध्यापक के रुप में मनीष का आगमन हुआ जो एक बेटे का पिता था, और पत्नी को बीमारी में खो चुका था…. साथ काम करते करते एक दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा.. एक राह के मुसाफिर थे … सोचा.. अलग अलग चलने से बेहतर है साथ चलें, सादे से समारोह में विवाह बंधन में बंधे, दोनों बच्चों को माता पिता का प्यार और संरक्षण मिला, एक प्यारा परिवार बना… दो अधूरे पूरे हुए!! स्वाभिमान के बिना जीवन ऐसा है… जैसे बिना रीढ़ की हड्डी के शरीर का ढांचा..जिसमें आधार ही नहीं, सिर्फ मांस पिंड है.. जो पूर्णतः आधारहीन है !! समझौते के आधार पर कभी कोई निर्णय कभी न लें…. स्वाभिमान को हमेशा जिंदा रखें!!
# स्वाभिमान
प्रीति सक्सेना
इंदौर